सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसे महात्मा गांधी ने 1930 में शुरू किया। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करके ब्रिटिश शासन के प्रति असहमति और अवज्ञा प्रकट करना था। सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनभागीदारी को और अधिक व्यापक बनाने का एक प्रयास था, जो अंततः भारत की स्वतंत्रता की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हुआ।
पृष्ठभूमि
- ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानून:
- ब्रिटिश शासन के कठोर कानूनों और नीतियों ने भारतीयों के अधिकारों और स्वतंत्रता को सीमित कर दिया था। 1928 में, साइमन कमीशन के भारत आगमन ने भारतीयों में गहरा असंतोष पैदा किया क्योंकि इस कमीशन में कोई भारतीय सदस्य नहीं था। भारतीय नेताओं ने इसे अपमानजनक माना और इसका विरोध किया।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की मांग की और गांधीजी को इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक आंदोलन शुरू करने का निर्देश दिया।
2. नेहरू रिपोर्ट और साइमन कमीशन:
- भारतीय नेताओं ने स्वशासन के लिए नेहरू रिपोर्ट (1928) का मसौदा तैयार किया, जिसमें भारत के लिए एक नए संवैधानिक ढांचे का प्रस्ताव था। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया, जिससे असंतोष और बढ़ गया।
- साइमन कमीशन के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें भारतीय जनता ने आयोग के खिलाफ “साइमन गो बैक” के नारे लगाए। इन घटनाओं ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव रखी।
आंदोलन की शुरुआत
- दांडी यात्रा (नमक सत्याग्रह):
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा दांडी यात्रा (Dandi March) से की गई। गांधीजी ने 78 समर्थकों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक 240 मील की यात्रा की।
- 6 अप्रैल 1930 को गांधीजी ने समुद्र किनारे नमक बनाकर ब्रिटिश नमक कानून का उल्लंघन किया। नमक कर ब्रिटिश शासन का एक प्रतीक था, और इस कानून का उल्लंघन करते हुए गांधीजी ने इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया।
2. जनता की भागीदारी:
- दांडी यात्रा के बाद, देशभर में नमक कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। लाखों भारतीयों ने नमक बनाया, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया, और करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया।
- किसानों ने भूमि राजस्व का भुगतान करने से मना कर दिया, और महिलाओं ने खादी का प्रचार किया और स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया। इस आंदोलन ने समाज के सभी वर्गों को एकजुट किया और ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रेरित किया।
आंदोलन का विस्तार
- नमक सत्याग्रह के अलावा अन्य अवज्ञाएँ:
- नमक कानून के उल्लंघन के अलावा, सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत कई अन्य प्रकार की अवज्ञाएँ भी की गईं, जैसे कि विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, शराब की दुकानों पर धरना, सरकारी संस्थानों का बहिष्कार, और करों का भुगतान न करना।
- विभिन्न प्रांतों में किसानों ने भूमि कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया, और वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लिया।
2. ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए। हजारों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। सरकारी दमन के बावजूद, आंदोलन और मजबूत होता गया।
गांधी-इरविन समझौता
- गांधी-इरविन समझौता (1931):
- आंदोलन की तीव्रता को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के साथ बातचीत करने का निर्णय लिया। मार्च 1931 में गांधीजी और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है।
- इस समझौते के तहत, गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने और गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय लिया। इसके बदले में ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किए गए सत्याग्रहियों को रिहा करने और कुछ अन्य रियायतें देने का वादा किया।
2. गोलमेज सम्मेलन:
- गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते हुए 1931 में लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। हालांकि, सम्मेलन में कोई ठोस परिणाम नहीं निकला और गांधीजी निराश होकर भारत लौटे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का परिणाम और प्रभाव
1.राष्ट्रीय चेतना का विकास:
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना और आत्मविश्वास को मजबूत किया। इस आंदोलन ने विभिन्न वर्गों और समुदायों को एकजुट किया और स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
2. अहिंसा का महत्व:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित था। इस आंदोलन ने दुनिया भर में अहिंसा और सत्याग्रह के प्रभाव को उजागर किया और गांधीजी के नेतृत्व को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई।
3. ब्रिटिश शासन पर दबाव:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को भारतीय जनता के असंतोष और संघर्ष की गहराई को समझने के लिए मजबूर किया। इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को भारतीय नेताओं के साथ बातचीत करने पर मजबूर होना पड़ा।
4. भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भविष्य के आंदोलनों के लिए एक आधारशिला रखी। इसने भारतीयों को संघर्ष के नए तरीकों से परिचित कराया और स्वतंत्रता की दिशा में नए कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
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