सिंधु-गंगा के मैदान में वर्षा का पैटर्न मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन पर निर्भर करता है, जो इस क्षेत्र में जून से सितंबर के बीच सक्रिय रहता है। इस क्षेत्र में वर्षा का वितरण पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने के साथ बदलता है, जिससे वर्षा का पैटर्न कई कारकों पर आधारित होता है।
आइए इस क्षेत्र में वर्षा के पैटर्न का विस्तार से अध्ययन करें:
1. दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रमुख प्रभाव
- जून में दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत के पश्चिमी भागों में प्रवेश करता है और सिंधु-गंगा के मैदानों में बारिश लाता है।
- यह मानसून समुद्री हवाओं के रूप में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आता है और मैदान के पश्चिमी हिस्सों से पूर्व की ओर बढ़ता है।
- मानसून के चलते गंगा के मैदानी भाग में अच्छी वर्षा होती है, जो कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
2. पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हुए वर्षा में वृद्धि
- सिंधु-गंगा के मैदानों में वर्षा पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हुए अधिक होती जाती है।
- उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे पश्चिमी हिस्सों में वार्षिक औसत वर्षा लगभग 400-600 मिमी होती है, जबकि पूर्व की ओर बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में यह बढ़कर 1000-1500 मिमी तक हो जाती है।
- इसका कारण यह है कि बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएँ पूर्वी हिस्सों में पहुँचकर भारी वर्षा करती हैं।
3. बाढ़ और सूखे की समस्या
- पूर्वी मैदानों में भारी बारिश के कारण गंगा, कोसी, घाघरा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ मानसून के दौरान उफान पर आ जाती हैं, जिससे बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
- दूसरी ओर, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे पश्चिमी क्षेत्रों में, जहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है, वहाँ सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। विशेषकर जब मानसून कमजोर या अनियमित होता है।
4. शीतकालीन वर्षा (पश्चिमी विक्षोभ)
- सिंधु-गंगा के मैदानों में सर्दियों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बन्स) के कारण हल्की बारिश होती है, जिसे “मावठा” कहा जाता है।
- यह हल्की वर्षा मुख्यतः दिसंबर से फरवरी के बीच होती है और रबी फसलों जैसे गेहूँ, सरसों आदि के लिए लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है।
5. वर्षा का कृषि और जल संसाधनों पर प्रभाव
- वर्षा के इस पैटर्न के आधार पर गंगा के मैदानी क्षेत्र में खरीफ और रबी दोनों फसलें उगाई जाती हैं। खरीफ फसल के लिए मानसूनी वर्षा आवश्यक होती है, जबकि शीतकालीन वर्षा रबी फसलों के लिए सहायक होती है।
- सिंधु-गंगा मैदान में मानसून के दौरान नदियों और जलाशयों का जलस्तर बढ़ता है, जो सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता में सहायक होता है।
6. मानसून में अनियमितता और जल संकट
- मानसून की अनियमितता के कारण कभी-कभी इस क्षेत्र में जल संकट उत्पन्न हो जाता है। मानसून के देरी से आने या कम वर्षा होने पर सिंचाई के लिए भूमिगत जल का उपयोग बढ़ जाता है।
- खासकर पश्चिमी क्षेत्रों में, जहाँ वर्षा की मात्रा सीमित है, वहाँ मानसून पर अत्यधिक निर्भरता रहती है, जिससे सूखे की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
सारांश
सिंधु-गंगा के मैदानों में वर्षा का पैटर्न मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करता है, जहाँ पूर्वी हिस्सों में अधिक वर्षा होती है जबकि पश्चिमी हिस्सों में कम वर्षा होती है। मानसून की बारिश यहाँ के कृषि, जनजीवन और जल संसाधनों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। बाढ़ और सूखे जैसी चुनौतियों का सामना भी यहाँ किया जाता है, जो मानसून की अनियमितता के कारण होती हैं।
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