गुप्तकाल को प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है। इस काल में प्राचीन भारत में सांस्कृतिक विकास अपेक्षाकृत अधिक हुआ। कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में अनेक विशिष्टताएं समाहित हुईं।
- गुप्तकाल में भवन-निर्माण कला में अनेक प्रकार के नए तत्व समाहित हुए। इस काल में आकर भवनों में ईंटों तथा पत्थरों का प्रयोग अधिक होने लगा, जबकि इसके पूर्व भवनों में अधिकांशतः लकड़ियों का उपयोग किया जाता था।
- अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तकाल में शासकों ने अनेक नगरों का निर्माण किया था और नगरों में विशाल भवनों का निर्माण करवाया था।
- दुर्भाग्यवश हूणों से लेकर तुर्कों तक भारत पर जितने भी आक्रमण हुए, उनमें गुप्तकालीन स्थापत्यों को भारी क्षति पहुंचायी गयी।
- इन आक्रमणों के कारण गुप्तकालीन स्थापत्यों को भारी क्षति पहुंचायी गयी। इन आक्रमणों के कारण गुप्तकालीन स्थापत्य के नमूनों का विनाश हो गया, परन्तु भी गुप्तकाल के स्थापत्य के कुछ नमूने आज भी सुरक्षित हैं।
- इनमें भुमरा का शिव मंदिर, झांसी जिले में देवगढ़ का मंदिर, कानपुर के निकट भितरी गांव का मंदिर, जबलपुर जिले में तिगवा का विष्णु मंदिर, नाचना कुठार का पार्वती मंदिर आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
- ये सभी मंदिर आकार में छोटे हैं तथा इनकी छतें चपटी हैं।
- गुप्तकाल में मठों तथा स्तूपों का निर्माण भी किया गया। सांची तथा गया में गुप्तकालीन दो बौद्ध मठ प्राप्त हुए हैं।
- इस काल में गुफा कला का पर्याप्त विकास हुआ। गुप्तकाल की गुफाओं में अजंता की गुफाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- प्रत्येक गुफा के भीतर अनेक स्तंभ हैं, जो कला के बहुत ही सुंदर नमूने माने जाते हैं।
- मध्य प्रदेश में भिलसा के समीप उदयगिरि का गुफा मंदिर भी गुप्तकालीन गुफा कला एवं उत्कृष्ट नमूना है।
शिल्प कला:-
- गुप्तकाल में शिल्प कला का पर्याप्त विकास हुआ, विशेष मूर्ति-निर्माण कला के क्षेत्र में।
- गुप्तकाल के पूर्व तक पशुओं की मूर्तियां ही अधिक बनायी जाती थीं, किन्तु गुप्तकाल में मानव एवं देवताओं की मूर्तियां के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया गया।
- गुप्तकाल में मूर्तियों में नग्नता को चित्रित करने की प्रवृत्ति का परित्याग कर दिया गया। अब मूर्तियों में वस्त्रों और आभूषणों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाने लगा।
- इस काल में मूर्तियों के बाह्य स्वरूप तथा आंतरिक भावों में सुंदर सामंजस्य के दर्शन होते हैं।
चित्रकला:-
- गुप्तकाल में चित्रकला का भी पर्याप्त विकास हुआ। चित्रकला के विकास का प्रमाण अजंता की गुफाओं तथा बाघ की गुफाओं से प्राप्त होता है।
- अजंता की गुफाओं में बुद्ध के जीवन-संबंधी चित्र, विभिन्न देवताओं के चित्र, सरदारों, योद्धाओं, साधु-संतों, संन्यासियों, भिक्षुकों, जनसाधारण के रहन-सहन, विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों, वृक्षों आदि के चित्र अनेक रंगों में उत्कीर्ण हैं।
- अजंता की गुफा संख्या 16 में ‘मरणासन्न राजकुमारी’ का चित्र विश्वप्रसिद्ध, है।
- बाघ की गुफा संख्या 3 में झुक रही स्त्री के चित्र की विशिष्ट रूप से प्रशंसा की जाती है।
धातुकला और मुद्रा–निर्माण कला:-
- गुप्तकाल में धातु कला और मुद्रा-निर्माण कला का भी पर्याप्त विकास हुआ।
- इस समय धातु कला के क्षेत्र में अनेक विशिष्टताएं दृष्टिगोचर होती हैं।
- नालंदा में महात्मा बुद्ध की 7.5 फीट ऊँची ताम्र मूर्ति प्राप्त हुई हैं।
- दिल्ली में महरौली में गुप्तकाल में निर्मित लौहस्तम्भ है। महरौली लौह स्तंभ की चमक हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक बनी हुई है। लौह धातु पर पॉलिश की वैसी तकनीक आज तक विकसित नहीं की जा सकी है।
- प्राचीन भारत में गुप्तकाल में ही मुद्रा कला का सर्वाधिक विकास हुआ।
- समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, कुमार गुप्त आदि शासकों ने विभिन्न प्रकार के सोने, चांदी, तांबे तथा मिश्र धातु के सिक्के जारी किए।
- गुप्तकालीन सिक्के पूर्ण रूप से भारतीय हैं तथा पूर्ववर्ती सभी शासकों द्वारा जार किए गए सिक्कों की अपेक्षा उत्कृष्ट और अधिक मूल्यवान हैं।
- गुप्तकालीन सिक्कों पर भारतीय भाषा, भारतीय संवत्, भारतीय प्रतीकों और देशी देवी-देवताओं तथा पशु-पक्षियों के चित्र अंकित हैं।
- भारतीय इतिहास के सभी कालों में सोने के सर्वाधिक सिक्के गुप्तकाल में ही जारी किए गए।
- गुप्तकाल के प्रारंभिक सिक्कों पर कुषाणों तथा कुछ अन्य विदेशी शासकों द्वारा अपनायी गयी कला का प्रभाव दिखाई देता है, परन्तु चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त प्रथम के सिक्के तो पूर्णतः भारतीय हैं।
- इस काल में सिक्कों का अलंकरण भी सुंदर ढंग से किया जाता था।
- सिक्कों पर चित्रों और अक्षरों का स्पष्ट अंकन होता था।
गुप्तकालीन मूर्तिकला की विशेषताएँ
- गुप्ता की मूर्तिकला मानव रूप पर केन्द्रित है, जो सौंदर्य के एक नए मानक और उभरते सौंदर्य आदर्श की नींव का काम करती है।
- यह विचार मानव शरीर की अंतर्निहित कोमलता और लचीलेपन की गहन समझ पर आधारित है ।
- गुप्तकालीन मूर्तियों में मुलायम, लचीले ढांचे के साथ चिकनी, चमकदार बनावट होती है, जो सुन्दर और निर्बाध गति की अनुमति देती है।
- गुप्तकालीन मूर्तियां अपनी जटिल सजावट और आभूषणों के लिए जानी जाती हैं।
- उस समय का फैशन गीले या पारदर्शी चिपके हुए कपड़ों का था, खासकर महिला आकृतियों के लिए। हालाँकि, गुप्त युग की जागरूक नैतिक संवेदनशीलता ने कामुकता को नियंत्रण में रखा, और उनकी मूर्तियों में नग्नता को शायद ही कभी दर्शाया गया था ।
- गुप्तकालीन मूर्तिकला के सबसे असाधारण उदाहरणों में से एक मथुरा से प्राप्त भव्य लाल बलुआ पत्थर की बुद्ध प्रतिमा है, जो 5वीं शताब्दी ई. की है। इस प्रतिमा में महान गुरु को उनकी संपूर्ण भव्यता में दर्शाया गया है, जो अपने दाहिने हाथ से अभयमुद्रा (सुरक्षा का आश्वासन) में खड़े हैं, तथा अपने बाएं हाथ से अपने वस्त्र का किनारा पकड़े हुए हैं।
- बुद्ध की मुस्कुराहट की अभिव्यक्ति, आध्यात्मिक परमानंद को दर्शाती झुकी हुई आँखों के साथ , एक वस्त्र से ढकी हुई है जो नाजुक ढंग से दोनों कंधों पर लटकी हुई है और उनके शरीर से चिपकी हुई है। उनका सिर योजनाबद्ध सर्पिल कर्ल और एक केंद्रीय उभार से सुशोभित है, और उनका विस्तृत प्रभामंडल अलंकरण की सुंदर संकेंद्रित पट्टियों से सजाया गया है।
- मथुरा बुद्ध की मूर्ति की उल्लेखनीय शिल्पकला और राजसी शांति को बाद में बौद्ध धर्म अपनाने वाले अन्य देशों , जैसे स्याम, कंबोडिया, बर्मा, जावा, मध्य एशिया, चीन और जापान द्वारा अपनाया गया ।
- गुप्त कला का एक और उत्कृष्ट उदाहरण सारनाथ से प्राप्त खड़ी बुद्ध प्रतिमा है, जो गुप्त मूर्तिकला की परिपक्वता को दर्शाता है। मथुरा बुद्ध की जटिल परतों के विपरीत, सारनाथ बुद्ध में केवल उनके पारदर्शी वस्त्र का किनारा दिखाई देता है। पूरी तरह से निष्पादित आकृति, अपनी शांत और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के साथ, वास्तव में इस उदात्त अस्तित्व के सार को पकड़ती है।
- सारनाथ ने न केवल रूप की कोमलता और परिष्कार लाया, बल्कि एक शांत मुद्रा भी पेश की, जिसमें खड़ी आकृति अपनी धुरी पर थोड़ा झुकी हुई थी। इसने मथुरा के समान कार्यों की स्तंभ जैसी कठोरता के विपरीत लचीलापन और गति को जोड़ा।
- देवगढ़ और उदयगिरि मंदिरों के साथ-साथ अजंता मंदिरों की पत्थर की नक्काशी , उनकी सजावटी सेटिंग्स में आकृति मूर्तिकला के असाधारण उदाहरण हैं। इसका एक बेहतरीन नमूना देवगढ़ मंदिर से शेषशायी विष्णु का बड़ा पैनल है, जिसमें ब्रह्मांड के विघटन और उसके पुनर्जन्म के बीच के अंतराल के दौरान अनंत काल के प्रतीक सर्प पर सर्वोच्च देवता को सोते हुए दिखाया गया है।
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