भारतीय मरुस्थल, विशेष रूप से थार और कच्छ के मरुस्थल, की वर्षा के पैटर्न और तापमान में भिन्नताएँ निम्नलिखित हैं:
1. वर्षा के पैटर्न
वर्षा की मात्रा
- थार मरुस्थल:
- वार्षिक वर्षा: लगभग 100-500 मिमी।
- वर्षा की सबसे अधिक मात्रा मानसून के मौसम (जुलाई से सितंबर) में होती है, लेकिन यह असमान होती है।
- कच्छ का मरुस्थल:
- वार्षिक वर्षा: लगभग 300-400 मिमी।
- यहाँ भी वर्षा का मुख्य स्रोत मानसून है, लेकिन वर्षा की मात्रा और वितरण में भिन्नताएँ होती हैं।
वर्षा का वितरण
- स्थानिक भिन्नता: मरुस्थल के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा में अंतर होता है। कुछ स्थानों पर वर्षा अधिक होती है, जबकि अन्य स्थानों पर यह बहुत कम हो सकती है।
- वर्षा की असमानता: वर्षा की अवधि के दौरान वर्षा का वितरण असमान होता है, जिससे कुछ क्षेत्र सूखे रहते हैं और कुछ क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
मानसून का प्रभाव
- गर्मी का अंत: मानसून की वर्षा गर्मियों की गर्मी को समाप्त करती है और तापमान को थोड़ी राहत देती है।
- जल भंडारण: वर्षा के बाद, जल संचय के लिए तालाबों और कुओं का निर्माण होता है, जो स्थानीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
2. तापमान में भिन्नताएँ
दिवसीय तापमान में भिन्नता
- दिन और रात का तापमान:
- दिन में तापमान बहुत उच्च हो जाता है, 40-50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है।
- रात में तापमान में काफी गिरावट आती है, जो कभी-कभी 0 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
सालाना तापमान में भिन्नता
- गर्मी का मौसम (मार्च से जून):
- यहाँ का तापमान सबसे अधिक होता है, और गर्मियों में यह 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है।
- सर्दी का मौसम (नवंबर से फरवरी):
- सर्दियों में तापमान 0 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। यह ठंड का मौसम होता है, जिसमें तापमान में उल्लेखनीय गिरावट देखी जाती है।
मानसून के प्रभाव
- मानसून के दौरान तापमान में कुछ कमी आती है, जिससे मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता है। हालाँकि, मानसून की वर्षा असमान होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश और कुछ में कम बारिश होती है।
3. पारिस्थितिकी और मानवीय प्रभाव
- पारिस्थितिकी पर प्रभाव: वर्षा और तापमान की भिन्नताएँ मरुस्थल की पारिस्थितिकी को प्रभावित करती हैं, जिससे विभिन्न प्रकार के पौधों और जीवों का विकास होता है।
- कृषि पर प्रभाव: वर्षा के पैटर्न और तापमान की भिन्नताएँ स्थानीय कृषि पर गहरा प्रभाव डालती हैं। विशेष प्रकार की फसलें, जैसे कि बाजरा और ज्वार, यहाँ उगाई जाती हैं, जो सूखे सहिष्णु होती हैं।
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