भारतीय कला और संस्कृति पर कुषाण साम्राज्य का प्रभाव:-
- कुषाण साम्राज्य, जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी तक अस्तित्व में था, का भारतीय कला और संस्कृति पर महत्वपूर्ण प्रभाव था।
- वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के क्षेत्र में अपनी राजधानी के साथ, साम्राज्य ने भारतीय सभ्यता के विभिन्न पहलुओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारतीय कला और संस्कृति पर कुषाण साम्राज्य के प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:
I. सांस्कृतिक संश्लेषण: – कुषाण साम्राज्य ने विभिन्न संस्कृतियों के मिश्रण के रूप में कार्य किया, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठा सांस्कृतिक संश्लेषण हुआ।
- यह साम्राज्य पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का चौराहा था, जो भारत को मध्य एशिया, चीन, फारस और रोमन साम्राज्य से जोड़ता था। –
- इस सांस्कृतिक संश्लेषण ने विविध कलात्मक और सांस्कृतिक तत्वों के समामेलन को जन्म दिया , गांधार कला, जिसका नाम वर्तमान पाकिस्तान के क्षेत्र के नाम पर रखा गया है, ने ग्रीक, रोमन और भारतीय कलात्मक परंपराओं का मिश्रण किया।
- गांधार कला की विशेषता बुद्ध और अन्य बौद्ध आकृतियों के यथार्थवादी चित्रण हैं, जो अक्सर हेलेनिस्टिक और रोमन मूर्तियों से प्रेरित होते हैं।
- इसने मूर्तिकला में चिरोस्कोरो (प्रकाश और छाया) और ड्रेपरी के उपयोग जैसी नई तकनीकों की शुरुआत की।
II. मथुरा कला विद्यालय: – कुषाण साम्राज्य ने मथुरा कला विद्यालय के विकास को भी बढ़ावा दिया, जो उस अवधि के दौरान स्वदेशी भारतीय कलात्मक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता था।
- मथुरा विद्यालय ने एक विशिष्ट शैली विकसित की, जिसने मानव आकृतियों की कामुकता और जीवन शक्ति पर जोर दिया।
- मथुरा विद्यालय की मूर्तियों में विभिन्न देवताओं, विशेष रूप से हिंदू देवी-देवताओं के साथ-साथ बुद्ध के जीवन के दृश्यों को दर्शाया गया है।
- वे अक्सर जटिल विवरण और प्राकृतिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं, जो कुषाण शासकों के प्रभाव को दर्शाते हैं।
III. बौद्ध धर्म का प्रसार: – कुषाण साम्राज्य ने भारत में बौद्ध धर्म के प्रसार और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- साम्राज्य के शासकों, विशेष रूप से कनिष्क ने बौद्ध धर्म को अपनाया और सक्रिय रूप से इसकी शिक्षाओं को बढ़ावा दिया।
- परिणामस्वरूप, इस अवधि के दौरान बौद्ध कला और वास्तुकला का विकास हुआ।
- कुषाण शासकों ने कई बौद्ध मठों, स्तूपों और चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं का निर्माण करवाया।
- इन संरचनाओं में अक्सर बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को दर्शाती विस्तृत मूर्तियाँ और भित्ति चित्र होते थे।
IV. गुप्त कला पर प्रभाव: – कुषाण साम्राज्य के दौरान स्थापित कलात्मक परंपराओं का बाद के काल, विशेष रूप से गुप्त साम्राज्य पर स्थायी प्रभाव पड़ा। गुप्त शासकों ने कुषाण कला शैली से प्रेरणा ली और इसे और विकसित किया।
भारतीय कला एवं संस्कृति में कुषाणों के योगदान का मूल्यांकन निम्नलिखित प्रकार से किया गया है-
- कुषाण साम्राज्य ने विभिन्न शैलियों और देशों में प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों और अन्य कारीगरों को इकट्ठा किया जिससे गांधार एवं मथुरा जैसी कला की नई शैलियों का विकास हुआ।
- गांधार शैली को ग्रीक-बौद्ध शैली भी कहा जाता है। हालाँकि, इस शैली का विकास उत्तर-पश्चिम में ई.पू. प्रथम शताब्दी के मध्य गांधार में हुआ था लेकिन इसका सर्वाधिक विकास कुषाण काल में हुआ।
- वर्तमान उत्तर प्रदेश के मथुरा में विकसित कला की शैली को ही मथुरा कला के नाम से जाना जाता है। पहली सदी के शुरुआती चरण में यह कला स्वदेशी तर्ज पर विकसित हुई। इसमें बुद्ध के चित्रों में उनके चेहरे पर आध्यात्मिक भावना प्रदर्शित होती है जो कि गांधार कला में काफी हद तक अनुपस्थित थी।
- मथुरा कला में शिव और विष्णु को भी क्रमश: उनकी पत्नी पार्वती एवं लक्ष्मी की छवियों के साथ चित्रित किया गया है। मथुरा कला में यक्षिणी और अप्सरा के चित्रों को खूबसूरती से उकेरा गया था।
- कनिष्क द्वारा चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर में किया गया जिसमें वसुबन्धु, अश्वघोष और नागार्जुन जैसे प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिकों ने भाग लिया। इसी समय बौद्ध धर्म की नई शाखा महायान की उत्पत्ति हुई।
- कुषाणों के संरक्षण में बौद्ध धर्म का विकास हुआ लेकिन मथुरा से सैकड़ों अवशेष व मूर्तियाँ आदि मिले हैं जो कुषाण संरक्षण में बने और ये जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
- महायान बौद्ध विद्वान अश्वघोष ने बड़ी मात्रा में बुद्धचरित्र, सूत्रालंकार जैसे संस्कृत साहित्य की रचना की। वसुमित्र ने महाविभाषा को संकलित किया। नागार्जुन ने दर्शन पर पुस्तकें लिखीं। कनिष्क के राज्य में प्रसिद्ध चिकित्सक चरक एवं महान भवन निर्माता (बिल्डर) अजिलसिम (Ajilasim) थे।
- विमकडफिसस के सिक्कों पर एक तरफ यूनानी लिपि और दूसरी तरफ खरोष्ठी लिपि है तथा साथ ही शिव की आकृति, नंदी, त्रिशूल आदि तत्कालीन कला एवं संस्कृति के विकास को परिलक्षित करते हैं।
- कनिष्क के सिक्कों पर पार्थियन, यूनानी एवं भारतीय देवी-देवताओं की आकृतियाँ हैं और कुछ सिक्कों पर यूनानी ढंग से खड़े एवं कुछ पर भारतीय ढंग से बैठे बुद्ध की आकृतियाँ सम्राट के धर्म सहिष्णु चरित्र की तरफ इशारा करती हैं।
- कुषाण शासकों द्वारा बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी की गईं जो शुद्धता में गुप्त शासकों से उत्कृष्ट हैं. कनिष्क द्वारा एक बड़ा स्तूप एवं मठ बनवाया गया जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे गए।
- भक्ति भावना के पुट का उदय इसी काल में देखने को मिलता है जिसमें ज्ञानमार्ग अथवा कर्ममार्ग की अपेक्षा भक्तिमार्ग की लोकप्रियता में वृद्धि हो रही थी।
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