भारतीय प्लेट का गोंडवाना महाद्वीप से अलगाव और उसका उत्तरी प्रवास भूगर्भीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रायद्वीपीय भारत के गठन की कहानी बताता है। इसे समझने के लिए, गोंडवाना महाद्वीप, टेक्टोनिक प्लेटों की गति, और भारतीय उपमहाद्वीप के निर्माण के भूगर्भीय पहलुओं का अध्ययन करना आवश्यक है।
1. गोंडवाना महाद्वीप का परिचय
- गोंडवाना एक प्राचीन महाद्वीप था, जो वर्तमान दक्षिणी गोलार्ध के अधिकांश भूभागों का एकीकृत हिस्सा था। इसमें आधुनिक अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, और भारतीय उपमहाद्वीप शामिल थे।
- लगभग 200-250 मिलियन वर्ष पहले (मेज़ोज़ोइक युग में) इस महाद्वीप में टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण टूट-फूट शुरू हुई, जिससे यह विभिन्न प्लेटों में विभाजित हो गया।
2. भारतीय प्लेट का गोंडवाना से अलगाव
- लगभग 130-120 मिलियन वर्ष पूर्व, भारतीय प्लेट गोंडवाना से अलग हुई। यह प्लेट एक स्वतंत्र भूभाग के रूप में दक्षिणी गोलार्ध में स्थित थी।
- अलग होने के बाद, भारतीय प्लेट धीरे-धीरे उत्तर की ओर गति करने लगी, जिसकी औसत गति 15 से 20 सेंटीमीटर प्रति वर्ष मानी जाती है। इस गति का कारण टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल थी, जो पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली गतिविधियों से प्रभावित होती हैं।
3. उत्तर की ओर प्रवास और टेक्टोनिक प्रभाव
- भारतीय प्लेट ने लगभग 100 मिलियन वर्षों तक उत्तर की ओर यात्रा की और यह 50-60 मिलियन वर्ष पहले यूरेशियन प्लेट से जा टकराई।
- इस टकराव के परिणामस्वरूप, भारतीय प्लेट के उत्तरी किनारे पर एक विशाल भू-आकृति का निर्माण हुआ, जो आज हिमालय पर्वत श्रृंखला के रूप में विद्यमान है।
- हिमालय पर्वत श्रृंखला के निर्माण में यह टकराव मुख्य भूमिका निभाता है और यह भूवैज्ञानिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। हिमालय का निर्माण आज भी जारी है, क्योंकि भारतीय प्लेट की यूरेशियन प्लेट के साथ टकराव की प्रक्रिया अभी तक समाप्त नहीं हुई है।
4. प्रायद्वीपीय भारत का स्थायित्व
- भारतीय प्लेट का दक्षिणी भाग, जो वर्तमान प्रायद्वीपीय भारत के रूप में जाना जाता है, यह इस टेक्टोनिक टकराव से अपेक्षाकृत स्थिर बना रहा। इस क्षेत्र में भूवैज्ञानिक हलचल कम हुई और इसके परिणामस्वरूप यह क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से स्थिर बना रहा।
- दक्कन का पठार, जो प्रायद्वीपीय भारत का प्रमुख भाग है, बेसाल्टिक चट्टानों से बना है। इनका निर्माण ज्वालामुखी गतिविधियों के दौरान हुआ था, जो इस क्षेत्र की भूवैज्ञानिक स्थिरता और संरचना को भी दर्शाता है।
5. प्रायद्वीपीय भारत की विशेषताएँ और जैव विविधता पर प्रभाव
- भारतीय प्लेट के इस उत्तर की ओर प्रवास और टकराव ने न केवल भौगोलिक संरचना बल्कि क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी के प्रकार, और वनस्पति एवं जीव-जंतुओं की विविधता को भी प्रभावित किया।
- इस क्षेत्र में मिलने वाले खनिज, मिट्टी की संरचना और जलवायु पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे यह क्षेत्र जैविक और भौगोलिक रूप से विविध बना रहा।
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