पश्चिमी घाट, जिसे “सह्याद्री” भी कहा जाता है, प्रायद्वीपीय भारत में स्थित एक महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखला है। इसकी भौगोलिक स्थिति और विशेषताएँ वर्षा वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यहाँ हम पश्चिमी घाट के कारण होने वाली वर्षा में भिन्नताओं का वर्णन करेंगे:
1. उच्चता और जलवायु
- ऊँचाई: पश्चिमी घाट की औसत ऊँचाई 1,200 से 1,500 मीटर है, जिससे यह क्षेत्र शीतल और आद्र होता है। ऊँचाई के कारण यहाँ अधिक वर्षा होती है।
- जलवायु प्रभाव: पहाड़ों की ऊँचाई और उनके आकार के कारण, ये मॉनसून हवाओं को रोकते हैं, जिससे वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है।
2. वर्षा की दिशा
- साउथ-वेस्ट मॉनसून: दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएँ जब पश्चिमी घाट से टकराती हैं, तो हवा की ऊँचाई पर उठने के कारण ठंडी होती हैं, जिससे वर्षा होती है। यह प्रक्रिया “ओरोग्राफिक वर्षा” कहलाती है।
- वर्षा का वितरण: पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलान (जैसे कि कोकण और कर्नाटक) में वर्षा की मात्रा अधिक होती है, जबकि पूर्वी ढलान (जैसे कि डेक्कन पठार) में वर्षा कम होती है।
3. विभिन्न जलवायु क्षेत्र
- उत्तरी पश्चिमी घाट: इस क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है, जहाँ कोकण तट स्थित है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 2,500 मिमी से अधिक होती है।
- मध्य पश्चिमी घाट: इस क्षेत्र में भी वर्षा अच्छी होती है, लेकिन इसकी मात्रा उत्तरी क्षेत्र से थोड़ी कम होती है (1,500 से 2,500 मिमी)।
- दक्षिणी पश्चिमी घाट: यहाँ भी वर्षा की मात्रा 1,000 से 2,500 मिमी के बीच होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह और भी कम हो सकती है।
4. वर्षा की मौसमी भिन्नता
- गर्मी की वर्षा: पश्चिमी घाट के क्षेत्र में गर्मियों के दौरान, मानसून के आगमन पर वर्षा होती है। इस समय वर्षा की तीव्रता अधिक होती है।
- सर्दी की वर्षा: सर्दियों में, वर्षा कम होती है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण हल्की वर्षा हो सकती है।
5. पारिस्थितिकी और वनस्पति
- घने जंगल: पश्चिमी घाट की भौगोलिक स्थिति और वर्षा की अधिकता ने इसे एक घने वन क्षेत्र बना दिया है, जो जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
- पारिस्थितिकीय संतुलन: यहाँ की वनस्पति वर्षा के पैटर्न के अनुसार अनुकूलित है, जिससे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पनपते हैं।
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