प्रायद्वीपीय भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु विशिष्ट विशेषताओं और मौसमी पैटर्न से भरपूर है। यह जलवायु क्षेत्र विभिन्न जलवायु कारकों, जैसे तापमान, वर्षा, और भौगोलिक स्थिति से प्रभावित होता है।
आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें:
1. जलवायु की विशेषताएँ
तापमान
- उष्णकटिबंधीय जलवायु: प्रायद्वीपीय भारत की जलवायु मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय होती है, जिसका अर्थ है कि यहाँ वर्ष के अधिकांश समय उच्च तापमान रहता है।
- मौसमी भिन्नताएँ: गर्मियों में तापमान 30°C से 45°C तक पहुँच सकता है, जबकि सर्दियों में यह 10°C से 25°C के बीच होता है।
वर्षा
- मानसून प्रणाली: प्रायद्वीप भारत में वर्षा का मुख्य स्रोत मानसून है, जो जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है।
- वर्षा की मात्रा: यहाँ की औसत वार्षिक वर्षा 750 मिमी से लेकर 3000 मिमी तक होती है, जो क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती है। पश्चिमी घाट में वर्षा अधिक होती है, जबकि उत्तरी भागों में कम होती है।
2. जलवायु क्षेत्र
प्रायद्वीपीय भारत को विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है:
- उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु: यह जलवायु क्षेत्र मुख्यतः पश्चिमी घाट और पूर्वी तट के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। यहाँ की वर्षा मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है।
- उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु: यह क्षेत्र प्रायद्वीप के मध्य और पूर्वी भागों में पाया जाता है, जहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा कम होती है।
3. जलवायु का कृषि पर प्रभाव
- फसल चक्र: उष्णकटिबंधीय जलवायु के कारण, यहाँ की भूमि विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त होती है, जैसे चावल, गन्ना, मूंगफली, और तिलहन।
- विभिन्न कृषि पद्धतियाँ: वर्षा आधारित खेती, जैसे धान की खेती, यहाँ की जलवायु के अनुकूल होती है, जबकि सूखा सहिष्णु फसलें भी उगाई जाती हैं।
4. पर्यावरणीय प्रभाव
- वनस्पति और जीव-जंतु: उष्णकटिबंधीय जलवायु की उपयुक्तता के कारण, यहाँ की वनस्पति घने वन और घास के मैदानों में फैली हुई है। यह क्षेत्र विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं का भी घर है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र में अधिक तापमान और अनियमित वर्षा जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, जिससे कृषि और पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
5. संरक्षण और स्थिरता
- पर्यावरण संरक्षण: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उचित संरक्षण उपायों की आवश्यकता है।
- स्थायी कृषि प्रथाएँ: कृषि में स्थिरता लाने के लिए जैविक खेती, जल संरक्षण और विविध फसल प्रणाली को अपनाना महत्वपूर्ण है।
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