गुप्तोत्तर काल (600- 750 ईस्वी) मध्य एशिया से हूणों के लगातार आक्रमण ने गुप्तों को बहुत कमजोर बना दिया और इस तरह अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। इसका संकेत बाद के गुप्त शासकों के सोने के सिक्कों से मिलता है, जिनमें सोने की मात्रा कम और मिश्रधातु अधिक है।
- गुप्त साम्राज्य के पतन के परिणामस्वरूप उत्तर भारत के विभिन्न भागों में अनेक शासक राजवंशों का उदय हुआ।
600- 750 ईस्वी में उत्तर और दक्षिण भारत में राजवंशों का प्रभुत्व :-
उत्तर भारत के राजवंश:-
- मैत्रक
- मौखरि
- गौड़
- हूण
- पुष्यभूति
- हर्षवर्धन
दक्कन और दक्षिण भारत के राजवंशों:-
- वाकाटक
- बादामी के चालुक्य
- इक्ष्वाकु
- कांची के पल्लव
- कदम्ब
- पश्चिमी गंग या मैसूर के गंग
- कलाभ्र
स्रोत:-
भारतीय साहित्य:-
- दार्शनिक और धार्मिक ग्रन्थ
विदेशी साहित्य:-
- चीनी और अरबी साहित्य।
- उदहारण के लिए, फाहियान, ह्वेनत्सांग जैसे चीनी यात्रियों के विवरण
मैत्रक वंश
- भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध शासनकर्ता राजवंशों में से एक।
- 5 वीं से 8 वीं शताब्दी तक गुजरात और सौराष्ट्र (काठियावाड) में इसका शासन था।
- मैत्रक शासक धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे।
- उनका राज्य बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
- इस वंश का संस्थापक भट्टारक एक सेनापति था, जिसने गुप्त वंश के पतन का लाभ उठाकर स्वयं को गुजरात और सौराष्ट्र का शासक घोषित कर दिया और वल्लभी को अपनी राजधानी बनाया।
- हालांकि आरंभिक मैत्रक राजा तकनीकी रूप से गुप्त शासकों के सामंत थे; लेकिन वास्तव में वे स्वतंत्र थे।
- शक्तिशाली शिलादित्य प्रथम (लगभग छठी शताब्दी) के शासन काल में यह वंश बहुत प्रभावशाली हो गया था। मैत्रक वंश का शासन मालवा (मध्य प्रदेश) और राजस्थान में भी फैल गया था, लेकिन बाद में मैत्रकों को दक्कन के चालुक्यों और कन्नौज के शासक हर्ष से पराजित होना पड़ा।
- हर्ष की मृत्यु के बाद मैत्रक फिर से उठ खड़े हुए, लेकिन 712 से सिंध में स्थापित हो चुके अरबों ने अंतिम मैत्रक राजा शिलादित्य चतुर्थ को मार डाला और 780 में उनकी राजधानी को ध्वस्त कर दिया।
- भट्टारक और उसके उत्तराधिकारी धार्मिक संस्थानों के महान् संरक्षक थे।
- उनका राज्य बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और परंपरागत रूप से माना जाता है कि पांचवीं शताब्दी में वल्लभी में ही श्वेतांबर जैन नियमावली सूत्रबद्ध की गई।
मौखरि वंश
- मौखरि वंश की स्थापना उत्तर गुप्तकाल के पतन के बाद हुई थी।
- गया ज़िले के निवासी मौखरि लोग चक्रवर्ती गुप्त राजवंश के समय में उत्तर गुप्तवंश के लोगों की तरह ही सामन्त थे।
- इस वंश के लोग जो अधिकतर उत्तर प्रदेश के कन्नौज में और राजस्थान के बड़वा क्षेत्र में फैले हुए थे, तीसरी सदी में इनका प्रमाण मिलता है।
- मौखरि वंश के राजाओं का उत्तर गुप्तवंश के चौथे शासक कुमारगुप्त के साथ युद्ध हुआ था, इस युद्ध में ईशानवर्मा ने मौखरि वंश के शासकों से मगध प्रदेश को छीन लिया था।
- मौखरि वंश के शासकों ने अपनी राजधानी कन्नौज बनाई और शासन किया।
- कन्नौज का प्रथम मौखरि वंश का शासक हरिवर्मा था।
- हरिवर्मा ने 510 ई. में शासन किया था।
- उसका वैवाहिक सम्बन्ध उत्तरवंशीय राजकुमारी हर्ष गुप्त के साथ हुआ था।
- ईश्वरवर्मा का विवाह भी उत्तर गुप्तवंशीय राजकुमारी उपगुप्त के साथ हुआ था।
- इनका शासन कन्नौज तक ही सीमित रहा, ये उसका विस्तार नहीं कर पाये।
- यह राजवंश तीन पीढ़ियों तक शासक रहा।
- हरदा से प्राप्त लेख से यह स्पष्ट होता है कि सूर्यवर्मा ईशानवर्मा का छोटा भाई था।
- अवंतिवर्मा इस वंश का सबसे शक्तिशाली तथा प्रतापी राजा था और इसके बाद ही मौखरि वंश का अन्त हो गया।
गौड़ राजा शशांक का शासनकाल (छठी शताब्दी के अंत – 637 ईस्वी)
- सत्ता में वृद्धि: गौड़ साम्राज्य के एकमात्र ज्ञात शासक शशांक ने उत्तरकालीन गुप्त राजा महासेनगुप्त को उखाड़ फेंका, जिससे 7वीं शताब्दी ई. में राज्य स्वतंत्र हो गया।
- देवगुप्त के साथ गठबंधन: शशांक ने महासेनगुप्त के पुत्र देवगुप्त के साथ रणनीतिक रूप से गठबंधन किया और साथ मिलकर उन्होंने मौखरियों की बढ़ती शक्ति का सामना किया।
- हर्षवर्धन गाथा में भूमिका: बाणभट्ट के हर्षचरित में हर्ष के जीवन में उत्पात मचाने में शशांक की भूमिका का वर्णन है, जिसमें उसे रणनीतिक युद्धाभ्यास और गठबंधन में शामिल एक युद्धप्रिय सम्राट के रूप में दर्शाया गया है।
- कथित चाल: बाणभट्ट के विवरण से पता चलता है कि शशांक ने एक चाल के माध्यम से हर्ष के भाई राज्यवर्धन की मृत्यु में भूमिका निभाई थी। इतिहासकारों के बीच इस कथा की प्रामाणिकता पर बहस होती है।
- राज्य का विस्तार शशांक के शिलालेख: शशांक के 619/20 ई. के शिलालेखों में उन्हें “महान राजाओं का राजा” बताया गया है, जो चार महासागरों से घिरे विशाल प्रदेशों पर शासन करते थे।
- ह्वेन त्सांग का विवरण: चीनी बौद्ध भिक्षु-विद्वान ह्वेन त्सांग ने शशांक को कर्णसुवर्ण का राजा घोषित किया है, जो इस अवधि के दौरान राज्य की पहुंच पर प्रकाश डालता है।
- क्षेत्र: शशांक के राज्य में मगध और गंजम जैसे क्षेत्र शामिल थे जो वर्तमान ओडिशा में स्थित हैं।
- सरकार और धर्म प्रशासनिक निरंतरता: गौड़ साम्राज्य ने गुप्त साम्राज्य की प्रशासनिक शैली को बनाए रखा, जिसमें भुक्ति और जिला अधिकारी जैसे प्रभाग मौजूदा तर्ज पर जारी रहे।
- हिंदू धर्म का प्रचार: शशांक ने हिंदू धर्म का सक्रिय रूप से समर्थन किया, जैसा कि उसके सिक्कों पर शिव और लक्ष्मी जैसे हिंदू देवताओं के चित्र से पता चलता है।
- सैन्य संगठन हथियार और पोशाक: सैनिक विशिष्ट पोशाक पहनते थे, जिसमें ढीले या पीछे बंधे बाल, खोपड़ी की टोपी, अंगरखे, क्रॉस बेल्ट और साधारण पगड़ी शामिल थी। सेना ने विभिन्न हथियारों, ढालों का इस्तेमाल किया और इसमें हाथी, घुड़सवार सेना और पैदल सेना शामिल थी।
हूण
- हूण मध्य एशिया की एक असभ्य जंगली जाति थी। उनका निवास स्थान चीन के आसपास था। हूण मूलतः मंगोल जाति के थे और सिथियनों की एक शाखा थे।
- आजीविका के साधनों की खोज में दूसरी शताब्दी ई0पू0 में हूण अपने मूल निवास स्थान को छोड़ते समय दो शाखाओं में बट गए-पहली शाखा ने वोल्गा नदी की ओर से यूरोप में प्रवेश किया और दूसरी शाखा आक्सस की घाटी में आ बसी। भारत में जो हूण आए, उनका संबंध इसी दूसरी शाखा से था।
- आक्सस घाटी के हूणों ने ईरान में तत्कालीन शासक फिरोज को पराजित करने के बाद काबुल में कुषाण-राज्य को नष्ट किया। काबुल के आगे पश्चिमी दर्रां को पार करते हुए हूणों ने भारत पर आक्रमण करने शुरू किए। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों को ‘एप्थेलिटीज’ या ‘सफेद हूण’ की संज्ञा दी जाती है।
- गुप्त साम्राज्य के चरमोत्कर्ष के समय पांचवीं शताब्दी ई0 में उत्तर-पश्चिमी की ओर से हूणों ने भारत पर आक्रमण करना शुरू किया। हूणों ने सर्वप्रथम 458 ई0 में भारत पर आक्रमण किया। उस समय गुप्त साम्राज्य (उत्तरी भारत) का शासक स्कंदगुप्त था।
- स्कंदगुप्त ने हूणों को पराजित कर उन्हें वापस जाने के लिए विवश कर दिया। इतिहासकारों द्वारा स्कंदगुप्त को एशिया अथवा यूरोप का ऐसा पहला शासक होने का श्रेय दिया जाता है, जिसने हूणों को पराजित किया।
- 466-67 ई0 में तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर दूसरी बार आक्रमण किया। इस बार भी हूणों को स्कंदगुप्त के हाथों पराजित होना पड़ा। 484 ई0 में हूणों ने पूर्ण शक्ति के साथ भारत पर आक्रमण किए। स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारी कमजोर थे और उनमें हूणों का प्रतिरोध करने की क्षमता नहीं थी। इसलिए, वे भारत के कुछ भू-भाग पर आधिपत्य स्थापित करने में सफल रहे।
पुष्यभूति वंश
- पुष्यभूति वंश की स्थापना छठी शताब्दी ई. में गुप्त वंश के पतन के बाद हरियाणा के अम्बाला ज़िले के थानेश्वर नामक स्थान पर हुई थी।
- इस वंश का संस्थापक ‘पुष्यभूति’ को माना जाता है, जो कि शिव का उपासक और उनका परम भक्त था।
- इस वंश में तीन राजा हुए- प्रभाकरवर्धन और उसके दो पुत्र राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन।
- यह वंश हूणों के साथ हुए अपने संघर्ष के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ।
- संभवतः प्रभाकरवर्धन इस वंश का चौथा शासक था।
- इसके विषय में जानकारी हर्षचरित से मिलती है।
- प्रभाकरवर्धन दो पुत्रों- राज्यवर्धन और हर्षवर्धन एवं एक पुत्री राज्यश्री का पिता था।
- पुत्री राज्यश्री का विवाह प्रभाकरवर्धन ने मौखरि वंश के गृहवर्मन से किया था।
- प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद राज्यवर्धन सिंहासनारूढ़ हुआ, पर शीघ्र ही उसे मालवा के ख़िलाफ़ अभियान के लिए जाना पड़ा।
- अभियान की सफलता के उपरान्त लौटते हुए मार्ग में गौड़ वंश के शशांक ने राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
- इसके बाद हर्षवर्धन राजा बना और वह शशांक की मृत्यु के बाद ही अपने राज्य का पर्याप्त विस्तार कर सका।
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