द्वीपसमूह क्षेत्रों पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव काफी गंभीर और विनाशकारी हो सकता है। द्वीपों की भौगोलिक स्थिति और उनकी संरचना के कारण वे विशेष रूप से भूकंप, सूनामी, चक्रवात, तटीय कटाव और जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इन आपदाओं का द्वीपसमूह के पर्यावरण, जनजीवन, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है
कुछ मुख्य आपदाओं और उनके प्रभावों का विवरण दिया गया है:
1. भूकंप और सूनामी
- प्रभाव: द्वीपसमूह के पास समुद्र के भीतर भूकंप होने पर सूनामी की घटनाएँ हो सकती हैं, जो तटीय क्षेत्रों को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। सूनामी के कारण बड़े पैमाने पर बाढ़, संपत्ति का नुकसान, और जनजीवन का खतरा बढ़ जाता है।
- उदाहरण: 2004 में आए भूकंप और सूनामी ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को गंभीर क्षति पहुँचाई थी, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए और कई गाँव बर्बाद हो गए।
2. चक्रवात और तूफान
- प्रभाव: चक्रवात और तूफान तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा, तेज़ हवाओं और बाढ़ का कारण बनते हैं। इससे द्वीपों के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र, फसलें, और बुनियादी ढाँचे को नुकसान होता है।
- उदाहरण: बंगाल की खाड़ी के पास स्थित अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह अक्सर चक्रवातों से प्रभावित होते हैं, जो द्वीपों की वनस्पतियों और जीवों को भी प्रभावित करते हैं।
3. तटीय कटाव और समुद्र स्तर में वृद्धि
- प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र स्तर में वृद्धि होती है, जिससे तटीय कटाव होता है और द्वीपों का क्षेत्रफल घटता है। यह विशेषकर छोटे द्वीपों के लिए खतरा बन जाता है, क्योंकि वे धीरे-धीरे समुद्र में समा सकते हैं।
- उदाहरण: लक्षद्वीप जैसे निम्न-ऊँचाई वाले द्वीपसमूह में समुद्र स्तर बढ़ने का खतरा अधिक है, जिससे यहाँ के निवासियों और प्राकृतिक संरचनाओं को खतरा है।
4. भूस्खलन
- प्रभाव: पर्वतीय और घने वन क्षेत्रों वाले द्वीपों में भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं, जो पर्यावरण, निवासियों और कृषि भूमि के लिए हानिकारक होती हैं।
- उदाहरण: भारी वर्षा और अपर्याप्त भूमि प्रबंधन के कारण अंडमान के पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
5. जलवायु परिवर्तन
- प्रभाव: जलवायु परिवर्तन का द्वीपसमूह पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इससे मौसम की अनिश्चितता, जलवायु में परिवर्तन, और तापमान में वृद्धि होती है। यह द्वीपों के पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री जैव विविधता, और कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है।
- उदाहरण: बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जीवों पर संकट उत्पन्न होता है और प्रवाल भित्तियाँ (कोरल रीफ) भी प्रभावित होती हैं, जिससे समुद्री जैव विविधता घटती है।
6. नमकीनीकरण और मीठे पानी का संकट
- प्रभाव: समुद्र के स्तर में वृद्धि से ताजे पानी के स्रोतों में नमक का प्रवेश होता है, जिसे नमकीनीकरण कहा जाता है। इससे पीने के पानी की कमी हो जाती है, जिससे द्वीपों पर रहने वाले लोगों के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण: लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में ताजे पानी के स्रोत सीमित हैं, जो नमकीनीकरण के कारण और भी प्रभावित हो रहे हैं।
7. पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रभाव
- प्राकृतिक आपदाओं के कारण द्वीपों की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चक्रवात और सूनामी से प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री घास के मैदान, और तटीय वनों को क्षति पहुँचती है, जो द्वीपों के पारिस्थितिकी संतुलन को बाधित करती है।
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