विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति :-
- विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire), जिसे कर्नाटक साम्राज्य के रूप में भी जाना जाता है, की स्थापना 1336 सीई में भारत में कर्नाटक के वर्तमान राज्य में तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर हुई थी।
- विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire) की राजधानी हम्पी (वर्तमान में कर्नाटक में) शहर थी।
- हम्पी को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
- भौगोलिक रूप से, यह दक्षिण भारत के दक्कन पठार के करीब स्थित है।
- साम्राज्य (Vijayanagar Empire) के संस्थापक संगम वंश से संबंधित हरिहर और बुक्का भाई थे।
- हरिहर और बुक्का एक चरवाहे चरवाहे समुदाय के सदस्य थे, जो कुरुबा वंश के होने का दावा करते थे।
- हरिहर और बुक्का दोनों ने होयसल राजा, वीरा बल्लाला III के अधीन भी सेवा की थी।
विजयनगर साम्राज्य पर 4 राजवंशों ने शासन कार्य किया था- संगम राजवंश, सलुव राजवंश, तुलुव राजवंश और आरविडू राजवंश.
- संगम राजवंश:- यह विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला पहला राजवंश था. इस साम्राज्य के संस्थापकों में हरिहर प्रथम और बुक्का थे.इस वंश नें 1334 ईस्वी से 1485 ईस्वी तक शासन किया.
- सुलुव राजवंश:- यह राजवंश विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला दूसरा वंश था. इसने 1485 ईस्वी से 1505 ईस्वी तक शासन किया. इसने लगभग पूरे दक्षिण भारत पर शासन किया.
- तुलुव राजवंश:- यह विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला तीसरा राजवंश था. विजयनगर साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णदेव राय इसी वंश के थे. इस वंश नें 1491 ईस्वी से 1570 ईस्वी तक शासन किया.
- आरविडू राजवंश:- दक्षिण भारत में विजयनगर राज्य पर शासन करने वाला यह चौथा और अंतिम हिंदू वंश था.
1.संगम राजवंश:-
संगम वंश (1336-1485 ई) –
संगम वंश के संस्थापक हरिहर व बुक्का थे जो संगम नामक व्यक्ति के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता संगम के नाम पर अपने राज्य का नाम रखा-
- इस वंश की स्थापना हरिहर एवं बुक्का ने 1336 ईस्वी में की थी। हरिहर और बुक्का के पिता का नाम संगम था। उन्हीं के नाम पर इस वंश का नाम संगम वंश पड़ा।
- हरिहर(1336-1356 ई.)- हरिहर प्रथम इस वंश का प्रथम शासक था।
- जिसने 1336 ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की और हम्पी को अपनी राजधानी बनाया।
- हरिहर प्रथम को एक समुद्र का अधिपति कहा गया है। हरिहर प्रथम ने 1352-53 ईस्वी में मदुरै पर विजय प्राप्त की थी।
- हरिहर प्रथम की मृत्यु के बाद बुक्का (1356-1377 ई):- विजयनगर साम्राज्य का शासक बना।
- बुक्का प्रथम को तीन समुद्रों का स्वामी कहा गया है।
- बुक्का प्रथम के शासनकाल में ही विजयनगर और बहमनी साम्राज्य के बीच चलने वाले लंबे संघर्ष का आरंभ हुआ था। इन दोनों साम्राज्यों के बीच रायचूर दोआब पर नियंत्रण को लेकर संघर्ष चलता रहता था।
- उल्लेखनीय है कि कृष्णा व तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र को रायचूर दोआब के नाम से जाना जाता है। यह भूभाग अपनी उपजाऊ भूमि तथा लोहे व हीरों के भंडार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
- बुक्का प्रथम ने ‘वेदमार्ग प्रतिष्ठापक’ नामक उपाधि धारण की थी और उसने ‘वैदिक मग्ग प्रवर्तका’ नामक ग्रंथ की रचना भी की थी।
- हरिहर द्वितीय (1377 – 1404 ईस्वी)
- हरिहर द्वितीय के दरबार में सुदर्शन संग्रह के लेखक माधवाचार्य, हरिविलास नामक ग्रंथ के लेखक श्रीनाथ और ऐतरेय ब्राह्मण के टीकाकार सायण उपस्थित थे।
- हरिहर द्वितीय ने ही सबसे पहले महाराजाधिराज और राजपरमेश्वर नामक उपाधियाँ धारण की थी।
- हरिहर द्वितीय ने राज व्यास की उपाधि धारण की।
- इसके काल में विजयनगर साम्राज्य और मुसलमानों के बीच संघर्ष हुए जिसमें बेहमनी राज्य से बेलगांव और गोवा जीत लिया।
- देवराय प्रथम (1406 – 1422 ईस्वी)
- देवराय प्रथम के शासनकाल में तुंगभद्रा नदी पर बांध बनवाया गया था और विजयनगर साम्राज्य में नेहरू का विकास किया गया था।
- राज्य संभालने के तुरंत बाद उनको फिरोजशाह बहमनी के आक्रमण का सामना करना पड़ा जिसमें देवराय प्रथम की हार हुई और भविष्य में युद्ध न हो इसलिए इसे अपनी पुत्री का विवाह बहमनी सुल्तान के साथ करना पड़ा तथा दहेज के रूप में दोआब क्षेत्र में स्थित बाकापुरा भी सुल्तान को देना पड़ा।
- 1410 ईस्वी में तुंगभद्रा पर बांध बनवाकर अपनी राजधानी के लिए जल निकलवाया।
- इसी के काल में इतावली यात्री निकोलो कोंटी ने विजयनगर की यात्रा की उसने अपने वृत्तांत में यहां के सामाजिक जीवन,त्योहारों का भी वर्णन किया।
- इस के दरबार में हरविलास सदा तेलुगू कभी श्रीनाथ थे।
- इसी शासक के काल में 1420 ईस्वी में इटली का यात्री निकोलो कोंटी विजयनगर साम्राज्य में आया था।
- हरिहर द्वितीय (1377 – 1404 ईस्वी)
- देवराय द्वितीय (1425 – 1446 ईस्वी)
- देवराय द्वितीय को अभिलेखों में ‘गजबेटकर’ यानी ‘हाथियों का शिकारी’ कहा गया है।
- यह बुक्का का पुत्र था तथा इसके अभिलेख पूरे विजयनगर साम्राज्य में प्राप्त हुए।
- इनको इम्मडी देवराय या प्रोढ़ देवराय भी कहा जाता था।
- इसने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए मुस्लिमों को भर्ती किया और उन्हे जागीर दी।
- इसी के शासनकाल में भारत का राजदूत अब्दुर्रज्जाक विजयनगर साम्राज्य में आया था।
- देवराय द्वितीय ने ‘महानाटक सुधानिधि’ नामक संस्कृत ग्रंथ लिखा था तथा बादरायण के ब्रह्मसूत्र पर टीका भी लिखी थी।
- देवराय द्वितीय (1425 – 1446 ईस्वी)
2. सुलुव राजवंश(1485-1505 ई) :-
- सालुव वंश का संस्थापक ‘सालुव नरसिंह‘ था।
- 1485 ई. में संगम वंश के विरुपाक्ष द्वितीय की हत्या उसी के पुत्र ने कर दी थी, और इस समय विजयनगर साम्राज्य में चारों ओर अशांति व अराजकता का वातावरण था।
- इन्हीं सब परिस्थितियों का फ़ायदा नरसिंह के सेनापति नरसा नायक ने उठाया। उसने विजयनगर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और सालुव नरसिंह को राजगद्दी पर बैठने के लिय आमंत्रित किया।नरसिंह द्वारा नियुक्त नरसा नायक ने चोल, पंड्या, चेरो पर आक्रमण कर इन्हें विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने को मजबूर किया।
- 1505 ई. मे नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने शासक की हत्या कर तुलुव वंश की स्थापना की।
3. तुलुव वंश (1505 – 1570 ईस्वी)
- तुलुव वंश की स्थापना वीर नरसिंह द्वारा 1505 ईस्वी में की गई थी।
- इस वंश का शासक कृष्णदेव राय समूचे विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक हुआ था।
- कृष्णदेव राय ने अमुक्तमाल्यद नामक तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में कृष्णदेव राय की प्रशासनिक नीतियों और उसके राजनीतिक विचारों का उल्लेख किया गया है। इस के दरबार में तेलुगु के आठ विद्वान और कवि रहते थे, जिन्हें इतिहास में ‘अष्टदिग्गज’ के नाम से जाना जाता है।
- कृष्ण देव राय ने ‘यवनराज स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की थी। उसके पुर्तगालियों के साथ काफी अच्छे संबंध थे। कृष्णदेव राय ने भगवान राम को समर्पित हजारा मंदिर का तथा भगवान कृष्ण को समर्पित विट्ठल स्वामी मंदिर का निर्माण भी करवाया था।
- कृष्ण देव राय वैष्णव धर्म का अनुयायी था। उसने मुसलमानों को भी अपने राज्य में नियुक्त किया था। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्णदेव राय को दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली सम्राट बताया है।
- कृष्णदेव राय के बाद अच्युतदेव राय और सदाशिव तुलुव वंश के प्रमुख शासक हुए थे। सदाशिव के शासनकाल के दौरान ही 1565 ईस्वी में तालीकोटा का निर्णायक युद्ध हुआ था। जिसमें विजयनगर साम्राज्य की सेना को चार बहमनी राज्यों बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बीदर ने मिलकर पराजित किया था। इस युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य का पतन लगभग स्पष्ट हो गया था।
कृष्णदेव राय (1509 – 1529 ई.):
- उन्हें ‘आंध्र भोज’ के नाम से भी जाना जाता था।
- वह तुलुवा राजवंश के थे और उन्होंने 1509-1529 ईस्वी तक साम्राज्य (Vijayanagar Empire) पर शासन किया था।
- उन्हें विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire) का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध राजा माना जाता है।
- पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने “कृष्णदेव राय को संभवतः सबसे अधिक भयभीत और पूर्ण राजा माना।”
- कृष्णदेव राय ने 1510 ई. में शिवसमुद्रम और 1512 ई. में रायचूर पर कब्जा कर लिया।
- उसने 1523 ई. में उड़ीसा और वारंगल पर कब्जा कर लिया।
- उसके अधीन विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire) उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक और पश्चिम में अरब सागर से पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था।
कृष्ण देव राय का योगदान
- वह एक कुशल प्रशासक था और उसने सिंचाई के लिए बड़े तालाब और नहरें भी बनवायी थीं।
- उन्होंने एक व्यापक नौसैनिक शक्ति भी बनाई जिसने साम्राज्य (Vijayanagar Empire) के विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिया।
- उन्होंने पुर्तगालियों और अरब व्यापारियों के साथ भी सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा।
- इन सभी ने उसे विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire) के राजस्व को बढ़ाने में मदद की।
- कृष्णदेव राय एक विद्वान और महान विद्वान भी थे।
- उन्होंने कला और वास्तुकला को भी बड़े पैमाने पर संरक्षण दिया।
- कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagar Empire) विकास के उच्चतम बिंदु पर पहुंच गया।
4. आरविडू राजवंश (1570 – 1649 ईस्वी)
- अराविदु वंश की स्थापना 1570 ईस्वी में तिरुमल नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी।
- वेंकट द्वितीय इस वंश का एक प्रमुख शासक था, जिसने अपनी राजधानी चंद्रगिरी में स्थानांतरित की थी।
- यह वंश विजयनगर साम्राज्य का अंतिम वंश था। इसके बाद विजयनगर साम्राज्य पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था।
विजयनगर की संस्कृति और वास्तुकला:-
- विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक राजा ने मजबूत ग्रेनाइट चट्टान से कई मंदिर और मूर्तियां बनवाईं, जिनमें प्रसिद्ध हजारा रामास्वामी मंदिर और विट्ठलस्वामी मंदिर शामिल हैं, और उन्होंने विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक कृष्णदेव राय की सोने की मूर्ति बनवाई।
- विजयनगर साम्राज्य के राजा, जिन्होंने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की, ने पांड्यों के साथ-साथ चोल और चालुक्य शैली की वास्तुकला शैली को अपनाया।
- विजयनगर साम्राज्य में विभिन्न मंडप और विशाल और साथ ही ऊंचे टॉवर और विवाह हॉल बनाए गए थे।
- इस अवधि के दौरान लेखन में कई भाषाएँ विकसित हुईं, जिनमें कन्नड़ और तमिल और तेलुगु साहित्य और संस्कृत शामिल हैं।
- कई लेखन मध्ययुगीन काल के दौरान साहित्य के स्वर्णिम काल को बढ़ाते हैं, जिसमें कविता और कहानियाँ, कई आत्मकथाएँ और एक धार्मिक पुस्तक शामिल हैं।
- हमें भारतीय संस्कृति और धर्म के बारे में बहुत अधिक जानकारी मिलती है।
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