सिंधु-गंगा का मैदान भारत का अत्यंत उपजाऊ और घनी आबादी वाला क्षेत्र है। हालांकि, यहाँ की बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और कृषि में अत्यधिक जल के उपयोग के कारण जल संकट गंभीर समस्या बन गया है। जल संकट और इसके समाधान के लिए जल प्रबंधन की जरूरत पर ध्यान दिया जा रहा है।
आइए इस पर विस्तार से विचार करें:
1. जल संकट के कारण
- अत्यधिक जल दोहन: सिंधु-गंगा का मैदान मुख्यतः कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहां बड़े पैमाने पर धान और गेहूं जैसी फसलों की खेती होती है, जिनमें अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है। इससे भूजल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है।
- प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग, और घरेलू कचरे के जल स्रोतों में मिलने से जल प्रदूषण बढ़ रहा है।
- जलवायु परिवर्तन: बारिश के पैटर्न में बदलाव, सूखा, और बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि से जल संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- अपर्याप्त जल संचयन: क्षेत्र में जल संचयन के प्राचीन तरीकों का अभाव है, जिससे बारिश का पानी संरक्षित नहीं हो पाता और बड़ी मात्रा में बहकर चला जाता है।
2. जल संकट के परिणाम
- कृषि पर असर: जल की कमी के कारण सिंचाई में समस्या आती है, जिससे फसल उत्पादन में कमी होती है।
- स्वास्थ्य समस्याएं: प्रदूषित जल के सेवन से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ जैसे कि पेट के रोग, जलजनित बीमारियाँ और त्वचा रोग बढ़ते हैं।
- आर्थिक विकास में बाधा: पानी की कमी से उद्योग प्रभावित होते हैं, जिससे क्षेत्र के आर्थिक विकास में रुकावट आती है।
3. जल प्रबंधन के उपाय
- वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन के माध्यम से भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता मिल सकती है। इसके लिए तालाबों, कुओं, और चेक डैम्स का निर्माण किया जा सकता है।
- ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली: ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसे आधुनिक सिंचाई प्रणालियों का उपयोग करने से जल की खपत कम होती है और फसलों को पर्याप्त पानी मिलता है।
- पुनर्चक्रण और पुन:उपयोग: औद्योगिक क्षेत्रों में जल के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग किया जा सके।
- समुदाय आधारित प्रबंधन: जल प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदायों को जागरूक और सक्षम बनाना आवश्यक है, जिससे वे जल संरक्षण की तकनीकों को अपनाने में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
- सरकार द्वारा योजना और नीतियाँ: सरकार को जल प्रबंधन के लिए कड़े कानून और योजनाओं को लागू करना चाहिए, साथ ही जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
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