प्रस्तावना (Introduction)
आर्थिक सुधार का उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को और अधिक प्रतिस्पर्धी, प्रभावी और समावेशी बनाना है। ये सुधार नीतियों, प्रक्रियाओं और संरचनाओं में परिवर्तन के माध्यम से किए जाते हैं, जिससे आर्थिक विकास दर में सुधार हो और सभी वर्गों के लिए समृद्धि सुनिश्चित हो सके।
योजना मॉडल (Planning Model)
वाशिंगटन सहमति (Washington Consensus)
- प्रारंभिक सिद्धांत: 1989 में जॉन विलियम्स के द्वारा प्रस्तुत, यह सहमति वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुधारों के मानक मानी जाती है।
- मुख्य सिद्धांत:
- वित्तीय स्थिरता बनाए रखना।
- सार्वजनिक खर्च में सुधार।
- कर सुधार।
- विनियमण में सुधार।
- निर्यात को प्रोत्साहन।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।
मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)
- मूल सिद्धांत: एक ऐसी व्यवस्था जिसमें निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का योगदान होता है।
- उद्देश्य: सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना।
भारत में आर्थिक सुधार (Economic Reforms in India)
बाध्यकारी सुधार (Compulsory Reforms)
- उद्देश्य: आर्थिक संकट और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दबाव में सुधार लागू करना।
आर्थिक सुधारों की युक्तियां (Components of Economic Reforms)
- एलपीजी:
- उदारीकरण (Liberalization): सरकारी नियंत्रणों और विनियमों को कम करना।
- निजीकरण (Privatization): सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना।
- वैश्वीकरण (Globalization): वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत को एकीकृत करना।
आर्थिक सुधारों की पीढ़ियां (Phases of Economic Reforms)
प्रथम पीढ़ी के सुधार (1991 से 2000)
- मुख्य उद्देश्य: आर्थिक संकट से उबरना और संरचनात्मक सुधार लागू करना।
- मुख्य कदम:
- वित्तीय क्षेत्र में सुधार: बैंकिंग सुधार, वित्तीय बाजारों को मुक्त करना।
- मूल्य निर्धारण के सुधार: सरकारी नियंत्रण हटाना।
- कर सुधार: अप्रत्यक्ष करों में सुधार, नई कर संरचना लागू करना।
- उदारीकरण: आयात-निर्यात नीति में सुधार, लाइसेंस प्रणाली समाप्त करना।
द्वितीय पीढ़ी के सुधार (2000-01 के बाद)
- मुख्य उद्देश्य: प्रथम पीढ़ी के सुधारों को गहरा करना और नई चुनौतियों का सामना करना।
- मुख्य कदम:
- कृषि सुधार: कृषि उत्पादकता बढ़ाना, नई तकनीकों को अपनाना।
- उद्योग सुधार: उद्यमिता को प्रोत्साहन, घरेलू बाजार को वैश्विक बाजार से जोड़ना।
- बाजार सुधार: पूंजी बाजार में सुधार, बैंकों का पुनर्गठन।
- निजीकरण: सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण, एफडीआई को प्रोत्साहन देना।
कारक बाजार सुधार (Factor Market Reforms)
- मूल बातें: श्रम, भूमि और पूंजी बाजार में सुधार।
- मुख्य कदम:
- श्रम सुधार: श्रम कानूनों में संशोधन, अनुकूल श्रम नीति।
- भूमि सुधार: भूमि उपयोग नीति में सुधार, भूमि बाजार को मुक्त करना।
- पूंजी बाजार सुधार: वित्तीय समावेशन, पूंजी बाजार को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना।
सार्वजनिक क्षेत्र सुधार (Public Sector Reforms)
- मुख्य उद्देश्य: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की कार्यक्षमता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना।
- मुख्य कदम:
- निजीकरण: गैर-रणनीतिक सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण।
- कंपनियों के पुनर्गठन: व्यावसायिकता बढ़ाना, दक्षता में सुधार।
सरकार एवं लोक संस्थानों में सुधार (Reforms in Government and Public Institutions)
- मुख्य उद्देश्य: प्रशासनिक दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना।
- मुख्य कदम:
- सरकारी प्रक्रिया में सुधार: ई-गवर्नेंस, सेवा वितरण में सुधार।
- वित्तीय प्रबंधन: बजट प्रक्रिया, सरकारी लेखा प्रणाली में सुधार।
वैधानिक क्षेत्र सुधार (Regulatory Sector Reforms)
- मुख्य उद्देश्य: विनियामक तंत्र को प्रभावी और पारदर्शी बनाना।
- मुख्य कदम:
- विनियमन में सुधार: अनावश्यक विनियमों को हटाना, औद्योगिक नीति में सुधार।
- न्यायिक सुधार: कानूनी प्रक्रिया को सरल और तेज बनाना।
क्रांतिक क्षेत्र सुधार (Transformative Sector Reforms)
- मुख्य उद्देश्य: तकनीकी नवाचार, अनुसंधान एवं विकास में सुधार।
- मुख्य कदम:
- प्रौद्योगिकी सुधार: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश, अनुसंधान को प्रोत्साहन।
- शिक्षा और कौशल विकास: शिक्षा प्रणाली में सुधार, तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण में वृद्धि।
तृतीय पीढ़ी के सुधार (Third Generation Reforms)
- मुख्य उद्देश्य: आर्थिक विकास को सुदृढ़ और समावेशी बनाना।
- मुख्य कदम:
- वित्तीय समावेशन: सभी वर्गों को वित्तीय सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना।
- सुधार का गहराईकरण: पहले के सुधारों को और गहरा करना, नए क्षेत्रों में सुधार।
चौथी पीढ़ी के सुधार (Fourth Generation Reforms)
- मुख्य उद्देश्य: दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और समावेशी विकास।
- मुख्य कदम:
- वित्तीय प्रणाली का सुदृढ़ीकरण: बैंकों और वित्तीय संस्थानों का पुनर्गठन।
- मूल्य श्रृंखला में सुधार: कृषि, विनिर्माण, और सेवा क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला को सशक्त बनाना।
- पर्यावरणीय सुधार: सतत विकास, हरित अर्थव्यवस्था में निवेश।
सुधारों का दृष्टिकोण (Approach to Reforms)
- सुधार की निरंतरता: सुधार प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखना।
- समावेशी विकास: सभी वर्गों के लिए विकास के अवसर प्रदान करना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और नागरिकों की जवाबदेही बढ़ाना।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना।
समापन (Conclusion)
आर्थिक सुधार भारत की विकास यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो देश को समृद्ध, समावेशी और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इन सुधारों के माध्यम से भारत न केवल अपने आर्थिक विकास की दर को बढ़ा सकता है, बल्कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भी एक मजबूत स्थान बना सकता है।
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