भारत में खाद्य प्रबंधन (Food Management) का एक महत्वपूर्ण घटक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) है, जिसका उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य प्रदान करना और उन्हें आर्थिक सुरक्षा देना है। MSP के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उनके उत्पाद का न्यूनतम मूल्य मिले, जिससे उन्हें बाजार की अस्थिरताओं से बचाया जा सके।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
उद्देश्य
- कृषकों को उचित मूल्य प्रदान करना: MSP का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देना है, ताकि वे अपनी लागत निकाल सकें और उन्हें पर्याप्त लाभ हो सके।
- आर्थिक सुरक्षा: MSP किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे वे उत्पादन की लागत से अधिक मूल्य प्राप्त कर सकें और किसी भी प्रकार के वित्तीय संकट से बच सकें।
- उत्पादन प्रोत्साहन: MSP फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और किसानों को उपयुक्त प्रोत्साहन मिल सके।
निर्धारण प्रक्रिया
- कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP): MSP का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा किया जाता है, जो विभिन्न फसलों की उत्पादन लागत, बाजार की स्थिति, और अन्य आर्थिक कारकों का विश्लेषण करता है।
- सरकार द्वारा अनुमोदन: CACP की सिफारिशों के आधार पर, सरकार MSP की घोषणा करती है। यह घोषणा खरीफ और रबी सीजन की फसलों के लिए की जाती है।
लाभ
- बाजार अस्थिरता से सुरक्षा: MSP किसानों को बाजार की अस्थिरताओं से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे उन्हें अपनी उपज का न्यूनतम मूल्य मिल सके।
- आय में स्थिरता: MSP से किसानों की आय में स्थिरता आती है, जिससे वे अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत बना सकते हैं।
- खाद्य सुरक्षा: MSP से प्रोत्साहित होकर किसान अधिक उत्पादन करते हैं, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- कृषि उत्पादों का मूल्य स्थिरीकरण: MSP के माध्यम से सरकार कृषि उत्पादों के मूल्यों को स्थिर रख सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को भी लाभ होता है।
बाजार हस्तक्षेप योजना (Market Intervention Scheme – MIP)
बाजार हस्तक्षेप योजना (MIP) एक ऐसी सरकारी नीति है जिसका उद्देश्य बाजार में कृषि उत्पादों की कीमतों में अत्यधिक गिरावट को रोकना और किसानों को उचित मूल्य समर्थन प्रदान करना है। यह योजना विशेष रूप से उन परिस्थितियों में उपयोगी होती है जब किसी विशेष कृषि उत्पाद का उत्पादन बहुत अधिक होता है और बाजार में उसकी कीमत MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे चली जाती है।
उद्देश्य
- मूल्य स्थिरीकरण: बाजार में अत्यधिक आपूर्ति के कारण कीमतों में गिरावट को रोकना।
- किसानों को संरक्षण: किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना और उन्हें वित्तीय संकट से बचाना।
- मांग और आपूर्ति संतुलन: कृषि उत्पादों के बाजार में संतुलन बनाए रखना।
- खाद्य सुरक्षा: सरकारी खरीद के माध्यम से बफर स्टॉक का निर्माण करना ताकि आपातकालीन स्थिति में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
कार्यप्रणाली
- सरकारी खरीद: जब किसी कृषि उत्पाद की कीमत MSP से नीचे चली जाती है, तो सरकार या उसके अधिकृत एजेंसियां उस उत्पाद को निर्धारित मूल्य पर खरीदती हैं।
- मूल्य समर्थन: सरकार निर्धारित मूल्य पर उत्पाद खरीदकर किसानों को मूल्य समर्थन प्रदान करती है, जिससे उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
- भंडारण और वितरण: खरीदे गए कृषि उत्पादों का भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से वितरण किया जाता है।
- निर्यात: कभी-कभी अत्यधिक भंडारण को कम करने के लिए खरीदे गए उत्पादों का निर्यात भी किया जाता है।
उदाहरण
फलों और सब्जियों की खरीद: उदाहरण के लिए, जब आलू, प्याज, टमाटर आदि की कीमतें बाजार में अत्यधिक गिर जाती हैं, तो सरकार MIP के तहत इन उत्पादों की खरीद करती है।
लाभ
- किसानों की आय में वृद्धि: MIP के माध्यम से किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
- मूल्य स्थिरता: बाजार में कीमतों में अत्यधिक गिरावट को रोकने में मदद मिलती है, जिससे मूल्य स्थिरता बनी रहती है।
- खाद्य सुरक्षा: खरीदे गए उत्पादों का भंडारण आपातकालीन स्थिति में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक स्थिरता: किसानों की आर्थिक स्थिरता में सुधार होता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होता है।
प्राप्ति/खरीद मूल्य (Procurement Price)
प्राप्ति/खरीद मूल्य (Procurement Price) वह न्यूनतम मूल्य है जिसे सरकार द्वारा कृषि उत्पादों की खरीद के लिए निर्धारित किया जाता है। यह मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ऊपर हो सकता है और इसे विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा तय किया जाता है।
उद्देश्य
- कृषकों को न्यूनतम आय सुनिश्चित करना: किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना।
- बाजार स्थिरता: बाजार में अत्यधिक मूल्य गिरावट से बचाना।
- सरकारी भंडार: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और बफर स्टॉक के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज संग्रहित करना।
कार्यप्रणाली
- सरकारी खरीद: सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसियां, जैसे भारतीय खाद्य निगम (FCI), राज्य सरकार की एजेंसियां, निर्धारित मूल्य पर किसानों से कृषि उत्पादों की खरीद करती हैं।
- पारदर्शी प्रक्रिया: किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए मंडियों में उचित और पारदर्शी प्रक्रिया उपलब्ध कराई जाती है।
- भुगतान: खरीद की गई उपज का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में किया जाता है।
उदाहरण
- धान और गेहूं: भारतीय खाद्य निगम (FCI) धान और गेहूं की खरीद करता है और इनका भंडारण करता है।
- दलहन और तिलहन: राज्य सरकार की एजेंसियां और नैफेड (NAFED) दलहन और तिलहन की खरीद करती हैं।
बफर स्टॉक (Buffer Stock)
बफर स्टॉक (Buffer Stock) का मतलब सरकार द्वारा अत्यधिक फसल का भंडारण है, ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और मूल्य स्थिरता बनाए रखी जा सके।
उद्देश्य
- खाद्य सुरक्षा: आपातकालीन स्थितियों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- मूल्य स्थिरता: बाजार में अत्यधिक मूल्य वृद्धि या कमी को नियंत्रित करना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): गरीब और जरूरतमंद लोगों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराना।
कार्यप्रणाली
- सरकारी खरीद: सरकार और उसकी एजेंसियां किसानों से कृषि उत्पादों की खरीद करती हैं।
- भंडारण: खरीदे गए उत्पादों को गोदामों और कोल्ड स्टोरेज में संग्रहीत किया जाता है।
- रिलीज: जब बाजार में कीमतें बढ़ती हैं या कमी होती है, तो बफर स्टॉक से उत्पादों को बाजार में जारी किया जाता है।
उदाहरण
- गेहूं और चावल का भंडारण: भारतीय खाद्य निगम (FCI) बड़े पैमाने पर गेहूं और चावल का भंडारण करता है।
- पल्स और तिलहन: नैफेड (NAFED) द्वारा दलहन और तिलहन का भंडारण।
Leave a Reply