आरण्यक, वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग हैं, जो वेदों, ब्राह्मणों और उपनिषदों के बीच की कड़ी का काम करते हैं। इनकी रचना जंगलों (आरण्य) में ऋषि-मुनियों द्वारा की गई थी, इसलिए इन्हें “आरण्यक” कहा जाता है।
आरण्यकों में मुख्य रूप से यज्ञों के प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक अर्थों पर प्रकाश डाला गया है। यज्ञों के कर्मकांडों के पीछे छिपे रहस्यों को उजागर करते हुए, वे आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के स्वरूप पर गहन विचार करते हैं।
आध्यात्मिक ज्ञान: आरण्यक वेदों के कर्मकांडों से परे जाकर आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं।
उपनिषदों की नींव: आरण्यक उपनिषदों की नींव हैं, जो आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के रहस्यों को उजागर करते हैं।
दार्शनिक विचार: आरण्यकों में दर्शन, तत्वज्ञान और आचार-विचार से संबंधित महत्वपूर्ण विचारों का समावेश है।
भाषा और साहित्य: आरण्यक वैदिक संस्कृत भाषा के उत्कृष्ट नमूने हैं और इनमें साहित्यिक कला का भी सुंदर प्रदर्शन देखने को मिलता है।
ऋग्वेद: ऐतरेय आरण्यक, कौषीतकि आरण्यक, शांखायन आरण्यक
यजुर्वेद: शुक्ल वृहदारण्यक आरण्यक, कृष्ण तैत्तिरीय आरण्यक, मैत्रायणी आरण्यक
सामवेद: गोपथ ब्राह्मण (आरण्यक)
अथर्ववेद: वौषट्थ आरण्यक
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