1970 के दशक के बाद भारत में मुद्रास्फीति
1970 के दशक के बाद भारत में मुद्रास्फीति के पैटर्न और कारणों में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए। यह अवधि आर्थिक सुधारों, नीतिगत बदलावों और वैश्विक घटनाओं से प्रभावित थी। भारत में मुद्रास्फीति के प्रमुख चरणों और उनके कारणों का विश्लेषण नीचे दिया गया है:
1. 1970 का दशक
तेल संकट
- 1973 और 1979 के तेल संकट: तेल की कीमतों में भारी वृद्धि ने भारत की मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया। तेल आयात पर निर्भरता के कारण ऊर्जा और परिवहन की लागत में वृद्धि हुई, जिससे समग्र मूल्य स्तर बढ़ा।
कृषि क्षेत्र में अस्थिरता
- मौसम की अस्थिरता: 1970 के दशक में कृषि उत्पादन में अस्थिरता और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने खाद्य कीमतों को प्रभावित किया, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ी।
2. 1980 का दशक
आर्थिक सुधार और सरकारी खर्च
- सुधारों की शुरुआत: 1980 के दशक में, भारत ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें लाइसेंस-परमिट राज का कुछ हद तक उदारीकरण शामिल था। हालांकि, इन सुधारों ने मुद्रास्फीति पर तात्कालिक प्रभाव नहीं डाला।
- सरकारी खर्च: बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च और सब्सिडी ने मांग बढ़ाई और मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया।
बाहरी ऋण
- बाहरी ऋण संकट: 1980 के दशक के उत्तरार्ध में, भारत ने बढ़ते बाहरी ऋण का सामना किया। ऋण की उच्च लागत ने वित्तीय अस्थिरता को बढ़ाया और मुद्रास्फीति में योगदान दिया।
3. 1990 का दशक
आर्थिक उदारीकरण
- 1991 का आर्थिक सुधार: 1991 में, भारत ने बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधार किए, जिनमें लाइसेंस-परमिट राज का अंत, व्यापार उदारीकरण, और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना शामिल था। इन सुधारों ने लंबे समय में आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, लेकिन प्रारंभिक चरण में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में चुनौतियाँ आईं।
- रुपया अवमूल्यन: 1991 में, भारत ने अपने मुद्रा का अवमूल्यन किया, जिससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ा।
4. 2000 का दशक
आर्थिक विकास और वैश्विक कारक
- उच्च आर्थिक विकास: 2000 के दशक में, भारत ने उच्च आर्थिक विकास दर प्राप्त की, जिससे मांग में वृद्धि हुई और मुद्रास्फीति बढ़ी।
- वैश्विक कमोडिटी कीमतें: इस दशक के मध्य में, वैश्विक कमोडिटी कीमतों में वृद्धि ने भारत में मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया।
मौद्रिक नीति
- मौद्रिक नीति का कड़ा होना: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति को कड़ा किया। उच्च ब्याज दरों ने मांग को कम करने में मदद की।
5. 2010 का दशक
खाद्य मुद्रास्फीति
- खाद्य कीमतों में अस्थिरता: 2010 के दशक में, भारत ने खाद्य मुद्रास्फीति का सामना किया, जो कि खराब मौसम, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएँ, और कृषि उत्पादन में कमी के कारण बढ़ी।
- सरकारी नीतियाँ: खाद्य सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीतियों ने खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित किया।
वैश्विक वित्तीय संकट का प्रभाव
- 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट: इस संकट ने भारत की मुद्रास्फीति पर मिश्रित प्रभाव डाला। शुरुआती चरण में, वैश्विक मांग में कमी से मुद्रास्फीति में कमी आई, लेकिन बाद में आर्थिक पुनर्प्राप्ति के प्रयासों ने मुद्रास्फीति को बढ़ाया।
6. वर्तमान समय (2020 का दशक)
COVID-19 महामारी का प्रभाव
- आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएँ: महामारी के दौरान और बाद में, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों और उत्पादन में कमी के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी।
- सरकारी प्रोत्साहन पैकेज: आर्थिक मंदी से निपटने के लिए सरकार द्वारा घोषित प्रोत्साहन पैकेजों ने मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाया और मुद्रास्फीति पर प्रभाव डाला।
वैश्विक मुद्रास्फीति दबाव
- वैश्विक ऊर्जा और खाद्य कीमतें: हाल के वर्षों में, वैश्विक ऊर्जा और खाद्य कीमतों में वृद्धि ने भारत में मुद्रास्फीति को प्रभावित किया।
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