भारत के महान मैदान (Indo-Gangetic Plains) की स्थलाकृतिक विशेषताएँ इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक बनाती हैं। इन मैदानों का निर्माण मुख्य रूप से हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से हुआ है।
यहाँ की प्रमुख स्थलाकृतिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. तलहटी (Foothills)
- हिमालय की तलहटी के साथ सटे इस क्षेत्र को भाबर और तराई क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
- भाबर क्षेत्र: यह क्षेत्र हिमालय की तलहटी के साथ मिलता है और यहाँ मिट्टी में कंकड़ और बोल्डर पाए जाते हैं। भाबर क्षेत्र में नदियाँ भूमि के नीचे बहती हैं, जिससे यह सूखा बना रहता है।
- तराई क्षेत्र: यह भाबर के ठीक नीचे स्थित है। यहाँ दलदली भूमि पाई जाती है और यह जल-भराव वाला क्षेत्र है, जो जल संसाधनों से समृद्ध है। यह कृषि और वन्यजीवन के लिए महत्वपूर्ण है।
2. दोआब क्षेत्र (Doab Region)
- दोआब का अर्थ होता है दो नदियों के बीच का क्षेत्र। उदाहरण के लिए, गंगा-यमुना का दोआब सबसे प्रमुख है।
- दोआब क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ होता है और यहाँ की मिट्टी जल संसाधनों से भरपूर होती है। इस क्षेत्र में गेहूँ, धान और गन्ना जैसी फसलों का उत्पादन होता है।
3. खादर और बांगर क्षेत्र (Khadar and Bhangar Regions)
- खादर: यह नदियों के बाढ़ क्षेत्र में हर साल जमा होने वाली नई जलोढ़ मिट्टी से बना है, जो अत्यधिक उपजाऊ है। खादर क्षेत्र नदियों के किनारे फैले हुए होते हैं और इन पर रबी और खरीफ फसलें उगाई जाती हैं।
- बांगर: यह ऊँचे स्तर पर स्थित पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बना क्षेत्र है। बांगर क्षेत्र की मिट्टी थोड़ी कठोर होती है और यहाँ कृषि के लिए स्थायित्व अधिक होता है।
4. बाढ़ के मैदान (Flood Plains)
- गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक, और कोसी जैसी नदियों द्वारा बाढ़ के दौरान मैदानों में जलोढ़ मिट्टी जमा होती है, जिससे यह क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ बनता है।
- बाढ़ के मैदानों में धान, गेहूँ, मक्का और दलहन जैसी फसलों की खेती की जाती है। यहाँ बार-बार बाढ़ आने से मिट्टी का पोषण स्तर बना रहता है।
5. डेल्टा क्षेत्र (Delta Region)
- गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ बंगाल की खाड़ी में मिलकर एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं, जिसे सुंदरबन डेल्टा कहते हैं।
- सुंदरबन डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा नदी डेल्टा है और यह मैंग्रोव वनस्पति, रॉयल बंगाल टाइगर, और विभिन्न जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र मछली पालन, कृषि, और पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
6. अवसादी निक्षेपण (Sediment Deposition)
- हिमालय से आने वाली नदियाँ अपने साथ भारी मात्रा में अवसाद लाती हैं, जो मैदानों में जमा होते हैं। यह निरंतर अवसाद जमा होने की प्रक्रिया मैदानों की मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखती है।
- अवसादी निक्षेपण से भूमि का गठन होता है और समय के साथ यहाँ उपजाऊ जलोढ़ मैदान विकसित होते हैं।
7. आर्द्रभूमि और झीलें (Wetlands and Lakes)
- मैदानों में नदियों और बारिश के जल से बनी आर्द्रभूमियाँ और झीलें पाई जाती हैं, जो मछली पालन, जैव विविधता संरक्षण, और जल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- ये आर्द्रभूमियाँ विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार के मैदानी क्षेत्रों में हैं, जो क्षेत्रीय पर्यावरण संतुलन और कृषि हेतु जल संसाधनों का संधारण करती हैं।
8. कटाव और तटबंध (River Banks and Erosion)
- नदियाँ अपने बहाव से तटों पर कटाव करती हैं, जिससे भूमि का क्षरण होता है। कई क्षेत्रों में बाढ़ से बचाव के लिए तटबंध बनाए गए हैं।
- नदी कटाव और तटबंध का निर्माण कृषि भूमि और बस्तियों की सुरक्षा हेतु आवश्यक है।
9. भौगोलिक गठन (Geographical Formation)
- इन मैदानों का निर्माण मुख्यतः हिमालय की नदियों द्वारा किए गए जलोढ़ निक्षेपण से हुआ है। यह क्षेत्र विशाल जलोढ़ मैदानों के रूप में विस्तृत है, जो लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं।
- यहाँ की समतल भू-आकृति के कारण यह क्षेत्र अत्यधिक कृषि योग्य और जल संसाधनों से भरपूर है।
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