विद्वानों ने इतिहास को उसके साक्ष्यों के आधार पर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित किया है। ये प्रागैतिहासिक काल, आद्य ऐतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल के नाम से जाने जाते हैं।
प्रागैतिहासिक काल
यह मानव संस्कृति का काल है जिसका कोई लिखित अभिलेख उपलब्ध नहीं है। इस काल के इतिहास का अध्ययन पुरातात्विक साक्ष्यों से ही किया जाता है।
प्राग ऐतिहासिक काल के स्रोत:-
- लिखित रिकॉर्डों के अभाव में शिल्पकृतियाँ या भौतिक अवशेष ही प्राक् – इतिहास को समझने के प्राथमिक स्रोत हैं। भौतिक अवशेष अधिकांशतः पत्थर के औज़ारों, पशु-अवशेषों, नृ- जीवाश्मों, जैव-तथ्यों और सांस्कृतिक भू-दृश्यों के रूप में उपलब्ध हैं।
रोबर्ट ब्रूस फूटे भारत में पुरातत्व के जनक जनक” हैं। उन्होंने पहली बार 1863 में तमिलनाडु के बजरी के गड्ढे में एक हाथ की कुल्हाडी (पुरापाषाण उपकरण) की खोज की।
इस काल को 3 भागों में विभाजित किया जाता है।
- पुरापाषाण युग,
- मध्यपाषाण युग और
- नवपाषाण युग।
1.पुरापाषाण युग (1.6 मिलियन- 8,000 ईसा पूर्व) :-पुरापाषाण युग को हिमयुग भी कहा जाता है क्योंकि पूरी पृथ्वी बर्फ से ढकी हुई थी और पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी का आना एक दुर्लभ अवसर था चूंकि मौसम बहुत ठंडा था, इसलिए पौधे और मनुष्य जीवित नहीं रह सकते थे। लेकिन, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मानव जीवन पाया जाता था क्योंकि वहाँ बर्फ पिघल जाती थी
पुरापाषाण युग की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:-
पुरापाषाण युग की महत्वपूर्ण बुनियादी विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- पुरापाषाण युग के मानव शिकारी-संग्राहक अर्थव्यवस्था का पालन करते थे, यानी वे भोजन के लिए जानवरों का शिकार करते थे। इसके अलावा, वे मुख्य रूप से जानवरों की खाल से भोजन, हथियारों के लिए सामग्री, जलाऊ लकड़ी और कपड़े इकट्ठा करते थे।
- पुरापाषाण युग के अंत में, मनुष्य रचनात्मक हो गया और उसने अनेक गुफा चित्रकारी, शैल कलाएं और आभूषण बनाए।
- मनुष्यों ने धार्मिक गतिविधियां भी शुरू कर दीं और दफ़न प्रथा का पालन करने लगे।
- वे ज़्यादातर खानाबदोश थे (यानी वे भोजन की तलाश में लगातार एक जगह से दूसरी जगह प्रवास करते रहते थे)। वे उन इलाकों में शरण लेते थे जहाँ उन्हें शिकारी जानवरों से सुरक्षा महसूस होती थी और जहाँ मौसम उपयुक्त होता था। इस प्रकार, वे ज़्यादातर नदियों और झीलों के पास शरण लेते थे। उन्होंने केवल छोटी झोपड़ियों (भूसे, हड्डियों या पत्थरों से बनी) के रूप में अस्थायी बस्तियाँ बनाईं, या वे गुफाओं में रहते थे।
- ये गुफाएं पुरापाषाण युग की जीवनशैली का उत्कृष्ट साक्ष्य देती हैं।
- जैसे-जैसे लोग आगे बढ़े (जैसा कि ऊपरी पुरापाषाण काल में हुआ), उन्होंने गुफाओं का उपयोग केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया।
पुरापाषाण काल में मनुष्य अलग-अलग समय में अलग-अलग तरह के पाषाण उपकरणों का उपयोग कर रहा था। इन्हीं पाषाण उपकरणों के आधार पर इतिहासकारों ने पुरापाषाण काल को पुनः तीन काल खंडों में विभाजित किया है। ये हैं- निम्न पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल और उच्च पुरापाषाण काल।
- निम्न पुरापाषाण काल
- इस दौरान मानव पाषाण उपकरणों का निर्माण करने के लिए क्वार्टजाइट पत्थर का उपयोग करता था। इस दौरान पाषाण उपकरणों के निर्माण के लिए ‘बटिकाश्म’ (Pebble) का उपयोग भी किया जाता था। ‘बटिकाश्म’ पत्थर के ऐसे टुकड़े होते थे, जो पानी के बहाव से रगड़ खाकर गोल मटोल व सपाट हो जाते थे।
- निम्न पुरापाषाण काल के दौरान मानव द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले प्रमुख पाषाण उपकरणों के नाम हस्त कुठार, विदारणी, खंडक और गंडासा थे। गंडासा एक ऐसा बटिकाश्म होता था, जिसके एक तरफ धार लगाई जाती थी और खंडक एक ऐसा बटिकाश्म में होता था, जिसके दोनों तरफ धार लगाई जाती थी।
- निम्न पुरापाषाण काल के प्रमुख स्थलों में वर्तमान पाकिस्तान में स्थित सोहन नदी घाटी, कश्मीर, राजस्थान का थार रेगिस्तान, मध्य प्रदेश की नर्मदा नदी घाटी में स्थित भीमबेटका, हथनौरा, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित बेलन घाटी, तमिलनाडु में पल्लवरम, अतिरपक्कम, आंध्र प्रदेश में कुरनूल, नागार्जुन कोंडा, कर्नाटक में इसामपुर आदि शामिल थे।
- उपकरण: चाकू, हाथ की कुल्हाडी, विदारक।
- निम्न पुरापाषाण काल
2.मध्य पुरापाषाण काल
- इस युग को पत्थर के टुकड़ों का युग भी कहा जाता है।
- इस दौरान मानव पाषाण उपकरणों का निर्माण करने के लिए क्वार्टजाइट पत्थर के स्थान पर जैस्पर और चर्ट नामक पत्थरों का उपयोग करता था। इस दौर में आकर पासवान उपकरणों का आकार निम्न पुरापाषाण काल की अपेक्षा छोटा हो गया था।
- इस काल में मानव मुख्य रूप से वेधनी, फलक वेधक, खुरचनी आदि पाषाण उपकरणों का उपयोग करता था। ये उपकरण प्रमुख रूप से फलक पर आधारित होते थे। इस दौरान फलक उपकरणों की प्रधानता मिली है, इसीलिए मध्य पूरापाषाण काल को एच डी सांकलिया ने ‘फलक संस्कृति’ की संज्ञा दी है।
- महाराष्ट्र स्थित नेवासा, उत्तर प्रदेश स्थित चकिया व सिंगरौली, झारखंड स्थित सिंहभूम व पलामू, गुजरात स्थित सौराष्ट्र क्षेत्र, मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका की गुफाएं, राजस्थान स्थित बेड़च, कादमली, पुष्कर क्षेत्र, थार का रेगिस्तान इत्यादि मध्य पुरापाषाण काल से संबंधित प्रमुख स्थल है।
- उपकरण : पत्थर के टुकडे से बने ब्लेड, पॉइंट और स्क्रेपर्स ।
3.उच्च पुरापाषाण काल
- इस काल में लोग खानाबदोश शिकारियों के रूप में रहते थे।
- उच्च पुरापाषाण काल के दौरान पाषाण उपकरणों के निर्माण के लिए मानव द्वारा जैस्पर, चर्ट, फ्लिंट आदि पत्थरों का उपयोग किया जाता था। इस दौरान मनुष्य द्वारा निर्मित किए जाने वाले पाषाण उपकरणों का आकार मध्य पुरापाषाण काल के दौरान निर्मित पाषाण उपकरणों से और अधिक छोटा हो गया था।
- इस काल में मानव फलक एवं तक्षणी पर आधारित पाषाण उपकरणों का अत्यधिक निर्माण करने लगा था। आकार में छोटे होने के कारण इन पाषाण उपकरणों के उपयोग से मानव की दक्षता व गतिशीलता में वृद्धि हो गई थी।
- महाराष्ट्र स्थित इनामगांव व पटणे, आंध्र प्रदेश स्थित कुरनूल, नागार्जुनकोंडा व रेनिगुंटा, मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका, कर्नाटक स्थित शोरापुर दोआब, राजस्थान स्थित बूढ़ा पुष्कर, उत्तर प्रदेश स्थित लोहंदानाला, बेलन घाटी इत्यादि उच्च पुरापाषाण काल से संबंधित प्रमुख स्थल हैं।
- उपकरण : ब्लेड और छेनी
मध्यपाषाण युग:-
- मध्य पाषाण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम होडर माइकल वेस्ट्रूप द्वारा किया गया था। इस काल में मनुष्य द्वारा पशुपालन की शुरुआत कर दी गई थी। इस समय तक मनुष्य द्वारा उपयोग किए जाने वाले पाषाण उपकरणों का आकार और अधिक छोटा हो गया था।
- गुजरात स्थित लांघनाज व रतनपुर, कर्नाटक स्थित संगणकल्लू, आंध्र प्रदेश स्थित नागार्जुनकोंडा, पश्चिम बंगाल स्थित बीरभानपुर, मध्य प्रदेश स्थित भीमबेटका एवं आदमगढ़, तमिलनाडु स्थित टेरी समूह, उत्तर प्रदेश स्थित मोरहाना पहाड़, लेखहिया, चौपानीमांडो इत्यादि मध्य पाषाण काल से संबंधित प्रमुख स्थल है।
- शवों को उथली आयताकार कब्रों में दफनाया गया था।
नवपाषाण काल (नव पाषाण युग) इस अवधि के दौरान मानव ने अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएँ
- इस काल के लोगों ने आग की खोज की और बड़े पैमाने पर कृषि शुरू हुई। उन्होंने गेहूं, रागी और चना जैसी फसलें उगाना शुरू किया
- मिट्टी और ईख के घर बनाए गए
- चूंकि कृषि ने लोगों को अनाज के भंडारण के लिए कुछ चाहिए था, इसलिए मिट्टी के बर्तनों का भी जन्म हुआ।
- शुरुआत में मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाए जाते थे और बाद में चाक का इस्तेमाल किया जाने लगा
- लोगों ने माइक्रोलिथिक ब्लेड का इस्तेमाल किया और अगला कदम उठाया और पॉलिश किए गए पत्थरों से अधिक उन्नत उपकरण बनाए
- हड्डियों से अन्य हथियार बनाए गए जैसे सुई, खुरचनी, छेदक, तीर के सिरे और कई अन्य हथियार हड्डियों से बनाए गए
- लोग नाव बनाना जानते थे और कपड़ा बुनना जानते थे
- नवपाषाण काल के लोग पहाड़ी नदी घाटियों और पहाड़ियों की ढलानों के पास रहते थे
- कपास का सबसे पुराना प्रमाण मेहरगढ़ की मिटटी से मिला है।
- कपडे जूट, ऊनऔर कपास के धागों से बने होते है।
- नवपाषाण युग के दौरान कपास प्रमुख कपड़ा फाइबर था।
उत्तर और दक्षिण भारत में दो प्रकार की दफन प्रक्रिया प्रचलन में थी।
- पूर्ण समाधि – गोलाकार गड्ढा – मृत शरीर
- आंशिक अंत्येष्टि -चयनित अस्थियों को कब्र में रखा जाता है। मालिक के साथ पालतू कुत्ते की अंत्येष्टि – बुर्जहोम और गुफकराल स्थल
मालिक के साथ पालतू जानवर बकरी की अंत्येष्टि – बलूचिस्तान में मेहरगढ़
- मानव संस्कृतियाँ विभिन्न चरणों में सभ्यता के रूप में विक्सित हुई। जैसे –पाषाण युग, ताम्रपाषाण/ कांस्य युग और लौह युग।
- पाषाण युग के बाद धातु युग आये।
- भारत में पाषाण युग प्रागैतिहासिक काल का था जबकि कांस्य युग और लौह युग आद्य ऐतिहासिक काल के थे।
- आस्ट्रेलोपिथेकस पहला मानव जैसा पूर्वज है जो लगभग 5 मिलियन वर्ष पहले विकसित हुआ था।
आद्य ऐतिहासिक काल
आद्य इतिहास प्रागैतिहासिक और आधुनिक इतिहास के बीच का काल है। आद्य – ऐतिहासिक काल में लेखों का रिकॉर्ड मौजूद है लेकिन बाद के युगों द्वारा इसे समझा नहीं जा सका। इस काल की अवधि 2500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व है।
आद्य ऐतिहासिक काल, जिसे प्रोटोहिस्ट्री भी कहा जाता है ।
यह काल ताम्रपाषाण युग के अंत और लौह युग की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है।
इस कालखंड की विशेषता है:
- धातुकर्म का विकास: तांबे और कांस्य का उपयोग बढ़ रहा था, जिसके परिणामस्वरूप उपकरणों और हथियारों में सुधार हुआ।
- कृषि में प्रगति: सिंचाई प्रणालियों के विकास और नए फसलों की खेती के साथ कृषि अधिक उत्पादक बन गई।
- बस्तियों का विकास: स्थायी बस्तियां विकसित होने लगीं, जिनमें व्यापार और वाणिज्य बढ़ा।
- सामाजिक स्तरीकरण: समाज में वर्गों और पदानुक्रम का विकास होने लगा।
- धार्मिक विश्वासों का विकास: नए धार्मिक विचार और प्रथाएं विकसित होने लगीं, जिनमें वैदिक धर्म का उदय भी शामिल है।
आद्य ऐतिहासिक काल के बारे में हमारी जानकारी मुख्य रूप से पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित है।
इस कालखंड से प्राप्त महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेषों में शामिल हैं:
- सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष: मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगा जैसे शहरों के अवशेष इस कालखंड की शहरी नियोजन, वास्तुकला, और तकनीकी प्रगति का प्रमाण देते हैं।
- काला मृदभाण्ड संस्कृति: यह संस्कृति उत्तरी भारत में विकसित हुई थी और इसकी विशेषता काले रंग के मृदभाण्ड थे।
- मैग्माइट लाल मृदभाण्ड संस्कृति: यह संस्कृति पूर्वी भारत में विकसित हुई थी और इसकी विशेषता लाल रंग के मृदभाण्ड थे।
- धातुकर्म स्थल: तांबे और कांस्य के उत्पादन के लिए कई धातुकर्म स्थल स्थापित किए गए थे।
आद्य ऐतिहासिक काल भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कालखंड है।
इस कालखंड में धातुकर्म, कृषि, और व्यापार में प्रगति हुई, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए।
ऐतिहासिक काल
यह वह काल है जिसकी जानकारी लिखित अभिलेखों में उपलब्ध है। जो हमें इस कालखंड के बारे में अधिक विस्तृत और सटीक जानकारी प्रदान करते हैं। इस काल में लगभग 600 ईसा पूर्व से लेकर वर्तमान तक का ऐतिहासिक गतिविधियां सम्मिलित हैं।
ऐतिहासिक काल को कई उप-अवधियों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं:
- प्राचीन काल (600 ईसा पूर्व – 1200 ईस्वी): इस कालखंड में, भारत में कई महान साम्राज्यों का उदय हुआ, जैसे कि मौर्य, गुप्त, और हर्ष साम्राज्य। इन साम्राज्यों ने कला, संस्कृति, विज्ञान और व्यापार में महत्वपूर्ण प्रगति की।
- मध्यकालीन काल (1200 ईस्वी – 1757 ईस्वी): इस कालखंड में, भारत पर कई विदेशी आक्रमणकारी आए, जिनमें मुगल भी शामिल थे। मुगलों ने भारत पर शासन किया और कला, वास्तुकला और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- आधुनिक काल (1757 ईस्वी – 1947 ईस्वी): इस कालखंड में, भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। ब्रिटिश शासन ने भारत में कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाए।
- समकालीन काल (1947 ईस्वी – वर्तमान): इस कालखंड में, भारत एक स्वतंत्र देश बन गया और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया।
ऐतिहासिक काल के दौरान भारत में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें शामिल हैं:
- मौर्य साम्राज्य का उदय (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व): मौर्य साम्राज्य भारत का पहला बड़ा साम्राज्य था। इस साम्राज्य ने अशोक महान जैसे महान सम्राटों को जन्म दिया, जिन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और भारत में शांति और समृद्धि का दौर स्थापित किया।
- गुप्त साम्राज्य का उदय (320 ईस्वी – 550 ईस्वी): गुप्त साम्राज्य को भारत का स्वर्ण युग माना जाता है। इस कालखंड में कला, संस्कृति, विज्ञान और साहित्य में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
- मुगल साम्राज्य का उदय (1526 ईस्वी – 1857 ईस्वी): मुगल साम्राज्य भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। इस साम्राज्य ने कला, वास्तुकला और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जैसे कि ताजमहल का निर्माण।
- भारत का स्वतंत्रता आंदोलन (1857 ईस्वी – 1947 ईस्वी): भारत का स्वतंत्रता आंदोलन एक लंबा और कठिन संघर्ष था जिसके परिणामस्वरूप 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली। महात्मा गांधी इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
ऐतिहासिक काल भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और रोमांचक अध्याय है।
Alok kumar says
Bhut accha