1857 की क्रांति से पूर्व के ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक संरचना को समझने के लिए हमें ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विभिन्न चरणों और उनके प्रशासनिक ढांचे पर ध्यान देना होगा। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर 1857 की क्रांति तक का यह कालखंड ब्रिटिश भारत में महत्वपूर्ण प्रशासनिक परिवर्तन का समय था।
1. ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन और विस्तार:
- ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन: 1600 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ I के फरमान से ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ। इसका मूल उद्देश्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार करना था।
- भारत में कंपनी का पहला कदम: 1612 में सूरत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी पहली व्यापारिक चौकी स्थापित की। इसके बाद धीरे-धीरे मद्रास (1639), बॉम्बे (1668), और कलकत्ता (1690) में भी कंपनी ने अपनी चौकियां स्थापित कीं।
- प्लासी की लड़ाई (1757): इस लड़ाई में सिराज-उद-दौला की हार के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब को नियंत्रित कर लिया और यहां से भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव रखी गई।
- बक्सर की लड़ाई (1764): इस लड़ाई में मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला, और मुग़ल सम्राट शाह आलम II की हार के बाद, कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा में दीवानी (राजस्व संग्रहण) अधिकार मिल गए।
2. प्रेसीडेंसी और स्थानीय प्रशासन:
I. प्रेसीडेंसी प्रणाली (Presidency System):
प्रेसीडेंसी वह प्रशासनिक इकाई थी जिसके तहत ब्रिटिश भारत को विभाजित किया गया था। प्रारंभ में तीन प्रमुख प्रेसीडेंसीज़ थीं:
- बंगाल प्रेसीडेंसी:
- स्थान: यह पूर्वी भारत में स्थित थी और इसमें बंगाल, बिहार, उड़ीसा, और असम शामिल थे। बाद में यह भारत में ब्रिटिश शासन की सबसे महत्वपूर्ण प्रेसीडेंसी बन गई।
- मुख्यालय: कलकत्ता (अब कोलकाता)।
- महत्व: बंगाल प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत में सबसे महत्वपूर्ण थी क्योंकि यहीं से ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला प्रमुख नियंत्रण स्थापित किया था। यहां का गवर्नर जनरल, पूरे ब्रिटिश भारत के प्रशासन का प्रमुख था।
- मद्रास प्रेसीडेंसी:
- स्थान: यह दक्षिणी भारत में स्थित थी और इसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और केरल के कुछ हिस्से शामिल थे।
- मुख्यालय: मद्रास (अब चेन्नई)।
- महत्व: यह प्रेसीडेंसी मुख्य रूप से दक्षिणी भारत के क्षेत्रों को नियंत्रित करती थी और ब्रिटिश साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार केंद्र थी।
- बॉम्बे प्रेसीडेंसी:
- स्थान: यह पश्चिमी भारत में स्थित थी और इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, और कोंकण का क्षेत्र शामिल था।
- मुख्यालय: बॉम्बे (अब मुंबई)।
- महत्व: बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने व्यापार और नौवहन के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य के पश्चिमी क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखा।
- बंगाल प्रेसीडेंसी:
II. प्रेसीडेंसी का प्रशासन:
- गवर्नर: प्रत्येक प्रेसीडेंसी का प्रशासनिक प्रमुख ‘गवर्नर’ होता था। गवर्नर ब्रिटिश संसद द्वारा नियुक्त किया जाता था और वह सीधे गवर्नर जनरल के अधीन काम करता था।
- गवर्नर की शक्तियाँ: गवर्नर को स्थानीय प्रशासन, न्याय, और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए थे। उसे स्थानीय सैनिकों पर भी नियंत्रण प्राप्त था।
- गवर्नर इन काउंसिल: गवर्नर अपने काउंसिल (परिषद) के साथ मिलकर प्रशासनिक निर्णय लेता था। इस परिषद में कुछ वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते थे, जो प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों में गवर्नर की सहायता करते थे।
III. स्थानीय प्रशासन (Local Administration):
- डिस्ट्रिक्ट्स (जिले): प्रेसीडेंसी को आगे विभिन्न जिलों (डिस्ट्रिक्ट्स) में विभाजित किया गया था। प्रत्येक जिले का प्रमुख अधिकारी कलेक्टर होता था।
- कलेक्टर:
- कलेक्टर का मुख्य कार्य राजस्व संग्रहण और भूमि प्रशासन से संबंधित था। वह जिले का राजस्व अधिकारी था और भूमि कर की वसूली की जिम्मेदारी उसी की थी।
- इसके अलावा, कलेक्टर कानून और व्यवस्था बनाए रखने, न्यायिक कार्यों में भाग लेने और स्थानीय विवादों को सुलझाने के लिए भी उत्तरदायी था।
- कलेक्टर:
- जिला मजिस्ट्रेट: कई मामलों में, कलेक्टर को ही जिला मजिस्ट्रेट के रूप में भी काम करना पड़ता था। इस भूमिका में वह जिले की कानून व्यवस्था बनाए रखने, न्यायालय का संचालन करने और अपराधों की जांच करने का कार्य करता था।
- पुलिस प्रशासन: जिले में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) नियुक्त होता था। वह सीधे कलेक्टर के अधीन काम करता था और जिले में अपराध रोकथाम और कानून व्यवस्था के कार्यों की देखरेख करता था।
- तहसीलदार और पटवारी: जिले के नीचे तहसील या तालुका स्तर पर तहसीलदार होते थे, जो छोटे स्तर पर राजस्व और प्रशासनिक कार्यों को संभालते थे। पटवारी ग्राम स्तर पर भूमि और राजस्व रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता था।
3. राजस्व प्रशासन:
- स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) 1793: इसे लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में लागू किया। इस प्रणाली में जमींदारों को भूमि के मालिक के रूप में स्थायी रूप से मान्यता दी गई और उनसे स्थायी रूप से राजस्व की वसूली की गई। जमींदारों को उनके क्षेत्र से वार्षिक निश्चित कर देना होता था, भले ही फसल कैसी भी हो।
- रैयतवाड़ी प्रणाली (Ryotwari System): मद्रास और बॉम्बे में लागू इस प्रणाली में किसानों से सीधे सरकार द्वारा राजस्व वसूली की जाती थी। यहाँ कोई बिचौलिया नहीं होता था और किसान को सीधे सरकार को कर देना होता था।
- महलवाड़ी प्रणाली (Mahalwari System): उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में यह प्रणाली लागू की गई थी, जिसमें गांव या महल के स्तर पर राजस्व का निर्धारण किया जाता था। इसमें एक समूह के रूप में राजस्व वसूली की जाती थी और ज़मींदार या महल के मुखिया के माध्यम से कर लिया जाता था।
4. न्यायिक संरचना:
- न्यायालयों का निर्माण: 1774 में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी, जो ब्रिटिश नागरिक और अन्य विवादों के लिए उच्चतम न्यायिक संस्थान था। इसके अलावा, प्रत्येक जिले में जिला अदालतें स्थापित की गई थीं।
- सदर दीवानी अदालत: दीवानी मामलों (नागरिक मामलों) के लिए उच्च न्यायालय के रूप में काम करती थी।
- सदर निज़ामत अदालत: फौजदारी मामलों के लिए उच्च न्यायालय के रूप में काम करती थी।
- कानूनी संहिता: न्यायिक मामलों में कंपनी ने ब्रिटिश कानून और स्थानीय भारतीय कानूनों का मिश्रण इस्तेमाल किया। न्यायिक व्यवस्था में भारतीयों की भागीदारी थी, लेकिन उच्च पदों पर अंग्रेजों का ही वर्चस्व था।
5. सैन्य प्रशासन:
- सेना का संगठन: ब्रिटिश सेना मुख्यतः तीन प्रेसीडेंसीज़ की सेनाओं में विभाजित थी – बंगाल आर्मी, मद्रास आर्मी, और बॉम्बे आर्मी। इन तीनों सेनाओं में भारतीय सिपाही (सेपॉय) और ब्रिटिश अधिकारी होते थे।
- भारतीय सिपाहियों की स्थिति: सेना में भारतीय सिपाहियों का बड़ा योगदान था, लेकिन उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों की तुलना में कम वेतन और कम सुविधाएँ दी जाती थीं। इसी असमानता ने 1857 की क्रांति के लिए जमीन तैयार की।
6. शिक्षा और सामाजिक सुधार:
- मैकोले की शिक्षा नीति (1835): लॉर्ड मैकोले ने अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता दी और भारतीयों को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षित करने का प्रस्ताव रखा। इस नीति का उद्देश्य भारतीयों को ऐसे बनाने का था कि वे मानसिक रूप से अंग्रेजों की नकल करें, लेकिन शारीरिक रूप से भारतीय बने रहें।
- सामाजिक सुधार: अंग्रेजों ने सती प्रथा पर रोक लगाई (1829), थग्गी का उन्मूलन किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। हालांकि, यह सुधार ज्यादातर ब्रिटिश हितों को ध्यान में रखते हुए किए गए थे।
7. व्यापारिक और औद्योगिक संरचना:
- कंपनी का व्यापार: ब्रिटिश भारत की अर्थव्यवस्था को मुख्यतः एक व्यापारिक अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित किया गया, जहां से कच्चा माल इंग्लैंड भेजा जाता था और तैयार माल भारत में आयात किया जाता था।
- औद्योगिक ढांचा: ब्रिटिश शासनकाल में कपड़ा उद्योग, विशेषकर बंगाल का कपास उद्योग, बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके साथ ही, भारत में रेलवे, टेलीग्राफ और सड़कों का विकास ब्रिटिश व्यापारिक हितों को सुरक्षित करने के लिए किया गया।
8. प्रशासनिक सुधार:
- चार्टर एक्ट्स: 1813, 1833, और 1853 के चार्टर एक्ट्स के माध्यम से कंपनी के शासन में सुधार किए गए और ब्रिटिश संसद ने कंपनी के अधिकारों को सीमित कर दिया। इन एक्ट्स के माध्यम से प्रशासनिक और न्यायिक सुधार लाए गए।
- केंद्रीकरण की प्रक्रिया: 1833 के चार्टर एक्ट के माध्यम से गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण भारत में विधायी शक्ति दी गई और इसने एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली की शुरुआत की।
9. राजनीतिक संरचना और भारतीयों की भागीदारी:
- कंपनी का नियंत्रण: ब्रिटिश भारत में वास्तविक सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल के हाथों में थी, जो लंदन में स्थित था। भारतीय जनता का प्रशासन में कोई महत्वपूर्ण भागीदारी नहीं थी।
- भारत में ब्रिटिश अधिकारियों का वर्चस्व: प्रशासनिक और सैन्य पदों पर मुख्यतः ब्रिटिश नागरिक होते थे, और भारतीयों को निम्नस्तरीय पदों पर नियुक्त किया जाता था।
10. आर्थिक और वित्तीय संरचना:
- राजस्व संग्रहण: ब्रिटिश भारत में राजस्व संग्रहण के तीन मुख्य मॉडल थे – स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी प्रणाली, और महलवाड़ी प्रणाली। इन सभी में राजस्व संग्रहण के माध्यम से अधिकतम आर्थिक लाभ ब्रिटिश सत्ता को प्राप्त होता था।
- कंपनी का व्यापारिक शोषण: कंपनी के व्यापारिक शोषण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया, विशेषकर कृषि और हस्तशिल्प उद्योग को। ब्रिटिश उत्पादों का आयात भारतीय बाजार पर हावी हो गया, जिससे भारतीय कारीगरों और किसानों को नुकसान हुआ।
11. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
- सांस्कृतिक परिवर्तन: ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली और कानूनी प्रणाली ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजी भाषा का प्रसार हुआ और पश्चिमी विचारों का प्रसार भी होने लगा।
- धार्मिक और सामाजिक सुधार: राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।
निष्कर्ष:
1857 की क्रांति से पहले ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक संरचना एक केंद्रीकृत, औपनिवेशिक और शोषणकारी शासन प्रणाली का उदाहरण थी। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति करना था। इस संरचना में भारतीयों को प्रशासनिक, न्यायिक, और सैन्य क्षेत्रों में सीमित और अधीनस्थ भूमिका दी गई थी, जो 1857 की क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण बनी।
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