विकेन्द्रित नियोजन (Decentralized Planning) वह प्रक्रिया है जिसमें नियोजन और विकास के निर्णय लेने की शक्ति केंद्र सरकार से निचले स्तर की सरकारों (जैसे राज्य, जिला, पंचायत) को स्थानांतरित की जाती है। इसका उद्देश्य स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से समझकर उन्हें विकास योजनाओं में सम्मिलित करना है।
विकेन्द्रित नियोजन के प्रमुख तत्व:
1. स्थानीय भागीदारी:
- नागरिक सहभागिता: समुदाय के सदस्यों को नियोजन प्रक्रिया में शामिल करना ताकि वे अपनी आवश्यकताओं और समस्याओं को व्यक्त कर सकें।
- स्थानीय नेतृत्व: पंचायत और नगरपालिका जैसे स्थानीय निकायों को निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करना।
2. अधिकारों का वितरण:
- वित्तीय अधिकार: स्थानीय निकायों को वित्तीय संसाधनों का वितरण करना ताकि वे अपने क्षेत्र में विकास कार्य कर सकें।
- प्रशासनिक अधिकार: निर्णय लेने और योजनाओं के क्रियान्वयन के अधिकारों का विकेंद्रीकरण।
3. क्षमता निर्माण:
- प्रशिक्षण और विकास: स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों को नियोजन और क्रियान्वयन के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करना।
- तकनीकी सहायता: तकनीकी और विशेषज्ञ सहायता उपलब्ध कराना ताकि योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन हो सके।
4. पारदर्शिता और जवाबदेही:
- सार्वजनिक निगरानी: योजनाओं की प्रगति और खर्च की निगरानी के लिए सार्वजनिक मंचों का उपयोग।
- जवाबदेही: स्थानीय निकायों को उनके कार्यों और निर्णयों के लिए जिम्मेदार ठहराना।
विकेन्द्रित नियोजन के लाभ:
1. स्थानीय आवश्यकताओं का बेहतर समावेश:
- स्थानीय निकायों को उनकी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार योजनाएँ बनाने की स्वतंत्रता होती है।
- इससे क्षेत्रीय विषमताओं को कम करने में मदद मिलती है।
2. तेजी और लचीलेपन में सुधार:
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी आती है क्योंकि स्थानीय निकाय अधिक लचीले होते हैं और त्वरित प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
- समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर ही किया जा सकता है, जिससे कार्यान्वयन की गति बढ़ती है।
3. संसाधनों का कुशल उपयोग:
- स्थानीय स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है।
- भ्रष्टाचार और बिचौलियों की भूमिका कम होती है।
4. स्थानीय क्षमता और नेतृत्व का विकास:
- विकेन्द्रित नियोजन स्थानीय नेतृत्व और प्रबंधन कौशल को विकसित करता है।
- इससे समुदाय के सदस्यों में आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी की भावना बढ़ती है।
भारत में विकेन्द्रित नियोजन की दिशा में पहल:
1. 73वां और 74वां संविधान संशोधन:
- 1992 में 73वां और 74वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया, जिससे पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा मिला।
- इन संशोधनों के तहत स्थानीय निकायों को वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए गए।
2. ग्राम सभाएँ और जिला योजना समितियाँ:
- ग्राम सभाओं और जिला योजना समितियों की स्थापना की गई ताकि स्थानीय स्तर पर योजनाओं का निर्माण और क्रियान्वयन हो सके।
- यह संस्थाएँ स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएँ बनाने और उन्हें लागू करने में सहायक होती हैं।
3. पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs):
- ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद जैसी पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त किया गया।
- इन्हें योजनाओं के क्रियान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन की जिम्मेदारी दी गई।
4. वित्तीय विकेंद्रीकरण:
- राज्य वित्त आयोगों की स्थापना की गई ताकि स्थानीय निकायों को वित्तीय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण हो सके।
- केंद्रीय और राज्य सरकारें स्थानीय निकायों को अनुदान और वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।
चुनौतियाँ और समाधान:
1. कुशलता और संसाधनों की कमी:
- स्थानीय निकायों के पास पर्याप्त संसाधनों और कुशल कर्मचारियों की कमी हो सकती है।
- समाधान: क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन।
2. राजनीतिक हस्तक्षेप:
- राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार की समस्या।
- समाधान: पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने वाले तंत्रों का विकास।
3. संसाधनों का असमान वितरण:
- संसाधनों का असमान वितरण और क्षेत्रीय विषमताएँ।
- समाधान: न्यायसंगत वित्तीय वितरण और निगरानी तंत्र का सुदृढ़ीकरण।
Leave a Reply