मूल्य वर्धित कर (VAT) और वस्तु और सेवा कर (GST) दोनों ही अप्रत्यक्ष कर प्रणालियां हैं जिनका उपयोग भारत में वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगाने के लिए किया जाता है। VAT विशेष रूप से उत्पादकों और वितरकों के बीच के विभिन्न स्तरों पर लगाया जाता है। यह कर उस विशेष मूल्य में जोड़ा जाता है जो प्रत्येक वितरण चरण में उत्पाद के मूल्य में बढ़ावा होता है। GST एक समग्र कर है जो उत्पादों और सेवाओं पर लगाया जाता है, सिर्फ उत्पादकों और वितरकों के बीच नहीं। यह कर सभी चरणों में लगता है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं के प्रत्येक संकलन चरण पर कर लगता है।
दोनों प्रणालियों के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:
1. कर आधार:
- VAT: VAT केवल वस्तुओं पर लगाया जाता था।
- GST: GST वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर लगाया जाता है।
2. कर दरें:
- VAT: VAT की दरें राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित की जाती थीं और राज्य-दर-राज्य भिन्न होती थीं।
- GST: GST की दरें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं और 4 श्रेणियों में वर्गीकृत होती हैं:
- 0% (आवश्यक वस्तुएं और सेवाएं)
- 5% (आधार वस्तुएं और सेवाएं)
- 12% (अधिकांश वस्तुएं और सेवाएं)
- 28% (विलासिता वस्तुएं और सेवाएं)
3. कर अपवाद:
- VAT: VAT में कई अपवाद थे, जैसे कि कृषि उत्पाद, पेट्रोलियम और बिजली।
- GST: GST में कम अपवाद हैं, और इनमें मुख्य रूप से कृषि उत्पाद, पेट्रोलियम और रक्षा उपकरण शामिल हैं।
4. कर संग्रह:
- VAT: VAT राज्य सरकारों द्वारा एकत्र किया जाता था।
- GST: GST केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है और फिर राज्यों के साथ साझा किया जाता है।
5. कर अनुपालन:
- VAT: VAT प्रणाली जटिल थी और इसमें कई कर शामिल थे, जिससे कर अनुपालन कठिन हो गया था।
- GST: GST प्रणाली सरल है और इसमें एक ही कर शामिल है, जिससे कर अनुपालन आसान हो गया है।
6. कर प्रभाव:
- VAT: VAT प्रणाली कैस्केडिंग प्रभाव (एक ही उत्पाद पर कई बार कर लगता था) से ग्रस्त थी, जिससे उच्च कीमतें और कम कर राजस्व होता था।
- GST: GST प्रणाली कैस्केडिंग प्रभाव से मुक्त है, जिससे निम्न कीमतें और अधिक कर राजस्व होता है।
भारत में VAT की आवश्यकता:
1. राजस्व वृद्धि: VAT का मुख्य उद्देश्य सरकार के लिए राजस्व जुटाना था।
तत्कालीन कर प्रणाली, जिसमें कई प्रकार के कर शामिल थे, अप्रभावी थी और पर्याप्त राजस्व उत्पन्न नहीं कर रही थी। VAT को एक सरल और कुशल कर प्रणाली के रूप में पेश किया गया था जो अधिक राजस्व उत्पन्न करेगी।
2. कर चोरी में कमी: VAT को कर चोरी को कम करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया था।
कई करों वाली प्रणाली में, कर चोरी करना आसान था। VAT, मूल्य वृद्धि पर कर लगाकर, कर चोरी को कम करने में मदद करता है क्योंकि यह प्रत्येक चरण में उत्पाद या सेवा के मूल्य का ट्रैक करता है।
3. कर भार का समान वितरण: VAT का उद्देश्य कर भार का समान वितरण करना भी था।
कई करों वाली प्रणाली में, कुछ क्षेत्रों पर दूसरों की तुलना में अधिक कर लगाया जाता था। VAT, मूल्य वृद्धि पर कर लगाकर, यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि सभी क्षेत्रों पर समान रूप से कर लगाया जाता है।
4. अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देना: VAT का एक और उद्देश्य अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देना था।
कई करों वाली प्रणाली में, राज्यों द्वारा लगाए गए विभिन्न करों के कारण अंतर-राज्य व्यापार करना मुश्किल था। VAT, एक समान कर दर प्रदान करके, अंतर-राज्य व्यापार को आसान बनाने में मदद करता है।
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