सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एन एम एस ए)
राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (एनएमएसए) भारत सरकार की एक पहल है जिसका उद्देश्य देश में कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने और किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- जलवायु अनुकूल कृषि:
- यह योजना कृषि तकनीकियों को जलवायु परिवर्तन के अनुसार बदलने और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूलित करने के लिए बनाई गई है। इसमें सिंचाई प्रणालियों का प्रबंधन, जल संरक्षण, और सुस्त विकास शामिल होता है।
- जैविक कृषि:
- इस योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि कार्य प्रणालियों को प्राकृतिक तरीके से संरक्षित करना और खेती में उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग को कम करना है। इसमें जैविक खेती, गोबर गैस योजनाएं, और कृषि विकास को सुस्त बनाने के लिए तकनीकी सहायता शामिल है।
यह मिशन 2014 में शुरू किया गया था और इसका लक्ष्य 2022-23 तक 12 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करना है।
मिशन के मुख्य घटक:
- जैविक खेती: किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, जो रसायनों और सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग से बचा जाता है।
- सूक्ष्म सिंचाई: पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार के लिए ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर इरिगेशन जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
- परिषोधन और मूल्यवर्धन: फसलों के मूल्य को बढ़ाने के लिए प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाओं में सुधार करना।
- जलवायु अनुकूल कृषि: किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करने के लिए जलवायु अनुकूल कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
- किसान सशक्तिकरण: किसानों को बेहतर कृषि प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने और उन्हें बाजार से जोड़ने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
मिशन की उपलब्धियां:
- एनएमएसए के तहत, भारत में जैविक खेती के तहत आने वाले क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को अपनाया है, जिससे पानी के उपयोग में काफी बचत हुई है।
- फसलों के प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाओं में सुधार हुआ है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिली है।
- किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि प्रथाओं के बारे में शिक्षित किया गया है।
- क्षमता निर्माण कार्यक्रमों ने किसानों को बेहतर कृषि प्रथाओं को अपनाने और बाजार से जुड़ने में मदद की है।
मिशन की चुनौतियां:
- जैविक खेती को अपनाने में किसानों की अनिच्छा: कुछ किसान रसायनों और सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग से होने वाले उच्च उत्पादन के आदी हैं।
- सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों की उच्च लागत: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों की स्थापना महंगी हो सकती है, जिससे कुछ किसानों के लिए उन्हें अपनाना मुश्किल हो जाता है।
- प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाओं की कमी: कुछ क्षेत्रों में, किसानों को अपनी उपज को संसाधित करने और संग्रहीत करने के लिए पर्याप्त सुविधाओं तक पहुंच नहीं है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए किसानों की कमी: कई किसान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उनसे निपटने के लिए आवश्यक अनुकूलन रणनीतियों से अवगत नहीं हैं।
- किसानों तक पहुंच: कुछ किसानों को योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी तक पहुंचने में कठिनाई होती है।
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