भारत में आर्थिक नियोजन के साथ-साथ प्रादेशिक नियोजन (Regional Planning) भी एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों के संतुलित और समग्र विकास को सुनिश्चित करना है। प्रादेशिक नियोजन के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने, पिछड़े क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देने, और आर्थिक संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है।
प्रादेशिक नियोजन का महत्व
- क्षेत्रीय असमानता को कम करना: प्रादेशिक नियोजन का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के बीच आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को कम करना है।
- स्थानीय संसाधनों का विकास: स्थानीय संसाधनों का उचित उपयोग करके आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- संतुलित विकास: सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास सुनिश्चित करना, ताकि किसी क्षेत्र विशेष का विकास न हो और बाकी क्षेत्र पिछड़े न रहें।
- रोजगार सृजन: क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाना और प्रवास की समस्याओं को कम करना।
- सामाजिक समरसता: सामाजिक समरसता और स्थिरता को बढ़ावा देना, ताकि सभी क्षेत्रों और समाज के सभी वर्गों को विकास के लाभ मिल सकें।
भारत में प्रादेशिक नियोजन की प्रमुख पहल
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) योजना:
- दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों का समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए यह योजना बनाई गई।
- इसका उद्देश्य दिल्ली पर जनसंख्या और विकास का दबाव कम करना और आसपास के क्षेत्रों का विकास करना है।
पश्चिमी घाट विकास कार्यक्रम:
- यह कार्यक्रम पश्चिमी घाट क्षेत्रों के संरक्षण और विकास के लिए शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना और क्षेत्र के निवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारना है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास परिषद (NERDC):
- पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के विकास के लिए यह परिषद बनाई गई।
- इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचा, संचार, और आर्थिक गतिविधियों का विकास करना है।
बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड (BRGF):
- पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष निधि प्रदान करना।
- इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे और सेवाओं का विकास करना और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना है।
दक्षिण एशियाई ग्रोथ ट्रायंगल (SAGT):
- यह एक क्षेत्रीय सहयोग योजना है, जिसमें भारत, म्यांमार, और थाईलैंड शामिल हैं।
- इसका उद्देश्य क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना और आर्थिक सहयोग को मजबूत करना है।
प्रादेशिक नियोजन की चुनौतियाँ
- संसाधनों की कमी: क्षेत्रीय विकास योजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता।
- न्यायसंगत वितरण: विकास के लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना।
- संरचनात्मक समस्याएँ: प्रादेशिक योजनाओं के कार्यान्वयन में संरचनात्मक समस्याएँ और बाधाएँ।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी: स्थानीय स्तर पर नवाचार और प्रौद्योगिकी का विकास।
- स्थानीय प्रशासन: प्रादेशिक नियोजन के लिए सक्षम और प्रभावी स्थानीय प्रशासन का अभाव।
निष्कर्ष
प्रादेशिक नियोजन भारत में आर्थिक और सामाजिक विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना, संतुलित विकास को प्रोत्साहित करना, और सभी क्षेत्रों के निवासियों के जीवन स्तर को सुधारना है। राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। हालाँकि, इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें संबोधित करने के लिए अधिक समन्वित और प्रभावी नीति-निर्माण और कार्यान्वयन की आवश्यकता है। प्रादेशिक नियोजन के सफल कार्यान्वयन से भारत के समग्र विकास और समृद्धि को सुनिश्चित किया जा सकता है।
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