विन्ध्यन प्रणाली
1. परिचय: विन्ध्यन प्रणाली भारत के मध्य भाग में स्थित एक प्रमुख भूवैज्ञानिक संरचना है। यह प्रणाली मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में फैली हुई है। इसका निर्माण पुराकालीन युग (प्रोटेरोज़ोइक) में हुआ और इसकी चट्टानें मुख्यतः तलछटी प्रकार की हैं। विन्ध्यन पर्वतमाला भारत के उत्तरी और दक्षिणी भागों के बीच एक प्राकृतिक विभाजक के रूप में कार्य करती है।
2. विन्ध्यन प्रणाली का भूवैज्ञानिक निर्माण: विन्ध्यन प्रणाली मुख्यतः तलछटी चट्टानों से बनी है, जो लाखों वर्षों तक जमा होती रही हैं। इन चट्टानों में प्रमुख रूप से शेल, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर शामिल हैं। यह भूवैज्ञानिक संरचना लगभग 1600 मिलियन वर्ष पुरानी मानी जाती है। इसका निर्माण समुद्र, नदियों और झीलों में तलछटों के जमाव के कारण हुआ है।
3. भौगोलिक विस्तार: विन्ध्यन पर्वत श्रृंखला का विस्तार भारत के उत्तर में गंगा नदी के मैदानों से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी तक फैला हुआ है। यह श्रृंखला लगभग 1,200 किलोमीटर लंबी है और इसकी औसत ऊँचाई 300 से 600 मीटर तक है। यह श्रृंखला उत्तरी भारत को दक्षिणी भारत से विभाजित करती है और भू-आकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
4. प्रमुख चट्टानी संरचनाएँ: विन्ध्यन प्रणाली में तीन प्रमुख चट्टानी संरचनाएँ पाई जाती हैं:
- बलुआ पत्थर: यह प्रणाली में पाई जाने वाली प्रमुख चट्टान है, जो जल अपघटन और तलछटीकरण की प्रक्रियाओं से बनी है।
- चूना पत्थर: यह विन्ध्यन प्रणाली में तलछटी चट्टानों के रूप में पाया जाता है, जिसका उपयोग सीमेंट और निर्माण उद्योग में किया जाता है।
- शेल: यह एक प्रकार की पतली परत वाली चट्टान है, जो समुद्री तलछटों से बनी होती है।
5. खनिज संसाधन: विन्ध्यन प्रणाली में विभिन्न खनिज पाए जाते हैं, जिनमें चूना पत्थर, डोलोमाइट, मार्बल, और बिल्डिंग स्टोन शामिल हैं। यह क्षेत्र भारत के खनिज संसाधनों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, विशेषकर निर्माण सामग्री के मामले में।
6. विन्ध्य पर्वत और सांस्कृतिक महत्व: विन्ध्यन पर्वत भारतीय इतिहास और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह क्षेत्र प्राचीन भारतीय सभ्यताओं का केंद्र रहा है और इसके आसपास की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त रही है। विन्ध्य पर्वतों के आस-पास कई पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों का उल्लेख मिलता है, जो इस पर्वतमाला की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाते हैं।
विन्ध्यन प्रणाली: पालेजोइक समूह और मेजोजोइक युग
1. पालेजोइक समूह (कैम्ब्रियन से कार्बोनिफेरस अवधि): पालेजोइक समूह, जिसे प्राचीन जीव युग (Paleozoic Era) भी कहा जाता है, भूवैज्ञानिक समय-सीमा के महत्वपूर्ण भागों में से एक है। इस समूह में पृथ्वी के विकास के प्रारंभिक चरणों के दौरान कई भूवैज्ञानिक और जैविक परिवर्तन हुए। यह युग कैम्ब्रियन (Cambrian) से शुरू होकर कार्बोनिफेरस (Carboniferous) अवधि तक फैला है।
मुख्य विशेषताएँ:
- समय-सीमा: लगभग 541 मिलियन वर्ष पहले से 252 मिलियन वर्ष पहले तक।
- चट्टानी संरचना: इस अवधि के दौरान विभिन्न तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks) जैसे शेल, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर जमा हुए। इन चट्टानों में अक्सर समुद्री जीवाश्म (Marine Fossils) पाए जाते हैं।
- भूवैज्ञानिक गतिविधियाँ: पालेजोइक युग के दौरान प्लेट टेक्टॉनिक्स के परिणामस्वरूप महाद्वीपों का विचलन और संघटन हुआ। यह युग पृथ्वी की सतह के महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक परिवर्तनों का समय है।
- जीवों का विकास: इस अवधि में जीवन में बड़े बदलाव हुए। समुद्री जीवों का विकास हुआ, और पृथ्वी पर जलीय और स्थलीय जीवों के बीच विविधता आई। ट्रिलोबाइट्स और अन्य प्राचीन समुद्री जीव इस समय के प्रमुख जीव थे।
विन्ध्यन प्रणाली का संबंध: विन्ध्यन प्रणाली की चट्टानों का निर्माण पालेजोइक समूह की अवधि में हुआ था। ये चट्टानें मुख्य रूप से तलछटी हैं, जिनमें इस समय की भूवैज्ञानिक गतिविधियों के प्रमाण मिलते हैं। विन्ध्यन क्षेत्र में पाई जाने वाली पुरानी तलछटी संरचनाएँ और उनके जीवाश्म पालेजोइक युग के भूवैज्ञानिक इतिहास को दर्शाते हैं।
2. मेजोजोइक युग (गोंडवाना प्रणाली): मेजोजोइक युग, जिसे “मध्यजीव युग” (Middle Life Era) भी कहा जाता है, भूवैज्ञानिक समय में लगभग 252 मिलियन वर्ष पहले से 66 मिलियन वर्ष पहले तक की अवधि को कवर करता है। यह युग डायनासोर के युग के रूप में प्रसिद्ध है और पृथ्वी पर बड़े पैमाने पर जैव विविधता में वृद्धि का समय है। इस युग के अंत में गोंडवाना महाद्वीप का विभाजन शुरू हुआ, जो पृथ्वी की महाद्वीपीय संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाया।
मुख्य विशेषताएँ:
- समय-सीमा: लगभग 252 मिलियन वर्ष पहले से 66 मिलियन वर्ष पहले तक।
- प्रमुख काल: इस युग को तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया जाता है – ट्रायसिक (Triassic), जुरासिक (Jurassic), और क्रिटेशियस (Cretaceous)।
- जीवों का विकास: इस युग में डायनासोर जैसे बड़े सरीसृपों का उदय हुआ। इसके अलावा, इस समय के दौरान पक्षियों और स्तनधारियों का भी विकास शुरू हुआ। पौधों में भी प्रमुख बदलाव आए, जैसे जिम्नोस्पर्म्स (Gymnosperms) और एंगियोस्पर्म्स (Angiosperms) का उदय।
- गोंडवाना प्रणाली (Gondwana System):
- गोंडवाना एक विशाल प्राचीन महाद्वीप था, जिसमें भारत, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे। मेजोजोइक युग के दौरान गोंडवाना महाद्वीप का धीरे-धीरे टूटना शुरू हुआ।
- गोंडवाना प्रणाली में तलछटी चट्टानें पाई जाती हैं, जिनमें कोयला (Coal) प्रमुख खनिज है। भारत में गोंडवाना प्रणाली से संबंधित चट्टानें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और झारखंड में पाई जाती हैं।
- भारतीय उपमहाद्वीप में इस युग के दौरान बड़ी भूवैज्ञानिक गतिविधियाँ हुईं, जिसके परिणामस्वरूप गोंडवाना भूभाग का विभाजन और भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर प्रवास हुआ।
विन्ध्यन प्रणाली का संबंध: हालांकि विन्ध्यन प्रणाली का निर्माण मुख्यतः पालेजोइक युग के अंत में हुआ था, मेजोजोइक युग के दौरान भारत की भूवैज्ञानिक संरचना में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए। गोंडवाना महाद्वीप के विभाजन और भारतीय प्लेट की उत्तरी यात्रा ने भारत की भूगर्भीय संरचना को प्रभावित किया। विन्ध्यन क्षेत्र के आसपास की भूगर्भीय संरचना और तलछट इस समय के भूवैज्ञानिक परिवर्तनों के प्रमाण के रूप में देखे जाते हैं।
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