भारत में बैंकिंग का राष्ट्रीयकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और वित्तीय समावेशन में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह निर्णय सरकार ने मुख्य रूप से वित्तीय स्थिरता और समान वित्तीय अवसर सुनिश्चित करने के लिए लिया था।
SBI का उद्भव (Origin of SBI)
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI):
- स्थापना: SBI का उद्भव 1 जुलाई 1955 को हुआ था। इसे पहले इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था।
- विकास: SBI भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक है और इसकी शाखाएँ भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हैं। इसे विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था।
राष्ट्रीयकृत बैंकों का उद्भव (Emergence of nationalized banks)
- 1969 का राष्ट्रीयकरण:
- 19 जुलाई 1969 को, भारत सरकार ने 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। यह निर्णय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने लिया था।
- कारण: ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करना, कृषि और छोटे उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना, और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना।
- परिणाम: बैंकिंग क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता, वित्तीय संसाधनों का समान वितरण और ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता बढ़ी।
- 1980 का राष्ट्रीयकरण:
- 1980 में, सरकार ने 6 और वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
- परिणाम: राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या बढ़कर 20 हो गई और वित्तीय समावेशन में और वृद्धि हुई।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक – Regional Rural Bank (RRBs)
- स्थापना: 1975 में, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) की स्थापना की गई। इनका उद्देश्य ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करना था।
- कार्यक्षेत्र: RRBs को मुख्य रूप से कृषि, छोटे उद्योगों, और ग्रामीण कारीगरों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
- विशेषताएँ: RRBs का स्वामित्व केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार, और प्रायोजक बैंकों (जैसे कि SBI) के बीच साझा होता है।
सहकारी बैंक – Cooperative bank
- परिचय: सहकारी बैंक मुख्य रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये बैंक सदस्यता आधारित होते हैं और सदस्यों के लिए संचालित होते हैं।
- प्रकार: सहकारी बैंक दो प्रकार के होते हैं – ग्रामीण सहकारी बैंक और शहरी सहकारी बैंक।
इन बैंकों की समस्याएँ
- राष्ट्रीयकृत बैंक:
- एनपीए (Non-Performing Assets): अधिकतर राष्ट्रीयकृत बैंकों को एनपीए की समस्या का सामना करना पड़ा है, जो बैंकों की वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करता है।
- सरकारी हस्तक्षेप: बैंकों के कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप कभी-कभी बैंकों के स्वतंत्र निर्णयों को बाधित करता है।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs):
- अप्रभावी प्रबंधन: कई RRBs प्रबंधन में कमजोरी के कारण अपने उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाए हैं।
- वित्तीय संकट: कुछ RRBs वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, जो उनकी स्थिरता और विकास को प्रभावित करता है।
- सहकारी बैंक:
- प्रबंधन और प्रशासन में कमजोरियाँ: सहकारी बैंकों में अक्सर प्रबंधन और प्रशासनिक कमजोरियाँ होती हैं।
- पूंजी की कमी: कई सहकारी बैंक पर्याप्त पूंजी की कमी से जूझते हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।
- भ्रष्टाचार: कुछ सहकारी बैंकों में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग की घटनाएँ भी होती हैं।
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