वाशिंगटन सहमति (Washington Consensus) अर्थशास्त्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में उभरी। इसका संबंध उन नीतियों के सेट से है जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, और अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा विकासशील देशों के लिए अनुशंसित किया गया था। इसका उद्देश्य आर्थिक स्थिरता, विकास, और सुधार को प्रोत्साहित करना था।
वाशिंगटन सहमति के मुख्य सिद्धांतों में शामिल थे:
राजकोषीय अनुशासन (Fiscal discipline) : सरकारों को अपने खर्चों को कर राजस्व से कम रखना चाहिए और घाटे को कम करना चाहिए।
व्यापार उदारीकरण (Trade liberalization): देशों को कम शुल्कों, कम गैर-शुल्क बाधाओं और अधिक खुले निवेश नीतियों के साथ व्यापार को उदार बनाना चाहिए।
वित्तीय उदारीकरण (Financial liberalization): देशों को वित्तीय बाजारों को उदार बनाना चाहिए, ब्याज दरों को कम करना चाहिए और बैंकों के लिए प्रवेश बाधाओं को कम करना चाहिए।
निजीकरण: सरकारों को राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों का निजीकरण करना चाहिए और निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने की अनुमति देनी चाहिए।
प्रतिस्पर्धी विनिमय दर (Competitive exchange rate) : देशों को एक प्रतिस्पर्धी विनिमय दर बनाए रखनी चाहिए जो उनके व्यापार को बढ़ावा दे।
वाशिंगटन सहमति की मुख्य नीतियाँ:
वाशिंगटन सहमति में दस मुख्य आर्थिक नीतियाँ शामिल हैं, जिन्हें अक्सर विकासशील देशों के लिए नीति सिफारिशों के रूप में प्रस्तुत किया गया:
राजकोषीय अनुशासन (Fiscal Discipline):
- सरकार के वित्तीय घाटे को कम करना और उसे नियंत्रण में रखना।
सार्वजनिक खर्च की प्राथमिकताएं (Reordering Public Expenditure Priorities):
- सामाजिक क्षेत्रों (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य) और बुनियादी ढाँचे पर खर्च को बढ़ावा देना।
कर सुधार (Tax Reform):
- कर प्रणाली को सरल और व्यापक आधार बनाना, कर दरों को कम करना लेकिन अनुपालन को बढ़ाना।
विनिमय दर नीति (Liberalizing Interest Rates):
- बाजार द्वारा विनिमय दर का निर्धारण और दरों को स्थिर रखने के लिए नीति उपाय।
व्यापार उदारीकरण (Trade Liberalization):
- आयात शुल्क और कोटा को कम करके विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करना।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए बाधाओं को हटाना (Liberalization of Foreign Direct Investment Inflows):
- विदेशी निवेशकों के लिए प्रतिबंधों को हटाना और निवेश को प्रोत्साहित करना।
सरकारी उद्यमों का निजीकरण (Privatization of State Enterprises):
- सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों का निजीकरण और उन्हें निजी क्षेत्र को हस्तांतरित करना।
निर्देशात्मक नियमों का उन्मूलन (Deregulation):
- उद्योगों और व्यवसायों पर से अनावश्यक नियामक बोझ को कम करना।
संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा (Secure Property Rights):
- संपत्ति अधिकारों की कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
वित्तीय क्षेत्र में सुधार (Financial Liberalization):
- बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में सुधार करना और उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना।
वाशिंगटन सहमति के प्रभाव और आलोचना:
प्रभाव:
- आर्थिक स्थिरता: इन नीतियों का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता लाना और विकासशील देशों में आर्थिक सुधार को प्रोत्साहित करना था।
- विकास: कई देशों में इन नीतियों के कार्यान्वयन से आर्थिक विकास दर में वृद्धि देखी गई।
आलोचना:
- असमानता: कुछ आलोचकों का मानना है कि इन नीतियों ने सामाजिक असमानता को बढ़ाया और गरीबों की स्थिति में सुधार नहीं किया।
- राष्ट्रीय संप्रभुता (National sovereignty) : इन नीतियों को अक्सर विकासशील देशों पर थोपा गया, जिससे उनकी आर्थिक संप्रभुता में कमी आई।
- सामाजिक प्रभाव: स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
वाशिंगटन सहमति विकासशील देशों के लिए एक मानक आर्थिक सुधार का मॉडल प्रस्तुत करता है, जिसमें आर्थिक स्थिरता और विकास को प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, इसके प्रभाव और इसके कार्यान्वयन की विधियों को लेकर महत्वपूर्ण बहस और आलोचना भी होती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक सुधारों का एक आकार सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता, और प्रत्येक देश की विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नीतियों को अनुकूलित करना आवश्यक है।
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