भारत में नियोजन को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: आदेशात्मक नियोजन और निर्देशात्मक नियोजन।
1. आदेशात्मक नियोजन (Imperative Planning)
आदेशात्मक नियोजन में सरकार या नियोजन एजेंसी का प्रमुख नियंत्रण होता है। इसमें आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने और संसाधनों के आवंटन का निर्णय लेने का अधिकार सरकार के पास होता है। इसमें नियोजन प्राधिकरण द्वारा सभी निर्णय लिए जाते हैं और उनके पालन को सुनिश्चित किया जाता है। यह योजना अनिवार्य होती है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसे केंद्रीकृत नियोजन भी कहा जाता है। सोवियत संघ और अन्य समाजवादी देशों में यह प्रणाली अपनाई गई थी।
लक्षण:
केंद्रीकृत नियंत्रण (Centralized control): योजना के सभी पहलुओं पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है।
अनिवार्यता: योजनाओं का पालन अनिवार्य होता है।
कानूनी बाध्यता: योजनाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान होते हैं।
कम लचीलापन: योजनाओं में बदलाव या सुधार की गुंजाइश कम होती है।
भारत में, आदेशात्मक नियोजन का कभी भी पूर्ण रूप से उपयोग नहीं किया गया है। हालांकि, 1950 के दशक से 1990 के दशक तक, भारत में “मिश्र अर्थव्यवस्था” थी, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस अवधि के दौरान, सरकार ने कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया और अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण नियंत्रण रखा।
2. निर्देशात्मक नियोजन (Indicative Planning)
यह नियोजन का एक अधिक विकेंद्रीकृत (Decentralized) रूप है जिसमें सरकार बाजार को प्रभावित करने के लिए नीतिगत उपकरणों का उपयोग करती है, लेकिन निजी क्षेत्र को महत्वपूर्ण निर्णय लेने की स्वतंत्रता देती है।लेकिन यह अनिवार्य नहीं होती। इसमें सरकार सलाह और मार्गदर्शन देती है, और योजनाओं का पालन स्वैच्छिक होता है। इसमें मौद्रिक नीति, वित्तीय नीति, व्यापार नीति और औद्योगिक नीति जैसे उपकरण शामिल हो सकते हैं।
लक्षण:
स्वैच्छिक पालन: योजनाओं का पालन अनिवार्य नहीं होता, लेकिन उन्हें अपनाने की सलाह दी जाती है।
लचीलापन: योजनाओं में सुधार और बदलाव की गुंजाइश होती है।
मार्गदर्शन: सरकार आर्थिक विकास के लिए दिशानिर्देश और प्राथमिकताएँ निर्धारित करती है।
प्रोत्साहन: सरकार प्रोत्साहन प्रदान करके योजनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। भारत में, 1990 के दशक से निर्देशात्मक नियोजन का उपयोग किया जा रहा है। इस अवधि के दौरान, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदारीकृत किया और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया। सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का भी निजीकरण किया है।
निष्कर्ष:
- आदेशात्मक और निर्देशात्मक नियोजन दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं।
- आदेशात्मक नियोजन तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन यह अक्षमता और नवाचार की कमी का कारण भी बन सकता है।
- निर्देशात्मक नियोजन अधिक लचीलापन और नवाचार प्रदान कर सकता है, लेकिन यह बाजार की विफलताओं और असमानता का कारण भी बन सकता है।
- भारत में, सरकार ने एक मिश्र दृष्टिकोण अपनाया है जिसमें कुछ क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण और अन्य क्षेत्रों में बाजार की स्वतंत्रता शामिल है।
- यह दृष्टिकोण भारत की अर्थव्यवस्था को विकसित करने और अपने नागरिकों के लिए समृद्धि और कल्याण प्राप्त करने में सफल रहा है।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नियोजन प्रणाली गतिशील होती है और समय के साथ बदल सकती है।
भारत में, नियोजन प्रणाली को देश की बदलती जरूरतों और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को पूरा करने के लिए लगातार विकसित किया जा रहा है.
Leave a Reply