भारत के महान मैदानों में मौसमी बदलाव का असर यहाँ की जलवायु, कृषि, जनजीवन, और पर्यावरण पर व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इस क्षेत्र में साल भर मौसम में चार प्रमुख ऋतुओं का चक्र होता है:
1. गर्मी (ग्रीष्म ऋतु)
- अवधि: मार्च से जून तक
- तापमान: इस दौरान तापमान बहुत अधिक होता है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के मैदानी क्षेत्रों में 40°C से अधिक तक पहुँच सकता है। अप्रैल से जून के बीच लू (गर्म हवा) चलने का भी खतरा रहता है, विशेषकर पश्चिमी मैदानों में।
- प्रभाव: गर्मी के कारण जल स्रोतों में कमी आ जाती है, जल स्तर घटता है और कई स्थानों पर जल संकट भी उत्पन्न हो जाता है। इस समय गर्मी सहन करने वाले फसलें उगाई जाती हैं, और किसान रबी फसलों की कटाई का कार्य पूरा कर लेते हैं।
2. बरसात (मानसून या वर्षा ऋतु)
- अवधि: जून से सितंबर तक
- वर्षा: दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएँ जून में प्रवेश करती हैं और पूरे मैदानों में बरसात करती हैं। यह मैदानों के लिए मुख्य वर्षा का समय होता है, जो यहाँ की कृषि को प्रभावित करता है।
- प्रभाव: मानसून की वर्षा खरीफ फसलों जैसे धान, मक्का, गन्ना और दलहन के लिए महत्वपूर्ण होती है। पश्चिम से पूर्व की ओर वर्षा में बढ़ोतरी होती है, जिससे पूर्वी मैदानों (जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार) में अच्छी वर्षा होती है। अत्यधिक बारिश से गंगा और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ का खतरा बढ़ता है, जो कृषि भूमि, गाँवों, और जनजीवन को प्रभावित करता है।
3. शरद ऋतु (अक्टूबर – नवंबर)
- अवधि: अक्टूबर से नवंबर तक
- मौसम विशेषताएँ: बरसात के बाद तापमान में गिरावट आती है और हवा शुष्क हो जाती है। शरद ऋतु में आकाश साफ होता है और तापमान सामान्य स्तर पर आता है।
- प्रभाव: इस मौसम में रबी फसलों जैसे गेहूँ, जौ, और सरसों की बुआई होती है। बाढ़ के बाद मृदा में जलोढ़ मिट्टी के जमाव से इसकी उर्वरता बढ़ जाती है, जो रबी फसलों के लिए अनुकूल होता है।
4. सर्दी (शीत ऋतु)
- अवधि: दिसंबर से फरवरी तक
- तापमान: ठंड के कारण तापमान में भारी गिरावट होती है। मैदानों में तापमान 5°C तक गिर सकता है, और उत्तर भारत में ठंड की स्थिति अधिक तीव्र हो जाती है।
- प्रभाव: ठंड से गेहूँ, चना, और सरसों जैसी रबी फसलों की वृद्धि अच्छी होती है। इसके साथ ही, हिमालयी नदियों में जल प्रवाह बढ़ता है क्योंकि पहाड़ों में बर्फ जमा होती रहती है।
मौसमी बदलावों का सामूहिक प्रभाव
- कृषि पर प्रभाव: मैदानों की कृषि पूरी तरह से मौसमी चक्र पर निर्भर करती है। गर्मी में रबी फसल की कटाई, बरसात में खरीफ फसलों की बुआई, और शरद-शीत ऋतु में रबी फसलों की बुआई होती है।
- जल संसाधनों पर प्रभाव: मानसून के दौरान नदियाँ भर जाती हैं, जिससे जल संसाधनों की उपलब्धता बढ़ती है। गर्मी में जलस्तर गिरता है, और मानसून पर जल संसाधनों का पुनर्भरण निर्भर करता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव: मैदानों में मौसमी बदलाव से वनस्पति और जैव विविधता में परिवर्तन होता है। मानसून के समय नदियों के तट पर मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है, जिससे जैव विविधता में वृद्धि होती है।
- जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: मानसून का अनियमित आगमन जनजीवन और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करता है। मानसून अच्छा होने पर फसल उत्पादन बढ़ता है, और लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, जबकि मानसून में कमी से संकट उत्पन्न हो सकता है।
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