भारत का खाद्य दर्शन कई चरणों में विकसित हुआ है, जो देश के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करता है। ये चरण भारतीय कृषि और खाद्य प्रणाली के विकास और सुधार के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। इन्हें तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया जा सकता है:
प्रथम चरण: खाद्य आत्मनिर्भरता (Food Self-Sufficiency)
यह चरण 1960 के दशक से प्रारंभ होता है, जब भारत ने हरित क्रांति (Green Revolution) के माध्यम से कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया।
- हरित क्रांति: हरित क्रांति के माध्यम से उच्च उत्पादकता वाले बीज, उर्वरक, और सिंचाई तकनीकों का उपयोग बढ़ाया गया, जिससे खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई।
- कृषि नीतियाँ: सरकार ने किसानों को समर्थन देने के लिए विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ शुरू कीं, जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और कृषि ऋण।
- उपज वृद्धि: खाद्य आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए जिससे भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बना।
द्वितीय चरण: खाद्य सुरक्षा और स्थिरता (Food Security and Sustainability)
यह चरण 1990 के दशक से शुरू हुआ, जब खाद्य सुरक्षा को मुख्य मुद्दा माना गया और स्थिरता पर जोर दिया गया।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): सरकार ने गरीबों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ किया।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): 2013 में यह अधिनियम पारित किया गया, जिसका उद्देश्य गरीब और वंचित वर्गों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
- सतत कृषि (Sustainable Agriculture): कृषि उत्पादन की स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए नई तकनीकों और जैविक खेती को बढ़ावा दिया गया।
तृतीय चरण: खाद्य विविधता और गुणवत्ता (Food Diversity and Quality)
यह चरण हाल के वर्षों में उभरा है, जब खाद्य विविधता और गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- पोषण सुरक्षा: पोषण के दृष्टिकोण से विविध और संतुलित आहार को प्रोत्साहित किया गया। सरकार ने पोषण अभियान और मिड-डे मील जैसी योजनाओं को लागू किया।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा दिया गया ताकि विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों की उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।
- स्थानीय और पारंपरिक खाद्य: स्थानीय और पारंपरिक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए। इससे खाद्य विविधता को प्रोत्साहन मिला और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी समर्थन मिला।
- गुणवत्ता नियंत्रण: खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न मानक और नियामक स्थापित किए गए, जैसे कि FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India)।
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