भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना के संबंध में कुछ विवाद और आलोचनाएँ भी थीं, जो विभिन्न दृष्टिकोणों और ऐतिहासिक व्याख्याओं पर आधारित थीं। इन विवादों को समझने के लिए विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. ए.ओ. ह्यूम की भूमिका पर विवाद:
- ए.ओ. ह्यूम, एक ब्रिटिश सिविल सेवक, कांग्रेस के संस्थापक माने जाते हैं। कुछ आलोचकों का मानना था कि ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना भारतीयों के हित के बजाय ब्रिटिश सरकार के हित में की थी।
- उनका दावा था कि ह्यूम ने भारतीयों की बढ़ती असंतोष की भावना को एक नियंत्रित और संवैधानिक ढांचे के भीतर बनाए रखने के लिए कांग्रेस का गठन किया ताकि यह उग्र आंदोलन में न बदल जाए।
- इसे “सेफ्टी वाल्व थ्योरी” के रूप में जाना जाता है, जिसमें कहा जाता है कि ह्यूम ने कांग्रेस को भारतीयों की नाराजगी को नियंत्रित करने और इसे हिंसक विद्रोह में बदलने से रोकने के लिए एक “सुरक्षा वाल्व” के रूप में स्थापित किया।
2. कांग्रेस के प्रारंभिक स्वरूप पर आलोचना:
- कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में इसके स्वरूप को लेकर भी आलोचना की गई। इसे प्रारंभ में एक उदारवादी संगठन माना गया, जो ब्रिटिश सरकार के साथ टकराव के बजाय संवाद पर जोर देता था।
- कई राष्ट्रवादियों ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि यह ब्रिटिश सरकार के प्रति बहुत ही उदार और समर्पित थी और भारतीयों के वास्तविक हितों की बजाय ब्रिटिश नीतियों के प्रति अधिक झुकी हुई थी।
3. कांग्रेस के नेतृत्व में मध्यम वर्ग का वर्चस्व:
- कांग्रेस के प्रारंभिक नेतृत्व में मुख्यतः शिक्षित मध्यम वर्ग के लोग थे। इसके कारण कांग्रेस पर यह आरोप लगाया गया कि यह संगठन सामान्य जनता, किसानों, और मजदूरों की समस्याओं से दूर है और उनके हितों का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रही है।
- इसके अलावा, कांग्रेस के शुरुआती अधिवेशनों में हिस्सा लेने वाले अधिकांश लोग उच्च जाति और संपन्न पृष्ठभूमि से थे, जो कि भारतीय समाज की बहुसंख्यक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे।
4. राष्ट्रवादी विचारधारा का अभाव:
- प्रारंभिक कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया कि इसमें राष्ट्रवादी विचारधारा की कमी थी। इसके नेता प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष करने के बजाय सुधारों और सहयोग पर अधिक जोर दे रहे थे।
- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, और बिपिन चंद्र पाल जैसे गरम दल के नेताओं ने कांग्रेस की इस नीति की आलोचना की और अधिक उग्र और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाने की मांग की।
5. स्थापना के उद्देश्यों पर असहमति:
- कांग्रेस के उद्देश्यों को लेकर भी प्रारंभिक वर्षों में कई असहमति थी। कुछ नेता इसे केवल एक सुधारवादी संगठन मानते थे, जबकि अन्य इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में पहला कदम मानते थे।
- कांग्रेस के भीतर गरम दल और नरम दल के बीच भी इसी मुद्दे पर मतभेद थे, जिसके चलते संगठन के भीतर तनाव और विभाजन की स्थिति बनी।
6. कांग्रेस की सीमित पहुंच:
- प्रारंभिक कांग्रेस की पहुंच मुख्यतः शहरी क्षेत्रों और शिक्षित वर्ग तक सीमित थी। इसे लेकर भी आलोचना की गई कि कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों और सामान्य जनता तक अपनी पकड़ बनाने में असफल रही। इसके कारण कांग्रेस का प्रारंभिक प्रभाव सीमित रहा और इसे एक ‘एलीट’ संगठन के रूप में देखा गया।
7. ब्रिटिश शासन के प्रति उदार रवैया:
- कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया कि इसके शुरुआती नेता ब्रिटिश शासन के प्रति अत्यधिक उदार थे और उन्होंने स्वतंत्रता की बजाय केवल प्रशासनिक सुधारों पर जोर दिया।
- इस उदार रवैये के कारण कई राष्ट्रवादियों ने कांग्रेस को ब्रिटिश समर्थक संगठन के रूप में देखा, जो भारतीय स्वतंत्रता के उद्देश्य से भटक गया है।
8. राष्ट्रवादियों और सुधारवादियों के बीच मतभेद:
- कांग्रेस के भीतर गरम दल (राष्ट्रवादी) और नरम दल (रिफॉर्मिस्ट) के बीच मतभेद भी एक विवाद का कारण बना। गरम दल के नेता स्वतंत्रता के लिए उग्र संघर्ष की मांग कर रहे थे, जबकि नरम दल के नेता सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहते थे। इस विवाद ने कांग्रेस के भीतर विभाजन की स्थिति पैदा कर दी थी।
9. ब्रिटिश सरकार की निगरानी:
- कुछ आलोचकों का मानना था कि कांग्रेस की गतिविधियों पर ब्रिटिश सरकार की कड़ी निगरानी थी और कांग्रेस को सरकार की अनुमति के बिना कुछ भी करने की स्वतंत्रता नहीं थी। इस पर आरोप लगाया गया कि कांग्रेस ब्रिटिश सरकार की नीतियों के अनुसार चलती थी और इसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति नहीं थी।
इन सभी विवादों के बावजूद, कांग्रेस ने समय के साथ अपनी रणनीति और दृष्टिकोण में परिवर्तन किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख संगठन बनकर उभरी। कांग्रेस के शुरुआती विवाद इसके विकास के विभिन्न चरणों का हिस्सा थे, जिन्होंने इसे एक मजबूत और संगठित राजनीतिक संगठन के रूप में परिपक्व किया।
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