प्रायद्वीपीय भारत में मानसून का प्रभाव और वर्षा का वितरण इसकी जलवायु और पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव डालता है।
यहाँ मानसून प्रणाली और वर्षा वितरण के प्रमुख पहलुओं पर चर्चा की गई है:
1. मानसून प्रणाली
दक्षिण-पश्चिम मानसून
- समय: दक्षिण-पश्चिम मानसून आमतौर पर जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है।
- उत्स: यह मानसून प्रणाली भारत के दक्षिण-पश्चिम तट से शुरू होती है, और अरब सागर से नमी लेकर आती है।
- पारिस्थितिकी पर प्रभाव: यह मानसून प्रायद्वीप के अधिकांश हिस्सों में प्रमुख वर्षा का स्रोत है और कृषि गतिविधियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
उत्तर-पूर्व मानसून
- समय: उत्तर-पूर्व मानसून अक्टूबर से दिसंबर तक सक्रिय होता है।
- उत्स: यह बंगाल की खाड़ी से आती है और विशेष रूप से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा लाती है।
- विशेषताएँ: यह मानसून उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बारिश का मुख्य स्रोत होता है।
2. वर्षा वितरण
भौगोलिक प्रभाव
- पश्चिमी घाट: पश्चिमी घाट में वर्षा की मात्रा अधिक होती है, जो 3000 मिमी तक पहुँच सकती है। यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम मानसून से अधिक प्रभावित होता है।
- दक्कन का पठार: दक्कन पठार के मध्य भाग में वर्षा की मात्रा औसतन 750 से 1000 मिमी होती है। यहाँ की मिट्टी और जलवायु फसलों की विविधता को प्रभावित करती हैं।
- पूर्वी तट: पूर्वी तट, विशेषकर तमिलनाडु, में वर्षा कम होती है (800-1200 मिमी) और यहाँ की फसलें उत्तर-पूर्व मानसून पर निर्भर करती हैं।
वर्षा की मात्रा
- अधिक वर्षा क्षेत्र:
- चेरापूंजी और मौसिनराम (मेघालय) विश्व के सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 4670 मिमी तक होती है।
- कम वर्षा क्षेत्र:
- दक्कन का शुष्क क्षेत्र और कुछ भाग जैसे कि राजस्थान के थार मरुस्थल में औसत वार्षिक वर्षा 200-400 मिमी होती है।
3. कृषि पर प्रभाव
- फसल चक्र: मानसून की शुरुआत के साथ, किसान खरीफ फसलें जैसे चावल, बाजरा, और कपास की बुवाई करते हैं। मानसून की समाप्ति के बाद रबी फसलें (जैसे गेहूँ और जौ) की बुवाई होती है।
- जल आपूर्ति: मानसून वर्षा भूजल स्तर को बढ़ाने और नदी-जल स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
4. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- वर्षा का पैटर्न: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न और मात्रा प्रभावित हो रही है। कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, जबकि अन्य क्षेत्रों में सूखे की समस्याएँ बढ़ रही हैं।
- कृषि पर प्रभाव: वर्षा की अनियमितता फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर खतरा मंडरा सकता है।
5. संरक्षण उपाय
- जल संरक्षण: वर्षा के जल को संचित करने के उपाय, जैसे वर्षा जल संचयन और मिट्टी संरक्षण प्रथाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- स्थायी कृषि: फसल विविधता और जल-प्रबंधन की तकनीकों का उपयोग करके कृषि उत्पादन को स्थायी बनाया जा सकता है।
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