1945-1947 के बीच का भारत एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और घटनापूर्ण दौर था, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण और उसके परिणामस्वरूप स्वतंत्रता के साथ-साथ विभाजन की त्रासदी को आकार दिया। इस अवधि में कई प्रमुख घटनाएँ घटीं, जिनका भारतीय इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1. द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव (1945):
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संसाधनों और सेना का व्यापक रूप से उपयोग किया। हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के माध्यम से अंग्रेज़ों के खिलाफ व्यापक विद्रोह का नेतृत्व किया। युद्ध के समाप्त होने के बाद, ब्रिटेन की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई थी, और उन्हें एहसास हुआ कि अब वे भारत पर अपना नियंत्रण बनाए नहीं रख सकते। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन ने भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया तेज कर दी।
2. शिमला सम्मेलन (1945):
- युद्ध के अंत के साथ ही, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं के साथ भविष्य की राजनीतिक व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए शिमला सम्मेलन आयोजित किया। इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गहरे मतभेद उभरकर सामने आए। मोहम्मद अली जिन्ना की मांग थी कि मुस्लिम लीग को मुस्लिम बहुल प्रांतों का प्रतिनिधित्व दिया जाए, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया। इस सम्मेलन की विफलता ने भारत के विभाजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
3. कैंबिनेट मिशन (1946):
- ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1946 में कैंबिनेट मिशन को भारत भेजा, जिसका उद्देश्य भारतीय राजनीतिक दलों के साथ सत्ता हस्तांतरण के लिए एक समझौता तैयार करना था। मिशन ने एक संघीय ढांचे का प्रस्ताव रखा, जिसमें केंद्र में केवल रक्षा, विदेशी मामले और संचार होंगे, जबकि शेष शक्तियाँ प्रांतों को दी जाएंगी। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच असहमति के बावजूद, मिशन की योजना ने स्वतंत्र भारत के भविष्य की राजनीतिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
- मुस्लिम लीग ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया और जिन्ना ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का आह्वान किया।
4. डायरेक्ट एक्शन डे और सांप्रदायिक दंगे (1946):
- 16 अगस्त 1946 को, मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का आयोजन किया, जिसके परिणामस्वरूप बंगाल के कलकत्ता (अब कोलकाता) में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए। इस दंगे में हजारों लोग मारे गए और भारत भर में सांप्रदायिक हिंसा की लहर दौड़ गई। यह घटना भारत के विभाजन की अनिवार्यता को और बढ़ा गई, और भारत में हिन्दू-मुस्लिम संबंधों को बेहद खराब कर दिया।
5. अंतरिम सरकार का गठन (1946):
- 2 सितंबर 1946 को, लॉर्ड वेवेल के अधीन एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया, जिसमें जवाहरलाल नेहरू को उपाध्यक्ष और कार्यकारी परिषद का प्रमुख नियुक्त किया गया। इसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के प्रतिनिधि शामिल थे। लेकिन सरकार के भीतर विश्वास की कमी और बढ़ते सांप्रदायिक तनावों के कारण यह सरकार प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर सकी। मुस्लिम लीग ने सरकार में शामिल होने के बावजूद अपने अलग राष्ट्र की मांग जारी रखी।
6. विभाजन की ओर बढ़ते कदम (1946-1947):
- 1947 की शुरुआत तक, भारत में विभाजन की मांग तेज हो गई थी। सांप्रदायिक तनावों के बढ़ने के साथ, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद और गहरे हो गए। ब्रिटिश सरकार ने यह समझ लिया कि एक एकीकृत भारत में सत्ता हस्तांतरण संभव नहीं है। लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का अंतिम वायसराय नियुक्त किया गया, जिनका मुख्य कार्य भारत को स्वतंत्रता देना था।
7. माउंटबेटन योजना (3 जून 1947):
- लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को एक योजना प्रस्तुत की, जिसके तहत भारत को विभाजित करने का निर्णय लिया गया। इस योजना के अनुसार, भारत के विभाजन की प्रक्रिया को 15 अगस्त 1947 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। इस योजना को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिख समुदाय ने स्वीकार कर लिया, जिससे विभाजन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई।
8. स्वतंत्रता और विभाजन (15 अगस्त 1947):
- 15 अगस्त 1947 को भारत दो स्वतंत्र राष्ट्रों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित हो गया। यह दिन भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद दिन था। विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर जनसंख्या का स्थानांतरण हुआ, जिसमें लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हुए। विभाजन के दौरान सांप्रदायिक दंगों और हिंसा में लगभग 10 लाख लोग मारे गए, और करोड़ों लोग बेघर हुए।
9. विभाजन के परिणाम:
- विभाजन ने भारतीय उपमहाद्वीप को गहरे जख्म दिए। भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी दुश्मनी की नींव रखी गई, जो आने वाले दशकों तक चली। शरणार्थियों की समस्या, सांप्रदायिक दंगे, और जनसंख्या का भारी पैमाने पर स्थानांतरण विभाजन के प्रमुख परिणाम थे। विभाजन ने भारतीय समाज और राजनीति को गहरे ध्रुवीकृत किया।
10. भारतीय स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियाँ:
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नए भारत को राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास, और सामाजिक सुधार के क्षेत्रों में ठोस कदम उठाने पड़े। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण करने की दिशा में काम किया।
11. संवैधानिक विकास:
- 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारतीय संविधान सभा ने एक नए संविधान के निर्माण पर काम शुरू किया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत को एक गणराज्य घोषित किया।
1945-1947 के बीच का यह कालखंड भारतीय इतिहास का सबसे निर्णायक दौर था, जिसमें स्वतंत्रता की प्राप्ति के साथ-साथ विभाजन की त्रासदी भी जुड़ी हुई है। इस समय में भारतीय समाज, राजनीति, और अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हुए, जिन्होंने एक नए भारत के निर्माण की नींव रखी।
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