स्वतंत्रता के बाद का भारत की सामाजिक चुनौतियाँ और सुधार:- स्वतंत्रता के बाद का भारत कई सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहा था, और इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई सुधार किए गए। इन सामाजिक चुनौतियों और सुधारों को इस प्रकार समझा जा सकता है:-
1. जाति प्रथा और अस्पृश्यता:-
- चुनौती: भारत में जाति प्रथा और अस्पृश्यता एक गहरी जड़ें जमाए हुए सामाजिक समस्या थी। निम्न जातियों के लोगों को सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ता था।
- सुधार: संविधान में अस्पृश्यता को समाप्त किया गया और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने इस सुधार में प्रमुख भूमिका निभाई।
2. महिलाओं की स्थिति:-
- चुनौती: स्वतंत्रता से पहले और बाद में महिलाओं की सामाजिक स्थिति कमजोर थी। उन्हें शिक्षा, रोजगार, और अन्य अधिकारों में भेदभाव का सामना करना पड़ता था।
- सुधार: महिलाओं को कानूनी अधिकार दिए गए, जैसे संपत्ति के अधिकार, तलाक और विवाह में समान अधिकार। 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम जैसे कानून लाए गए।
3. धार्मिक और सांप्रदायिक एकता:-
- चुनौती: विभाजन के बाद धार्मिक और सांप्रदायिक तनावों का दौर था, जिससे सामाजिक एकता को खतरा था।
- सुधार: सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए। संविधान में धर्मनिरपेक्षता को एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में शामिल किया गया।
4. भ्रष्टाचार और प्रशासनिक चुनौतियाँ:-
- चुनौती: स्वतंत्रता के बाद भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया था, जिससे विकास कार्यों में बाधा आ रही थी।
- सुधार: भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए, जैसे कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988। इसके अलावा, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के प्रयास किए गए।
5. शिक्षा और साक्षरता:-
- चुनौती: स्वतंत्रता के समय भारत में साक्षरता दर बहुत कम थी और शिक्षा का स्तर भी पिछड़ा हुआ था।
- सुधार: सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए योजनाएँ शुरू कीं, जैसे कि सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना आदि। 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया गया।
6. गरीबी और आर्थिक असमानता:-
- चुनौती: स्वतंत्रता के समय भारत में गरीबी और आर्थिक असमानता व्यापक रूप से फैली हुई थी।
- सुधार: गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएँ चलाई गईं, जैसे कि पाँच वर्षीय योजनाएँ, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) आदि। साथ ही, कृषि और उद्योग के क्षेत्र में सुधार किए गए।
7. सामाजिक सुरक्षा और कल्याण:-
- चुनौती: समाज के कमजोर वर्गों को सुरक्षा और कल्याण की आवश्यकता थी, जो स्वतंत्रता से पहले पर्याप्त नहीं थी।
- सुधार: सरकार ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की शुरुआत की, जैसे कि वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, जननी सुरक्षा योजना आदि।
स्वतंत्रता के बाद का भारत की आर्थिक चुनौतियाँ और सुधार:- भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्र भारत के सामने आर्थिक विकास एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। योजना आयोग को एक ऐसी आर्थिक प्रणाली के लिए व्यवहार्य योजनाएँ तैयार करने का काम सौंपा गया था जो देश के विकास और वृद्धि में योगदान दे सके और साथ ही लोगों के कल्याण को बढ़ावा दे सके। इस प्रकार, पंचवर्षीय योजनाएँ विकसित की गईं। पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य
- राष्ट्रीय योजना आयोग ने देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ तैयार कीं, जिनका उद्देश्य चार मुख्य लक्ष्यों को प्राप्त करना था: विकास, आत्मनिर्भरता, आधुनिकीकरण, और समानता।
- ये चारों लक्ष्य पंचवर्षीय योजनाओं की नींव थे, और सभी नीतियाँ इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बनाई गईं।
आर्थिक वृद्धि और विकास
- विकास को एक देश की इस क्षमता के रूप में समझा जा सकता है कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएँ और सेवाएँ कितनी अच्छी तरह से उत्पन्न कर सकता है।
- इसे उत्पादक पूंजी, जैसे बैंकिंग, परिवहन जैसी सहायक सेवाओं की मात्रा के आधार पर मापा जा सकता है।
- आर्थिक विकास को आमतौर पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में निरंतर वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो एक वर्ष में किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- आर्थिक विकास का मतलब देश की आय, बचत, और सामाजिक-आर्थिक ढाँचे में बदलाव से भी है। भारत जैसे बड़े आबादी वाले देश में, ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना जरूरी है ताकि आम जनता की जरूरतें पूरी हो सकें।
- कुल GDP तीन मुख्य क्षेत्रों पर आधारित होती है: औद्योगिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, और सेवा क्षेत्र।
- इन तीनों क्षेत्रों का योगदान मिलकर देश की GDP बनाता है। लेकिन भारत जैसे देशों में ऐसा हो सकता है कि एक क्षेत्र, जैसे कि सेवा क्षेत्र, अन्य की तुलना में ज्यादा योगदान दे।
आधुनिकीकरण
- आजादी के बाद, लोगों ने एक नई और आधुनिक जीवनशैली अपनानी शुरू कर दी।
- वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, उद्योग मालिकों ने अपनी फैक्टरियों में नई तकनीकें शामिल कीं। उदाहरण के लिए, कई किसानों ने मैन्युअल काम की बजाय हाई-टेक मशीनों का इस्तेमाल करना शुरू किया, जिससे काम तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से होने लगा।
- आधुनिकीकरण बहुत तेजी से बढ़ा, और समाज के नजरिए में भी बदलाव आया।
- एक बड़ा बदलाव यह था कि पुरुषों और महिलाओं के बीच समान अधिकारों को बढ़ावा दिया गया।
- महिलाएं भी अब आगे आने लगीं और उन्होंने कारखानों, बैंकों, और स्कूलों में काम करना शुरू किया।
आर्थिक विकास की बाधाएं
- प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर: प्रति व्यक्ति आय उस धनराशि को बताती है जो एक व्यक्ति औसतन कमाता है। अगर किसी देश की प्रति व्यक्ति आय कम होती है, तो इसका मतलब है कि वहां के लोगों की आमदनी कम है।
- राष्ट्रीय आय का निम्न स्तर: किसी देश की आर्थिक स्थिति को उसकी कुल आय और प्रति व्यक्ति आय से आंका जा सकता है। जितनी ज्यादा राष्ट्रीय आय होगी, देश की आर्थिक वृद्धि उतनी ही अच्छी मानी जाएगी।
- व्यापक गरीबी: गरीबी और भूख ऐसी समस्याएं हैं जो बहुत बड़े पैमाने पर फैली हुई हैं। लेकिन वास्तव में, इनका समाधान किया जा सकता है। दुनिया में इतना भोजन पैदा होता है कि सभी की जरूरतें पूरी हो सकती हैं, जिससे भूख और गरीबी को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- बेरोजगारी का उच्च स्तर: जब किसी देश में बेरोजगारी अधिक होती है, तो इसका मतलब है कि वहां के लोगों के लिए पर्याप्त नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं।
- मुख्यतः कृषि-निर्भर अर्थव्यवस्था: जब कृषि में आधुनिकता आती है, तो खेती के लिए भूमि और लोगों पर निर्भरता कम हो जाती है, जिससे कृषि पर निर्भरता घटती है।
- भारत में जनसंख्या विस्फोट: जनसंख्या विस्फोट का मतलब है कि लोगों की संख्या अचानक बहुत तेजी से बढ़ जाती है, जिससे देश की संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
- बचत की कम दर: अगर लोग अपनी आय का कम हिस्सा बचाते हैं, तो इसका मतलब है कि वे ज्यादा खर्च कर रहे हैं और निवेश के लिए कम पैसा बचा रहे हैं। कम बचत से थोड़े समय के लिए जीवन स्तर में सुधार हो सकता है, लेकिन लंबे समय में इससे आर्थिक विकास में रुकावट आ सकती है।
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