आरंभीक जीवन :- औरंगजेब बाबर के खानदान के थे, जिन्हें मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है।
- औरंगजेब के जन्म के समय उनके पिता शाहजहाँ गुजरात के गवर्नर थे।
- महज 9 साल की उम्र में ही औरंगजेब को उनके दादा जहांगीर द्वारा लाहोर में बंधक बना लिया गया था, इसकी वजह उनके पिता का एक युद्ध में असफल होना था।
- 2 साल बाद 1628 में जब शाहजहाँ आगरा के राजा घोषित किये गए, तब औरंगजेब व उनके बड़े भाई दारा शिकोह वापस अपने माता पिता के साथ रहने लगे।
- एक बार 1633 में आगरा में कुछ जंगली हाथियों ने हमला बोल दिया, जिससे प्रजा में भगदड़ मच गई, औरंगजेब ने बड़ी बहादुरी से अपनी जान को जोखिम में डाल, इन हाथियों से मुकाबला किया और इन्हें एक कोठरी में बंद किया. यह देख उनके पिता बहुत खुश हुए और उन्हें सोने से तोला और बहादुर की उपाधि दी. औरंगजेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था।
- अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था।
- वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो एशिया के राजाओं में सामान्यतः थे।
- वह यति के जैसा जीवन जीता था।
- खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह बेहद संयम बरतता था।
- अपनी सूझ बूझ से औरंगजेब अपने पिता के चहिते बन गए थे, महज 18 साल की उम्र में उन्हें 1636 में दक्कन का सूबेदार बनाया गया.
- 1637 में औरंगजेब ने सफविद की राजकुमारी दिलरास बानू बेगम से निकाह किया, ये औरंगजेब की पहली पत्नी थी.
- 1644 में औरंगजेब की एक बहन की अचानक म्रत्यु हो गई, इतनी बड़ी बात होने के बावजूद औरंगजेब तुरंत अपने घर आगरा नहीं गए, वे कई हफ्तों बाद घर गए.
- यह वजह पारिवारिक विवाद का बहुत बड़ा कारण बनी, इस बात से आघात शाहजहाँ ने औरंगजेब को दक्कन के सुबेदारी के पद से हटा दिया.
- 28 मई 1633 में जब मुग़ल साम्राज्य युद्ध कर रहा था तभी अचानक एक लड़ाकू हाथी ने उनके शरीर पर प्रहार किया, जिससे उन्हें कई दिनों तक चोटिल रहने के बाद भी वे युद्ध में लड़ते रहे, युद्ध का लगभग पूरा क्षेत्र हाथियों से भरा पड़ा था और लड़ते-लड़ते ही अंत में उन्हें मृत्यु प्राप्त हुई और उनकी इसी बहादुरी से प्रेरित होकर उन्हें बहादुर का शीर्षक दिया गया।
- अंतिम युद्ध में कमजोर पड़ने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी।
- वे मुग़ल साम्राज्य के एक निडर योद्धा थे ।
- उनका हमेशा से ऐसा मानना था कि अगर आप बिना लड़े ही शत्रु की ताकत देखकर ही हार मान लेते हो तो फिर आपसे बुरा कोई नहीं।
- इसमें संदेह नहीं कि औरंगजेब मुगल सल्तनत के महान सम्राट थे और उनका समय मुग़ल-साम्राज्य की समृध्दि की समृध्दि का स्वर्णिम युग था ।
- औरंगज़ेब के शासन काल में युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का तांता लगा रहा।
- पश्चिम में सिक्खों की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी।
- दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा को अंततः उसने हरा दिया पर इस बीच शिवाजी की मराठा सेना ताकत बढ़ा रही थी ।
- शिवाजी को औरंगज़ेब ने गिरफ़्तार कर लिया पर शिवाजी और सम्भाजी के भाग निकलने पर उसके लिए बेहद फ़िक्र का सबब बन गया।
भारत में मराठो ने पुरे देश में अपनी ताकत बढाई शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठों ने औरंग़जेब को परेशान किया। बुंदेला का युद्ध :-
- 15 दिसम्बर 1634, औरंगजेब नें अपनी पहली सेना तैयार की जिसमे कुल 10,000 घोड़े और 4,000 लोग थे।
- औरंगजेब कि सेना लाल तम्बुओं का इस्तेमाल करती थी। शाहजहाँ द्वारा बुंदेलखंड भेजी गयी सेना का दायित्व औरंगजेब के हाँथ में रखा गया था।
- यह युद्ध ओरछा के शासक झुझार सिंह के खिलाफ लड़ा गया और इसमें जुझार सिंह को वहाँ से हटा दिया गया।
- औरंगजेब का शासन कल दो बराबर भागों में गिर पड़ा लगभग 1680 तक।
- वह एक मिश्रित हिन्दू-मुस्लिम साम्राज्य का सक्षम मुस्लिम सम्राट था।
- लोग खासकर उसके बेरहमी स्वभाव कि वजह से उसे पसंद नहीं करते थे परन्तु उसकी ताकत और कौशल के लिए उसे सम्मानित भी किया जा चूका था।
मेवाड़ के प्रति नीति :-
- मारवाड़ पर औरंगज़ेब की निगाहें काफ़ी दिन से गड़ी थीं।
- 20 दिसम्बर, 1678 ई. को ‘जामरुद्र’ में महाराजा यशवंतसिंह की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब ने उत्तराधिकारी के अभाव में मुग़ल साम्राज्य का बहुत बड़ा कर्ज़ होने का आरोप लगाकर उसे ‘खालसा’ के अन्तर्गत कर लिया।
- औरंगज़ेब ने यशवंतसिंह के भतीजे के बेटे इन्द्रसिंह राठौर को उत्तराधिकार शुल्क के रूप में 36 लाख रुपये देने पर जोधपुर का राणा मान लिया।
- कालान्तर में महाराजा यशवंतसिंह की विधवा से एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम अजीत सिंह रखा गया। औरंगज़ेब ने यशवंतसिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी पृथ्वी सिंह को ज़हर की पोशाक पहनाकर चालाकी से मरवा दिया।
- औरंगज़ेब ने अजीत सिंह और यशवंतसिंह की रानियों को नूरगढ़ के क़िले में क़ैद करा दिया।
- औरंगज़ेब की शर्त थी कि, यदि अजीत सिंह इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो, उसे मारवाड़ सौंप दिया जायगा।
- राठौर नेता दुर्गादास किसी तरह से अजीत सिंह एवं यशवंतसिंह की विधवाओं को साथ लेकर जोधपुर से भागने में सफल रहा।
- राठौर दुर्गादास की अपने देश के प्रति निःस्वार्थ भक्ति के लिए कहा जाता है कि, ‘उस स्थिर हृदय को मुग़लों का सोना सत्यपथ से डिगा न सका, मुग़लों के शस्त्र डरा नहीं सके।’
औरंगजेब की धार्मिक नीतियाँ औरंगजेब, जो कि मुग़ल साम्राज्य का छठा सम्राट था, अपने शासनकाल (1658-1707) के दौरान धार्मिक नीतियों के लिए जाना जाता है। उसकी धार्मिक नीतियाँ प्रमुख रूप से इस्लामिक शरिया के पालन पर आधारित थीं, और इनमें कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- धार्मिक संप्रदायों के प्रति कठोरता: औरंगजेब ने अपनी नीतियों के माध्यम से इस्लाम के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा को दर्शाया। उसने हिंदू मंदिरों को तोड़ा और गैर-मुस्लिम धर्मों पर कुछ प्रतिबंध लगाए, जिससे उसके शासनकाल में धार्मिक असहमति और संघर्ष बढ़े।
- जज़िया कर (धार्मिक कर):
- जजिया कर साम्राज्य के स्थायी गैर-मुस्लिम निवासियों से वसूला जाने वाला कर था।
- अकबर ने धर्मनिरपेक्ष होने के कारण अपने शासन के दौरान इस कर को बंद कर दिया था।
- औरंगजेब ने इस कर को और भी सख्त आदेशों और नियमों के साथ फिर से लागू किया।
- ऐसा माना जाता है कि इसका दूसरा छिपा हुआ उद्देश्य हिंदू नागरिकों को इस्लाम में धर्मांतरित करने के लिए प्रेरित करना था।
- इनके अलावा औरंगजेब द्वारा अपनाई गई कुछ सामान्य हिंदू विरोधी नीतियां भी थीं, जिनमें शामिल हैं-
- सरकारी नौकरियों से हिन्दुओं को हटाना
- विभिन्न तरीकों से हिंदू नागरिकों का मुसलमानों में धर्मांतरण
- विभिन्न सामाजिक प्रतिबंध हिंदू लोगों के लिए जीवन को कठिन बनाते हैं
3. हिंदू प्रमुखों पर नियंत्रण: औरंगजेब ने हिंदू प्रमुखों और रियासतों को अधीन करने की कोशिश की। उसने कई हिंदू रियासतों पर आक्रमण किया और उन्हें अपने शासन के तहत लाने की कोशिश की।
4. इस्लामिक कानूनों का पालन: उसने इस्लामिक शरिया कानूनों को लागू किया और मुसलमानों के लिए धार्मिक व सामाजिक नियमों को सख्ती से लागू किया।
5. कलात्मक और सांस्कृतिक नीतियाँ: औरंगजेब के शासनकाल में कला और संस्कृति पर भी असर पड़ा। उसने कई कलात्मक और सांस्कृतिक गतिविधियों को सीमित किया, जिससे मुग़ल काल की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता में कमी आई।
- औरंगजेब के आलोचकों के अनुसार, उसकी धार्मिक नीतियों का एकमात्र उद्देश्य पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को इस्लामी राष्ट्र/साम्राज्य में बदलना था।
- वह शिया मुसलमानों के भी खिलाफ था।
- इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसकी धार्मिक नीतियों को दो पहलुओं पर विचार करके लागू किया गया माना जाता है।
- पहला इस्लामी समुदाय का समर्थन, प्रचार और विस्तार करना और दूसरा हिंदू विरोधी कदम उठाना।
- औरंगजेब द्वारा अपनाई गई विभिन्न नीतियां इस सिद्धांत का समर्थन करती हैं-
इस्लामी कानून की स्थापना:-
- उन्होंने फतवा-ए-आलमगीरी की घोषणा की, जो नैतिकता, कानून और नियमों का संकलन है जो पूरी तरह से इस्लाम पर आधारित है।
- वह पूर्ण शरिया कानून और इस्लामी अर्थशास्त्र की स्थापना करने वाले बहुत कम मुगल सम्राटों में से एक थे।
मंदिर और हिंदू मूर्तियों का विनाश:-
- कई इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब ने कई मंदिरों और हिंदू मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था।
- इनमें विश्वनाथ मंदिर, चिंतामणि मंदिर, सोमनाथ मंदिर और कई अन्य मंदिर शामिल थे।
- कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि अकेले मेवाड़ में उसने करीब 240 मंदिरों को नष्ट किया था!
इस्लाम का समर्थक : • औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था । • औरंगजेब ने मुद्राओं पर कलमा खुदवाना बंद करवा दिया । • उसने नौरोज त्यौहार मनाना, तुलादान एवं झरोखा दर्शन बंद कर दिया । • उसने दरबार में होली, दीपावली मनाना बंद करवा दिया । • उसने 1679 ई. में हिंदुओं पर पुन: जजिया तथा तीर्थ यात्रा कर लगाया ।
- यह कुरान के नियमों का पूर्णत: पालन करता था । • औरंगजेब को जिंदा पीर भी कहा जाता है। • औरंगजेब ने राजपूतों (हिंदुओं में) के अतिरिक्त अन्य किसी हिंदू जाति को पालकी का उपयोग करने तथा अच्छे हथियार रखने पर रोक लगा दी। • इसने इसने भांग का उत्पादन बंद करवा दिया व वेश्याओं को देश से बाहर निकलने को कहा व सती प्रथा पर रोक लगवाई। • औरंगजेब की धार्मिक नीति के विरूध्द सबसे पहले जाटों ने विरोध किया 1669 ई. में स्थानीय जाटों ने गोकुल के नेतृत्व में विद्रोह किया तिलपत के युध्द मे जाट परास्त हो गये।
- औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा|
- वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शक्तिशाली, शातिर व्यक्ति था, जिसने अपने जीवनकाल में मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और 15 करोड़ लोगों पर शासन किया जो उस समय दुनिया की आबादी का 1/4 भाग था|
- पूरे हिन्दुस्तान को एक करने वाला अकेला औरंज़ेब ही हुआ उसने अशोक और अकबर से भी बड़ा साम्राज्या विस्तार किया था|
- इतने विशाल साम्राज्य को चलाने के लिए धन की भी ज़रूरत होती है, धन एकत्रित करने के लिए उसको बहुत से कठोर कदम उठाने पड़े थे|
- पूरे साम्राज्य पर फतवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी कानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए गैर-मुस्लिमो पर अतिरिक्त कर भी लगाया|
- गैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था|
- औरंगज़ेब ने जज़िया कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे अक़बर ने खत्म कर दिया था।
मृत्यु :-
- औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया था।
- उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी।
- इसलिए सन् 1683 में औरंगज़ेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण गये।
- वह राजधानी से दूर रहते हुए, अपने शासन−काल के लगभग अंतिम 25 वर्ष तक उसी अभियान में रहे।
- वही युद्ध के दौरान एक हाथी के प्रहार से चोटिल हो गये। जिससे उन्हें कई दिनों तक चोटिल रहने के बाद भी वे युद्ध में लड़ते रहे, युद्ध का लगभग पूरा क्षेत्र हथियो से भरा पड़ा था और लड़ते-लड़ते ही अंत में 3 मार्च सन् 1707 ई. को मृत्यु हो गई।
- और उनकी इसी बहादुरी से प्रेरित होकर उन्हें बहादुर का शीर्षक दिया गया।
- अंतिम युद्ध में कमजोर पड़ने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी।
- वे मुगल साम्राज्य के एक निडर योद्धा थे।
- औरंगजेब इतिहास के सबसे सशक्त और शक्तिशाली राजा माने जाते थे।
औरंगजेब की दक्कन नीति औरंगजेब की दक्कन नीति का उद्देश्य दक्कन सल्तनतों , विशेष रूप से बीजापुर और गोलकुंडा पर मुगल नियंत्रण बढ़ाना और उन्हें सीधे मुगल शासन के अधीन लाना था। औरंगजेब ने दक्कन को राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टि से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में देखा।
- बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्ज़ा: उसने सैन्य अभियान शुरू किए और कई सालों तक इन सल्तनतों की घेराबंदी की। आखिरकार, 1686 में, उसने बीजापुर पर सफलतापूर्वक कब्ज़ा कर लिया, इसके बाद 1687 में गोलकुंडा पर कब्ज़ा कर लिया और उसे मुगल शासन के अधीन कर दिया।
- मराठा प्रतिरोध: शिवाजी और बाद में उनके पुत्र संभाजी जैसे नेताओं के नेतृत्व में, मराठों ने औरंगजेब की विस्तारवादी योजनाओं का विरोध किया और उसे अपनी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया ।
- आर्थिक नुकसान: औरंगजेब के दक्कन में लंबे समय तक चले सैन्य अभियानों ने साम्राज्य के संसाधनों को काफी हद तक खत्म कर दिया। एक बड़ी सेना को बनाए रखने और नए अधिग्रहीत क्षेत्रों के प्रशासन की लागत ने मुगल खजाने पर दबाव डाला।
- स्थिरता पर प्रभाव: औरंगजेब का ध्यान दक्कन अभियानों पर केन्द्रित होने के कारण साम्राज्य के अन्य भागों से ध्यान हट गया , जिसके परिणामस्वरूप बंगाल और पंजाब जैसे क्षेत्रों में शासन की उपेक्षा हुई ।
- लंबे समय तक चली सैन्य मुठभेड़ों और स्थानीय शासकों एवं समुदायों के दमन ने अंततः औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य के पतन में योगदान दिया।
मुगल साम्राज्य के पतन में औरंगजेब की नीतियों की भूमिका:- औरंगज़ेब के शासनकाल को अक्सर कई कारकों की वजह से मुग़ल साम्राज्य के पतन से जोड़ा जाता है। हालाँकि कई कारकों ने इसे प्रभावित किया, लेकिन औरंगज़ेब की नीतियों और कार्यों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- धार्मिक नीतियाँ: उन्होंने अन्य धर्मों की तुलना में इस्लाम को प्राथमिकता देने वाले उपायों को लागू किया , जैसे कि जजिया (गैर-मुसलमानों पर कर) लगाना ।
- इस नीति ने गैर-मुस्लिम लोगों को अलग-थलग कर दिया , जिससे व्यापक असंतोष और प्रतिरोध पैदा हुआ।
- दक्कन अभियान: दक्कन युद्धों ने राजकोष को खाली कर दिया, सेना पर दबाव डाला और साम्राज्य के भीतर अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान हटा दिया। दक्षिण में लंबे समय तक चले संघर्षों ने केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया और क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा दिया।
- वित्तीय कुप्रबंधन: सैन्य खर्च में वृद्धि, राजस्व सुधारों की कमी और अपर्याप्त राजस्व संग्रह तंत्र के कारण उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- साम्राज्य को लगातार वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिसके कारण मुद्रास्फीति, आर्थिक अस्थिरता और अपनी विशाल क्षेत्रीय सम्पत्ति को बनाये रखने में असमर्थता उत्पन्न हुई।
- विद्रोह और क्षेत्रीय विखंडन: जाटों , सिखों, राजपूतों और मराठों सहित अन्य ने मुगल सत्ता को चुनौती दी और अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की मांग की।
- इन विद्रोहों ने साम्राज्य के संसाधनों को नष्ट कर दिया, प्रांतों पर नियंत्रण कमजोर कर दिया और साम्राज्य के विखंडन में योगदान दिया ।
- प्रशासनिक केंद्रीकरण: औरंगजेब के सत्ता के मजबूत केंद्रीकरण और निरंकुश शासन के कारण प्रशासनिक अक्षमताएं पैदा हुईं।
- इस केंद्रीकृत दृष्टिकोण ने स्थानीय चुनौतियों का जवाब देने की साम्राज्य की क्षमता में बाधा उत्पन्न की तथा प्रशासनिक बोझ बढ़ा दिया।
- उत्तराधिकार संकट: औरंगजेब के लंबे शासनकाल और उसकी नीतियों के कारण उत्पन्न तनाव के परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार संकट उत्पन्न हो गया।
- बाद के मुगल शासक अक्सर कमजोर और अनुभवहीन थे और उन्हें सिंहासन के लिए प्रतिद्वंद्वी दावेदारों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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