सामाजिक वानिकी (Social Forestry) सामाजिक वानिकी एक ऐसी वानिकी व्यवस्था है, जिसमें समुदायों को वन संसाधनों का उपयोग करने और उनके संरक्षण में सक्रिय भागीदारी दी जाती है। इसका उद्देश्य न केवल वन्य संसाधनों का संरक्षण करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि इन संसाधनों से स्थानीय समुदायों को लाभ प्राप्त हो और उनके जीवन स्तर में सुधार हो। यह एक प्रकार की वानिकी है जो समाज के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए वन संसाधनों का सतत उपयोग करती है।
सामाजिक वानिकी के उद्देश्य:
- स्थानीय समुदायों का उत्थान:
- सामाजिक वानिकी का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण समुदायों, विशेष रूप से उन लोगों को लाभ पहुँचाना है जो वन संसाधनों पर निर्भर होते हैं। इसके तहत वनवासियों को रोजगार, आय, और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
- वनों का संरक्षण:
- यह वन संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देता है। इसमें न केवल वनों के संरक्षण के उपाय शामिल होते हैं, बल्कि जंगलों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना भी शामिल है।
- वन क्षेत्र का विस्तार:
- यह पेड़ों की संख्या और वन क्षेत्रों के विस्तार में योगदान करता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
- वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र:
- सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों में वृक्षारोपण, बांस के बाग, और अन्य हरित क्षेत्रों के निर्माण के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है, ताकि पर्यावरण को लाभ हो और लोगों को उनके इस्तेमाल से आय प्राप्त हो।
- संवर्धन और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला:
- इससे पर्यावरण को लाभ होता है, क्योंकि यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने, मिट्टी के कटाव को रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में सहायक होता है।
सामाजिक वानिकी के प्रकार:
- सामुदायिक वानिकी (Community Forestry):
- इसमें जंगलों और वनस्पति संसाधनों का सामूहिक प्रबंधन किया जाता है, और स्थानीय समुदायों को उनके संरक्षण और उपयोग में अधिकार दिया जाता है।
- बागवानी वानिकी (Agroforestry):
- यह कृषि और वानिकी का संयोजन है, जिसमें कृषक अपनी कृषि भूमि पर पेड़ लगाते हैं। यह दोनों गतिविधियाँ, यानी कृषि और वानिकी, एक साथ की जाती हैं और इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है।
- घर के बाग वानिकी (Farm Forestry):
- इसमें किसानों को अपने खेतों के आसपास पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है और साथ ही वनों के संरक्षण में भी मदद मिलती है।
- सार्वजनिक वानिकी (Public Forestry):
- इसमें सरकारी भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता है और इस पर स्थानीय समुदायों का नियंत्रण होता है, ताकि वे इसका लाभ उठा सकें।
सामाजिक वानिकी के लाभ:
कार्बन उत्सर्जन कम करता है: पेड़ वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है।
- वायु की गुणवत्ता में सुधार: पेड़ ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और वायु से प्रदूषकों को छानते हैं, जिससे श्वसन स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- जल संरक्षण: पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकने और जल को बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे कृषि उपज में सुधार करने और बाढ़ के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
- वन्य जीवन के लिए आवास प्रदान करना: पेड़ विभिन्न जानवरों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं, जिससे जैव विविधता को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
- रोजगार सृजन: सामाजिक वानिकी परियोजनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए रोजगार सृजन कर सकती हैं, जिससे गरीबी कम करने में मदद मिल सकती है।
- आय का स्रोत प्रदान करता है: सामाजिक वानिकी परियोजनाएँ समुदायों को आय का स्रोत प्रदान कर सकती हैं। इसमें लकड़ी, ईंधन की लकड़ी और अन्य वन उत्पादों की बिक्री शामिल है।
- परिदृश्य में सुधार: पेड़ों का उपयोग किसी क्षेत्र के स्वरूप को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। यह लोगों के रहने, काम करने और घूमने के लिए इसे और अधिक आकर्षक बना सकता है।
भारत में सामाजिक वानिकी का कार्यान्वयन
1980 के दशक के मध्य में, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता के साथ भारत में सामाजिक वानिकी की शुरुआत की गई थी। यह वनों के संरक्षण और पुनर्वनीकरण में सहायता करता है। 1988 का वन नीति अधिनियम सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था। इसने इसे लोगों द्वारा संचालित एक जमीनी स्तर के आंदोलन में बदल दिया।
- सरकार ने राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) और संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) कार्यक्रम सहित कई सामाजिक वानिकी योजनाएं लागू की हैं।
- एनएपी का उद्देश्य भारत में वन भूमि और बंजर भूमि पर वृक्षारोपण करके वृक्ष आवरण को बढ़ाना है।
- संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम (जेएफएम) वन प्रबंधन के लिए एक समुदाय-आधारित दृष्टिकोण है, जिसमें वन परियोजनाओं की योजना बनाने, कार्यान्वयन और निगरानी में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाता है।
- भारत में सामाजिक वानिकी के कई सकारात्मक प्रभाव हुए हैं, जिनमें वृक्षावरण में वृद्धि, ग्रामीण समुदायों की आजीविका में सुधार, तथा पर्यावरण क्षरण में कमी शामिल है।
भारत में सामाजिक वानिकी की कमियां
भारत में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उसे सीमित सफलता मिली जैसे कि कृषि भूमि को वानिकी के लिए उपयोग में लाने के लिए दिए गए प्रोत्साहनों से खाद्य सुरक्षा और कृषि को नुकसान पहुंचा, जिसके परिणामस्वरूप सफलता दर कम हो गई। वहीं समझ और ज्ञान की कमी के कारण भी सामाजिक वानिकी का अभ्यास करने वाले कृषकों द्वारा विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन किया गया, जिससे समस्या हुई। अन्य कारण हैं-
- भारतीय किसान आमतौर पर अपनी भूमि के छोटे आकार के कारण सामाजिक वानिकी को पसंद नहीं करते हैं।
- सामाजिक वानिकी से होने वाली उपज कृषि बीमा योजनाओं के अंतर्गत कवर नहीं होती है, जिससे कृषि व्यवसायियों को नुकसान होने का खतरा बना रहता है। इसके अतिरिक्त, उत्पाद के विपणन के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है, जिससे इसे अपनाने में और भी कमी आएगी।
- यद्यपि भारत सरकार सामाजिक वानिकी को बढ़ावा दे रही है, लेकिन इस पहल में निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित है।
सामाजिक वानिकी के चुनौतियाँ:
1. संसाधनों की कमी:
- सामाजिक वानिकी के लिए आवश्यक संसाधनों (जैसे वित्तीय सहायता, विशेषज्ञता, आदि) की कमी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
2. समुदाय की भागीदारी की कमी:
- यदि स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी नहीं हो, तो इस कार्यक्रम को सफल बनाना मुश्किल हो सकता है।
3. वृक्षारोपण की कमी और रखरखाव:
- वृक्षारोपण की शुरुआत तो होती है, लेकिन इसके बाद पेड़ों की देखभाल और संरक्षण की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
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