मराठा साम्राज्य का विस्तार: एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय:-
मराठा साम्राज्य भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में इस साम्राज्य ने बहुत कम समय में एक छोटे से क्षेत्र से लेकर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जमा लिया था।
मराठा साम्राज्य के विस्तार के कारण:-
- शिवाजी महाराज का नेतृत्व: शिवाजी महाराज एक कुशल सेनापति और दूरदर्शी राजनेता थे। उन्होंने मराठाओं को एकजुट किया और मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ सफलतापूर्वक युद्ध लड़े।
- छापामार युद्धनीति: मराठों ने छापामार युद्धनीति का प्रयोग करके मुग़लों को परास्त किया।
- सशस्त्र बल: मराठों के पास एक मजबूत सशस्त्र बल था जिसमें घुड़सवार और पैदल सेना शामिल थी।
- लोकप्रिय समर्थन: मराठाओं को आम लोगों का व्यापक समर्थन प्राप्त था।
- राजनीतिक कुशलता: मराठा नेता राजनीतिक रूप से कुशल थे और उन्होंने विभिन्न राज्यों के साथ गठबंधन बनाए।
शिवाजी महाराज का नेतृत्व: – सबसे प्रसिद्ध मराठा सरदार शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बीजापुर सल्तनत पर शासन करने वाले आदिल शाही राजवंश के खिलाफ कई सैन्य अभियानों में मराठों का नेतृत्व किया। अपनी रणनीतिक दृष्टि और सैन्य कौशल के माध्यम से, शिवाजी ने सफलतापूर्वक एक राज्य बनाया, जिसे उन्होंने “हिंदवी स्वराज्य” कहा, जहाँ हिंदू स्वयं शासन कर सकते थे।
मराठा साम्राज्य का विस्तार
शिवाजी महाराज के बाद, उनके उत्तराधिकारियों ने भी साम्राज्य का विस्तार जारी रखा। कुछ प्रमुख शासकों और उनके योगदान इस प्रकार हैं:
- शम्भाजी: शिवाजी महाराज के पुत्र शम्भाजी ने भी मुग़लों के खिलाफ संघर्ष किया और साम्राज्य का विस्तार किया।
- राजाराम: शम्भाजी के बाद राजाराम ने मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया। उन्होंने मुग़लों के दबाव का सामना किया और साम्राज्य को बचाए रखा।
- शाहू: शाहू ने मराठा साम्राज्य को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उन्होंने पेशवाओं को अपना प्रधानमंत्री बनाया और उनके माध्यम से साम्राज्य का प्रशासन चलाया।
शम्भाजी (1680-1689)
- शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य में उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हुआ।
- इस संघर्ष में ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी ने अनुज राजाराम को पराजित कर सत्ता प्राप्त की।
- शम्भाजी में कर्मठता ओर दृढ़-संकल्प का अभाव था। वह कूटनीतिज्ञ भी नहीं था, क्योंकि उसने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को शरण प्रदान कर अपने लिए संकट उत्पन्न कर लिया।
- 1689 ई . में बीजापुर और गोलकुण्डा जीतने के बाद औरंगजेब ने रत्नागिरि के समीप संगमेश्वर के दुर्ग में शम्भाजी को बंदी बना लिया और बाद में उसे मृत्युदण्ड दे दिया।
- शम्भाजी का मंत्री कुलश भी इस समय पकड़ा गया। शम्भाजी ने 1680 ई . से 1689 ई . के बीच मात्र 9 वर्षों तक शासन किया।
राजाराम (1689-1700)
- शम्भाजी के साथ ही औरंगजेब ने उसके पुत्र शाहू को भी बंदी बना लिया, किन्तु राजाराम भाग निकलने में सफल रहा। बाद में उत्तराधिकारी के अभाव में मराठों ने राजाराम को अपना शासक मान लिया, जिसे 19 फरवरी 1689 को राजा बनाया गया।
- राजाराम ने जिंजी को अपनी आरंभिक राजधानी बनाया और बाद में उसने राजधानी सतारा में स्थानांतरित कर दी। शिवाजी द्वारा स्थापित प्रशासननिक पदों के अतिरिक्त राजाराम ने ‘प्रतिनिधि’ नामक एक अन्य पद की स्थापना की।
- उसने परशुराम ऋयम्बक को पहला प्रतिनिधि नियुक्त किया। मुगलों ने मराठों को दबाने का अपना अभियान जारी रखा, परन्तु राजाराम के समय कोई स्थायी निष्कर्ष सामने नहीं आ सका।
- सतारा में 1700 ई . में अपनी मृत्यु के पूर्व 1689 ई . से लेकर 11वर्षों तक राजाराम ने शासन किया।
शिवाजी द्वितीय (1700-1707)
- 1700 ई . में जब राजाराम की मृत्यु हो गई, तब उसका पुत्र शिवाजी द्वितीय नाबालिक था।
- उसे शासक बनाकर राजाराम की पत्नी ताराबाई ने संरक्षिका के रूप में शासन संभाला।
- शिवाजी द्वितीय के संरक्षक के रूप में ताराबाई द्वारा शासन चलाए जाने के समय 1703 ई . में बरार पर तथा 1706 ई . में बड़ौदा और औरंगजेब पर आक्रमण किए गए।
- 1707 ई . में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुअज्जम ने शिवाजी के पुत्र शाहू को कैद से मुक्त कर दिया।
- 1707 ई . से लेकर 1714 ई . तक एक बार फिर से उत्तराधिकार का संघर्ष हुआ।
- इस संघर्ष में अंततः शाहू की जीत हुई और पराजित होने के बाद ताराबाई ने कोल्हापुर में अपनी सत्ता स्थापित कर ली।
- कोल्हापुर में शिवाजी द्वितीय के बाद शम्भाजी द्वितीय शासक बना।
शाहू (1707-49)
- औरंगजेब ने 1689 ई . में शम्भाजी के साथ शाहू को भी बंदी बना लिया।
- 18 वर्षों तक बंदी जीवन बिताने के बाद 1707 ई . में मुगल शासक मुअज्जम ने (औरंगजेब का उत्तराधिकारी) उसे मुक्त कर दिया।
- 1707 ई . में ही शाहू ने स्वयं को मराठा राज्य का शासक घोषित कर दिया और उत्तराधिकार के युद्ध में चाची ताराबाई को पराजित किया।
- अपनी शक्ति में वृद्धि के लिए शाहू ने 1713 ई . में बालाजी विश्वनाथ को मराठा राज्य का पेशवा नियुक्त किया।
- शासन की अस्थिरता का फायदा उठाकर बालाजी विश्वनाथ ने पेशवा की शक्ति में पर्याप्त वृद्धि कर ली।
- शाहू द्वारा बालाजी विश्वनाथ को ‘सेना कर्ते‘ की उपाधि भी प्रदान की गयी। औरंगजेब ने शिवाजी को ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की थी, जबकि फर्रूखसियर ने शाहू को ‘स्वराज्य के शासक’ के रूपमें मान्यता प्रदान की। उसके द्वारा शाहू को छः मुगल क्षेत्रों में चौथ और सरदेशमुखी की वसूली का अधिकार मिला।
- मराठा परिसंघ का निर्माण उसके शासनकाल में ही हुआ। उसने 1707 ई . से लेकर 1749 ई . के बीच 42 वर्षों तक शासन किया।
मराठा साम्राज्य का पतन:-
- 18वीं सदी के अंत में अलग-अलग मराठा सरदारों द्वारा उत्तराधिकार संघर्ष की एक श्रृंखला के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी (जिसकी स्थापना 31 दिसंबर 1660 को हुई थी) के माध्यम से ब्रिटिश हस्तक्षेप हुआ, जो खुद भारत में अपनी शक्ति का आधार स्थापित कर रहे थे।
- मराठा सिंहासन के एक प्रतिद्वंद्वी दावेदार का समर्थन करके, अंग्रेजों ने नए शासक से उसकी जीत पर अधिक रियायतें मांगीं, जिससे मराठा साम्राज्य और भी कमज़ोर हो गया।
- अपने आंतरिक मामलों में इस ज़बरदस्त हस्तक्षेप को रोकने के लिए, अन्य मराठा सरदारों ने तीन एंग्लो-मराठा युद्धों की एक श्रृंखला में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
- पहला युद्ध 1782 में मराठों की जीत के साथ समाप्त हुआ, जिसमें युद्ध-पूर्व स्थिति बहाल हो गई।
- दूसरे एंग्लो मराठा युद्ध का कारण मराठों की हार थी, जिसमें उन्हें ब्रिटिश सर्वोच्चता को स्वीकार करने वाली संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- 1817-1818 का तीसरा एंग्लो मराठा युद्ध संप्रभुता हासिल करने का अंतिम प्रयास था, जिसके परिणामस्वरूप मराठा स्वतंत्रता खो गई: इसने ब्रिटेन को भारत के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण करने के लिए छोड़ दिया।
- अंतिम पेशवा, नाना साहिब, जिनका जन्म गोविंद धोंडू पंत के रूप में हुआ था, पेशवा बाजी राव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे।
- वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे ।
- हालाँकि वे विद्रोह में हार गए, लेकिन उनकी विरासत ने कई लोगों को भारतीय स्वतंत्रता के नाम पर संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
Leave a Reply