केंद्रीय नियोजन (Central Planning) एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें आर्थिक गतिविधियों का नियंत्रण और नियमन एक केंद्रीकृत सरकारी प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। इस प्रकार की योजना का उद्देश्य समग्र आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय, और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना होता है। केंद्रीय नियोजन के कुछ मुख्य तत्व और विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
भारत में केंद्रीय नियोजन:
1. भारत ने 1950 के दशक से 1990 के दशक तक एक मिश्र अर्थव्यवस्था का पालन किया, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. इस अवधि के दौरान, भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण नियंत्रण रखा और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास को निर्देशित किया।
3. इन योजनाओं ने कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचे और सामाजिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों में निवेश और विकास के लिए लक्ष्य निर्धारित किए।
केंद्रीय नियोजन के लाभ:
केंद्रीकृत निर्णय-निर्माण (Centralized decision-making):
- सभी प्रमुख आर्थिक निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं, जिसमें उत्पादन, वितरण, मूल्य निर्धारण और संसाधनों का आवंटन शामिल है।
- सरकारी एजेंसियाँ और मंत्रालय आर्थिक योजनाओं और नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन करते हैं।
योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था (Planned economy):
- दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाएँ बनाई जाती हैं, जैसे पंचवर्षीय योजनाएँ, जो देश की आर्थिक प्राथमिकताओं को निर्धारित करती हैं।
- हर योजना में उत्पादन के लक्ष्यों, बुनियादी ढांचे के विकास, और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को शामिल किया जाता है।
संसाधनों का आवंटन:
- केंद्रीय नियोजन संसाधनों के वितरण को अधिकतम उपयोगिता के अनुसार सुनिश्चित करता है।
- संसाधनों का आवंटन सामाजिक और आर्थिक प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाता है।
सामाजिक न्याय:
- केंद्रीय नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य सामाजिक असमानताओं को कम करना और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करना है।
- गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और रोजगार सृजन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
केंद्रीय नियोजन की चुनौतियाँ:
अक्षमता: सरकारें हमेशा बाजारों की तुलना में अर्थव्यवस्था में संसाधनों का कुशलतापूर्वक आवंटन नहीं कर सकती हैं।
कमी: केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्थाओं में अक्सर उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कमी होती है क्योंकि सरकारें उत्पादन और कीमतों को नियंत्रित करती हैं।
अभाव: नागरिकों को अक्सर सरकार द्वारा दी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की स्वतंत्रता नहीं होती है।
भारत में केंद्रीय नियोजन का अंत:
1990 के दशक में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदारीकृत करना शुरू कर दिया, जिसका अर्थ है कि सरकार ने नियंत्रण कम कर दिया और निजी क्षेत्र को अधिक भूमिका दी। इसके कई कारण थे, जिनमें शामिल हैं:
केंद्रीय नियोजन की सीमाएं: सरकार अर्थव्यवस्था को कुशलतापूर्वक चलाने में सक्षम नहीं थी और विकास धीमा हो रहा था।
वैश्वीकरण: भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिक एकीकृत हो रहा था और उसे प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने की आवश्यकता थी।
राजनीतिक दबाव: निजीकरण और उदारीकरण के पक्ष में व्यापक सार्वजनिक और राजनीतिक समर्थन था।
निष्कर्ष:
- केंद्रीय नियोजन ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसने देश को गरीबी को कम करने, बुनियादी ढांचे का निर्माण करने और औद्योगिक आधार विकसित करने में मदद की।
- हालांकि, 1990 के दशक में, यह स्पष्ट हो गया कि केंद्रीय नियोजन भारत की अर्थव्यवस्था को कुशलतापूर्वक चलाने में सक्षम नहीं था।
- परिणामस्वरूप, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदारीकृत करना शुरू कर दिया और निजी क्षेत्र को अधिक भूमिका दी।
- यह बदलाव भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास और समृद्धि की अवधि लाया।
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