अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- शिलालेख
- स्तम्भलेख
- गुहालेख
1.शिलालेख
- वृहत शिलालेख:-
- शिलालेख I –पशु बलि पर प्रतिबंध, विशेषकर त्यौहारों के मौसम में।
- शिलालेख II –मनुष्यों और पशुओं का चिकित्सा उपचार, फलों, औषधीय जड़ी-बूटियों का रोपण और कुओं की खुदाई। दक्षिण भारत के पांड्यों, सत्यपुरों और केरलपुत्रों का उल्लेख। शिलालेख III –ब्राह्मणों के प्रति उदारता। युक्ता, प्रादेशिक और राजुकों के बारे में जो हर पाँच साल में धम्म का प्रचार करने के लिए उसके साम्राज्य के विभिन्न भागों में जाते थे। शिलालेख IV –भेरीघोष (युद्ध की ध्वनि) की अपेक्षा धम्मघोष (धम्म/धार्मिकता की ध्वनि)। राजा अशोक अपने कर्तव्य को सर्वाधिक महत्व देते थे।
- शिलालेख V- धम्ममहामात्रों के बारे में। दासों के साथ सही व्यवहार करने की बात करता है। अधिकारियों का एक विशेष कैडर, धम्म गोशा नियुक्त किया गया और उन्हें राज्य के भीतर धम्म फैलाने का कर्तव्य सौंपा गया।
- शिलालेख VI -राजा की अपनी प्रजा की स्थिति जानने की इच्छा। कल्याणकारी उपायों के बारे में।
- शिलालेख VII- सभी संप्रदायों के बीच धर्मों के प्रति सहिष्णुता और अपने साथ-साथ अपने पड़ोसी राज्यों में जनता के लिए कल्याणकारी उपाय।
- शिलालेख VIII –अशोक की बोधगया और बोधि वृक्ष की पहली यात्रा (उनकी पहली धम्म यात्रा)। धम्म यात्राओं को महत्व दिया।
- शिलालेख IX –लोकप्रिय समारोहों की निंदा की जाती है। नैतिक आचरण पर जोर दिया जाता है।
- शिलालेख X –व्यक्ति की प्रसिद्धि और गौरव की इच्छा को अस्वीकार करता है तथा धम्म पर बल देता है।
- शिलालेख XI- धम्म सर्वोत्तम नीति है, जिसमें बड़ों के प्रति सम्मान तथा दासों और नौकरों के प्रति चिंता शामिल है।
- शिलालेख XII- इसमें महिलाओं के कल्याण के प्रभारी महामत्त, इथिजिका महामत्त और दूसरों के धम्म के प्रति सहिष्णुता का उल्लेख है।
- शिलालेख XIII –कलिंग पर विजय का उल्लेख है। सीरिया के यूनानी राजाओं एंटिओकस (अम्तिओको), मिस्र के टॉलेमी (तुरामये), साइरेन के मगस (माका), मैसेडोन के एंटीगोनस (अम्तिकिनी), एपिरस के अलेक्जेंडर (अलिकासुदरो) पर अशोक की धम्म विजय का उल्लेख है। पांड्य, चोल आदि का भी उल्लेख है। कलिंग युद्ध के अंत में जारी तेरहवें शिलालेख में अशोक के एक आक्रामक और हिंसक योद्धा से एक महान शांति प्रेमी और प्रचारक बनने की स्पष्ट तस्वीर मिलती है। कलिंग युद्ध का सीधा और तत्काल प्रभाव अशोक का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण था।
- शिलालेख XIV – शिलालेखों का उद्देश्य.
ii. लघु शिलालेख :-
- देश भर में तथा अफगानिस्तान में भी 15 चट्टानों पर लघु शिलालेख पाए गए हैं।
1. Roopnath- यह मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित है।
2. Gujarat- इसे मध्य प्रदेश के दतिया जिले के गुर्जरा नामक गांव से प्राप्त किया गया है। इस शिलालेख में सम्राट अशोक का नाम “अशोक” पाया गया है।
3. सहस्रार- यह शिलालेख बिहार राज्य के सासाराम जिले में स्थित है।
4. भब्रू शिलालेख- यह शिलालेख राजस्थान के जयपुर जिले से प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी साबित करता है। इसमें अशोक स्वयं को मगध का राजा घोषित करता है।
5. मास्की शिलालेख- मास्की शिलालेख की खोज 1915 ई. में बिडेन ने की थी। इसमें सम्राट अशोक का नाम अशोक में ही मिलता है। यह आंध्र प्रदेश के रायचूर जिले में स्थित है।
6. ब्रह्मगिरी शिलालेख- यह कर्नाटक के ब्रह्मगिरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
2. स्तम्भलेख :- इसमें सात राजाज्ञाएं है। इसलिए इसे सप्त स्तम्भलेख कहते है। यह विभिन्न स्थान से प्राप्त हुए है।
अशोक के 6 प्रमुख स्तंभ लेख
- कौशाम्बी (इलाहाबाद),
- टोपरा (अब दिल्ली),
- मेरठ (अब दिल्ली),
- लौरिया-अराज,
- लौरिया-नंदनगढ़,
- रामपुरवा (चंपारण) में पाए गए हैं, और
- 7वां लेख दिल्ली-टोपरा स्तंभ पर पाया गया है।
3. गुहालेख :- मौर्या कालीन राजाओं द्वारा गुफाओं के मुख्य एवं अंदर की दीवारों पर उस समय की कलाओं एवं राजा की कल्पना को अंकित या लेख लिखने को ही गुहालेख कहते है।
- दक्षिणी बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक पहाङी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले हैं।
- इनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के निवास के लिये गुहा-दान में दिये जाने का विवरण मिलता है।
Leave a Reply