भारत में वर्षा की परिवर्तनशीलता मानसून आधारित जलवायु के कारण प्रमुख मुद्दा है। वर्षा की परिवर्तनशीलता का अर्थ है कि विभिन्न वर्षों में और विभिन्न स्थानों पर वर्षा में असमानता या उतार-चढ़ाव होता है। इस परिवर्तनशीलता का प्रभाव कृषि, जल संसाधन, आर्थिक स्थिति, और समाज के अन्य पहलुओं पर व्यापक रूप से पड़ता है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग वर्षों में, अलग-अलग मात्रा में वर्षा होती है, जो मानसूनी हवाओं की तीव्रता, उनकी दिशा और स्थानीय भौगोलिक कारकों पर निर्भर करती है।
वर्षा की परिवर्तनशीलता के कारण
- दक्षिण-पश्चिम मानसून की अनियमितता:
- दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएँ भारत में वर्षा का मुख्य स्रोत हैं। यदि ये हवाएँ समय पर आती हैं और पर्याप्त नमी लेकर आती हैं, तो अच्छी वर्षा होती है। लेकिन किसी भी कारण से मानसून की गति और दिशा बदलने से वर्षा में भारी परिवर्तन आ सकता है।
- मानसून की शुरुआत में देरी या समय से पहले वापसी भी वर्षा की मात्रा को प्रभावित करती है।
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन ने वर्षा में असंतुलन उत्पन्न किया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कहीं अधिक वर्षा हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है। इससे वर्षा के पैटर्न में भारी बदलाव आ गया है, और अनियमित मौसम घटनाएँ जैसे बाढ़, सूखा और तूफान भी बढ़ गए हैं।
- स्थानीय भौगोलिक कारक:
- पर्वतीय क्षेत्र, समुद्र से निकटता, और वनों की उपस्थिति वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं। हिमालय और पश्चिमी घाट जैसे पर्वत मानसूनी हवाओं को रोककर अधिक वर्षा कराते हैं, जबकि मरुस्थलीय क्षेत्रों में पर्वतों की कमी के कारण कम वर्षा होती है।
- एल-नीनो और ला-नीना:
- प्रशांत महासागर में होने वाली एल-नीनो और ला-नीना घटनाएँ भारतीय मानसून को प्रभावित करती हैं। एल-नीनो के दौरान मानसून कमजोर पड़ जाता है, जिससे वर्षा में कमी आती है और सूखे की स्थिति बनती है। जबकि ला-नीना के दौरान मानसून मजबूत होता है और अधिक वर्षा होती है।
- सामुद्रिक स्थितियाँ:
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बनने वाले चक्रवात भी वर्षा की मात्रा और वितरण को प्रभावित करते हैं। चक्रवात के कारण होने वाली भारी वर्षा अचानक बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकती है।
वर्षा की परिवर्तनशीलता के प्रकार
- स्थानिक परिवर्तनशीलता (Spatial Variability):
- भारत में विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, मेघालय का मासिनराम और चेरापूंजी अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्र हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 10,000 मिमी तक हो सकती है, जबकि राजस्थान के थार मरुस्थल में यह 100 मिमी से भी कम होती है।
- वार्षिक परिवर्तनशीलता (Annual Variability):
- प्रत्येक वर्ष वर्षा की मात्रा में भी उतार-चढ़ाव होता है। किसी वर्ष में अच्छी वर्षा हो सकती है, तो अगले वर्ष सूखा पड़ सकता है। इससे कृषि और जल संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मौसमी परिवर्तनशीलता (Seasonal Variability):
- भारत में अधिकांश वर्षा मानसून के चार महीनों (जून-सितंबर) में होती है। इसके बाद शरद ऋतु और शीतकालीन मानसून में कम मात्रा में वर्षा होती है। इस मौसमी असमानता के कारण भी जल संकट और फसल उगाने में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
वर्षा की परिवर्तनशीलता के प्रभाव
- कृषि पर प्रभाव:
- वर्षा की अनियमितता के कारण कृषि क्षेत्र पर भारी प्रभाव पड़ता है। कम वर्षा वाले साल में सूखा पड़ता है, जिससे फसल उत्पादन कम हो जाता है। अत्यधिक वर्षा होने पर बाढ़ के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।
- किसानों को अनिश्चित वर्षा के कारण फसल योजना बनाने में कठिनाई होती है, जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।
- जल संसाधनों पर प्रभाव:
- वर्षा की परिवर्तनशीलता का प्रभाव जल स्रोतों पर पड़ता है। कम वर्षा के वर्षों में नदियों, तालाबों और भूजल स्तर में कमी होती है, जिससे जल संकट उत्पन्न होता है।
- अधिक वर्षा के वर्षों में जल संसाधनों का भंडारण नहीं हो पाता है, जिससे अतिरिक्त पानी बहकर बाढ़ का रूप ले लेता है।
- आर्थिक स्थिति पर प्रभाव:
- वर्षा की अनियमितता से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है, और वर्षा की कमी या बाढ़ से फसल उत्पादन में गिरावट आती है, जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है।
- सूखे या बाढ़ के दौरान सरकार को भी राहत और पुनर्वास कार्यों पर अधिक खर्च करना पड़ता है।
- वन और जैव विविधता पर प्रभाव:
- वर्षा की कमी से वनस्पतियाँ सूखने लगती हैं, जिससे जंगलों में आग का खतरा बढ़ जाता है। अत्यधिक वर्षा होने पर वनस्पतियाँ हरी-भरी हो जाती हैं, लेकिन बाढ़ जैसी स्थिति से वन्यजीवों को नुकसान हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के साथ वर्षा की परिवर्तनशीलता ने कई प्रजातियों के अस्तित्व को भी खतरे में डाल दिया है।
- मानव जीवन पर प्रभाव:
- वर्षा की कमी से पानी की कमी और सूखे के कारण लोगों को पीने के पानी और सिंचाई के लिए जल की कमी का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बन सकती है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है।
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