भारत में नियोजन के संदर्भ में कांग्रेस योजना (Congress Plan) एक महत्वपूर्ण पहल थी जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्तुत किया था। यह योजना 1938 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के अधीन गठित एक राष्ट्रीय योजना समिति (National Planning Committee) द्वारा तैयार की गई थी। इस समिति की अध्यक्षता प्रसिद्ध वैज्ञानिक और योजना विशेषज्ञ, सर एम. विश्वेश्वरैया ने की थी।
कांग्रेस योजना की मुख्य विशेषताएँ:
स्वतंत्रता से पूर्व योजना: यह योजना भारत की स्वतंत्रता से पूर्व की गई पहली प्रमुख योजना थी और इसका उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के आर्थिक विकास के लिए एक ठोस नींव रखना था।
समग्र विकास: योजना का उद्देश्य कृषि, उद्योग, परिवहन, शिक्षा, और सार्वजनिक स्वास्थ्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में समग्र विकास को प्रोत्साहित करना था।
औद्योगिकीकरण: योजना में औद्योगिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया था। इसमें भारी उद्योगों के विकास, आधुनिक मशीनरी और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही गई थी।
कृषि सुधार: कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए भूमि सुधार, सिंचाई परियोजनाओं, और आधुनिक कृषि तकनीकों के उपयोग पर जोर दिया गया था।
सामाजिक न्याय: योजना में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए असमानताओं को कम करने और समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए विभिन्न उपायों का प्रस्ताव किया गया था।
शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए विशेष प्रावधान किए गए थे ताकि जनता का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके।
रोजगार सृजन: योजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रोजगार के अवसरों का सृजन करना था ताकि बेरोजगारी और गरीबी को कम किया जा सके।
कांग्रेस योजना का प्रभाव:
कांग्रेस योजना ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद भारतीय योजना प्रक्रिया को गहन रूप से प्रभावित किया। इस योजना के कई सिद्धांत और सुझाव बाद में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में शामिल किए गए। यह योजना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं और नीति निर्माताओं को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करने में सफल रही, जिससे स्वतंत्रता के बाद के विकासात्मक प्रयासों को दिशा मिली।
निष्कर्ष:
कांग्रेस योजना भारतीय नियोजन इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान न केवल एक स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की, बल्कि भारतीय नीति निर्माताओं को एक समग्र और समावेशी विकास दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा भी दी।
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