जलवायु परिवर्तन और धारणीयता वर्तमान समय की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक हैं। ये मुद्दे न केवल पर्यावरणीय, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। इस खंड में जलवायु परिवर्तन के वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य को समझने और स्थायी विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
वैश्विक उत्सर्जन (Global Emissions)
वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है। प्रमुख कारणों में जीवाश्म ईंधनों का जलाना, औद्योगिक गतिविधियाँ, वनों की कटाई, और कृषि शामिल हैं। उत्सर्जन में कमी के लिए विभिन्न देशों ने कई उपाय किए हैं, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को अपनाना, ऊर्जा दक्षता में सुधार, और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीकों का विकास।
सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) (Sustainable Development Goals – SDG)
सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 लक्ष्य हैं, जिनका उद्देश्य 2030 तक दुनिया में गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का समाधान करना है।
पेरिस समझौता (कॉप 21) (Paris Agreement – COP 21)
पेरिस समझौता 2015 में संपन्न हुआ, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करना है।
- भारत और पेरिस समझौता: भारत ने इस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार, और वनों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धताएँ जताई हैं।
ग्रीन फाइनेंस (Green Finance)
ग्रीन फाइनेंस का उद्देश्य पर्यावरणीय लाभ प्राप्त करने वाले परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, और प्रदूषण नियंत्रण जैसी परियोजनाएं शामिल हैं।
जलवायु वित्त (Climate Finance)
जलवायु वित्त का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन उपायों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना है।
- वैश्विक जलवायु कोष (Global Climate Fund): इसका उद्देश्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करना है।
- जीसीएफ (GCF): ग्रीन क्लाइमेट फंड के तहत विभिन्न कदम उठाए गए हैं और उपलब्धियां हासिल की गई हैं।
- जीईएफ (GEF): ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी का उद्देश्य वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करना है।
धारणीय विकास और जलवायु परिवर्तन: भारतीय परिप्रेक्ष्य (Sustainable Development and Climate Change: Indian Perspective)
भारत में धारणीय विकास और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई चुनौतियां हैं, जैसे कि बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, और शहरीकरण।
- आईएनडीसीज (INDCs): भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना और नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार करना है।
- एनएपीसीसी (NAPCC): राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना में आठ प्रमुख मिशन शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर केंद्रित हैं।
- एसएपीसीसी (SAPCC): राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाएं, जिनका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है।
- एनएएफसीसी (NAFCC): राष्ट्रीय अनुकूलन कोष का उद्देश्य अनुकूलन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
कोयला सेस और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (Coal Cess and National Clean Energy Fund)
कोयला सेस का उद्देश्य कोयला उत्पादन पर कर लगाकर स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना है।
परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (Perform, Achieve and Trade – PAT)
पीएटी योजना का उद्देश्य उद्योगों को ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए प्रेरित करना है। इसके तहत उद्योगों को ऊर्जा दक्षता प्रमाण पत्र दिए जाते हैं जिन्हें वे ट्रेड भी कर सकते हैं।
अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy)
भारत में सौर, पवन, जल, और बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का तेजी से विकास हो रहा है। सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
भविष्य का परिदृश्य (Future Outlook)
भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और अधिक कठोर नीतियों और योजनाओं की आवश्यकता होगी। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा का और अधिक विस्तार, ऊर्जा दक्षता में सुधार, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल है।
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