उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone) एक तीव्र और शक्तिशाली तूफान होता है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। ये चक्रवात निम्न वायुदाब, गर्म महासागरीय सतहों, और आर्द्रता के संयोग से बनते हैं। यह एक विशाल चक्रवाती प्रणाली होती है जिसमें हवा का प्रवाह केंद्र की ओर तेजी से घूमता है और इसके परिणामस्वरूप भारी बारिश और तीव्र हवाएँ होती हैं।
भारत और दक्षिण एशिया में, उष्णकटिबंधीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उत्पन्न होकर तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही मचाते हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात कैसे बनता है?
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण निम्नलिखित प्रमुख कारकों के आधार पर होता है:
- गर्म महासागरीय सतह: चक्रवातों के बनने के लिए समुद्र का सतही तापमान 26.5°C या उससे अधिक होना आवश्यक है। यह गर्मी समुद्र से वाष्पन के माध्यम से वायुमंडल में प्रवेश करती है।
- निम्न वायुदाब: जब समुद्र की सतह गर्म होती है, तो इस क्षेत्र में वायुदाब कम हो जाता है। निम्न वायुदाब के कारण उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से हवा तेजी से इस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगती है, जिससे चक्रवातीय गति उत्पन्न होती है।
- कोरिओलिस बल: पृथ्वी के घूर्णन के कारण कोरिओलिस बल का प्रभाव होता है जो हवा को घूमने के लिए प्रेरित करता है। यह प्रभाव चक्रवात के निर्माण और उसकी दिशा निर्धारित करने में सहायक होता है।
- नमी और आर्द्रता: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च नमी के कारण वायुमंडल में ऊर्जा संचय होता है, जिससे चक्रवात का आकार और ताकत बढ़ जाती है।
- समर्थनकारी वायु प्रवाह: ऊपरी वायुमंडल में समर्थनकारी हवा का प्रवाह चक्रवात के विकास में मदद करता है। इससे हवा का निकलना आसान होता है और सिस्टम मजबूत हो जाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात के चरण
चक्रवात का विकास और तीव्रता कई चरणों में होती है:
- प्रारंभिक चरण: महासागर के गर्म जल से वाष्पन होता है, और निम्न वायुदाब के क्षेत्र में हवा का संग्रहण होने लगता है।
- संघनन चरण: जैसे-जैसे वाष्पित जल संघनित होता है, बादल और बारिश की प्रक्रिया शुरू होती है और ऊर्जा का निर्माण होता है, जिससे तूफान का आकार बढ़ता है।
- परिपक्व चरण: इस चरण में चक्रवात अपनी उच्चतम तीव्रता पर पहुँचता है। केंद्र में निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता है जिसे चक्रवात की ‘आँख’ कहा जाता है, जहाँ मौसम शांत होता है, जबकि इसके चारों ओर हवा की गति और वर्षा चरम पर होती है।
- क्षीणन चरण: भूमि पर पहुँचने के बाद चक्रवात कमजोर होने लगता है क्योंकि इसे ऊर्जा की आपूर्ति समुद्र से प्राप्त होती है। यह धीमा हो जाता है और समाप्त हो जाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम
विभिन्न देशों द्वारा चक्रवातों के नामकरण के लिए एक सूची बनाई जाती है। भारत के साथ-साथ बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, ओमान, पाकिस्तान आदि देशों द्वारा एक समिति का गठन किया गया है, जो इन चक्रवातों का नामकरण करती है। उदाहरण के लिए, कुछ हाल के चक्रवातों के नाम हैं – फानी, अम्फान, निसर्ग, और यास।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात का प्रभाव
उष्णकटिबंधीय चक्रवात के प्रभाव व्यापक और गंभीर होते हैं:
- तेज हवाएँ: चक्रवात के कारण तेज हवाएँ चलती हैं, जो इमारतों, पेड़ों और संचार के साधनों को नष्ट कर देती हैं।
- भारी वर्षा: चक्रवातों के दौरान अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे नदियों और झीलों में बाढ़ आ जाती है और निचले क्षेत्रों में पानी भर जाता है।
- तटीय कटाव: तेज लहरें और समुद्री ज्वार तटीय क्षेत्रों में कटाव और क्षरण का कारण बनती हैं।
- समुद्री तूफान: समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होती है, जिससे समुद्री जल का प्रवाह भूमि की ओर हो जाता है और इससे व्यापक तबाही होती है।
चक्रवातों से बचाव
भारत में तटीय क्षेत्रों में चक्रवातों से बचाव के लिए कई उपाय किए जाते हैं:
- चेतावनी प्रणाली: भारत में IMD (India Meteorological Department) द्वारा चक्रवातों के बारे में पूर्वानुमान और चेतावनी जारी की जाती है।
- बचाव और राहत अभियान: सरकार और आपदा प्रबंधन संस्थान राहत एवं बचाव कार्यों का संचालन करते हैं, ताकि जान-माल की हानि को कम किया जा सके।
- सुरक्षा उपाय: तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जाता है और पक्के मकानों में रहने की सलाह दी जाती है।
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