सिंधु-गंगा का मैदान भारत का एक उपजाऊ क्षेत्र है, जहाँ कृषि प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। यहाँ की भूमि का उपयोग मुख्यतः कृषि कार्यों के लिए होता है, लेकिन आधुनिक कृषि पद्धतियों, बढ़ती जनसंख्या, और बढ़ते औद्योगीकरण के कारण भूमि और जल प्रदूषण की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
1. भूमि उपयोग के प्रकार
- कृषि भूमि: सिंधु-गंगा के मैदान में मुख्य रूप से गेहूं, धान, गन्ना, दलहन, और तिलहन जैसी फसलें उगाई जाती हैं। यह क्षेत्र रबी और खरीफ दोनों फसलों के लिए उपयुक्त है, जिससे यहां सालभर खेती होती है।
- वन भूमि: इस क्षेत्र में वन भूमि का प्रतिशत बहुत कम है। वन भूमि का कम होना पर्यावरणीय असंतुलन का एक कारण है, जो जलवायु परिवर्तन और बाढ़ की समस्याओं में योगदान देता है।
- औद्योगिक और आवासीय भूमि: बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण कृषि भूमि पर आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, जिससे उपजाऊ जमीन कम हो रही है।
2. कृषि प्रदूषण के कारण
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग: उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग तेजी से बढ़ा है। यह मिट्टी और जल में अवशेष छोड़ते हैं, जो भूमि की उर्वरता को कम करते हैं और भूजल को प्रदूषित करते हैं।
- सिंचाई में अधिक जल का उपयोग: अधिक सिंचाई के कारण मिट्टी में लवणीयता बढ़ जाती है, जिससे भूमि बंजर हो सकती है।
- फसल अवशेष जलाना: फसल अवशेषों, जैसे पराली का जलाना, न केवल वायु प्रदूषण करता है बल्कि मृदा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
- मशीनीकरण और अत्यधिक जुताई: अत्यधिक जुताई और मशीनीकरण से मृदा अपरदन की समस्या होती है, जिससे भूमि की संरचना खराब होती है और फसल उगाने की क्षमता कम हो जाती है।
3. कृषि प्रदूषण के परिणाम
- मृदा की उर्वरता में कमी: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के निरंतर उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम होती जा रही है, जिससे फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- जल स्रोतों का प्रदूषण: सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले उर्वरक और कीटनाशक नदियों, झीलों, और भूजल स्रोतों में मिलकर उन्हें प्रदूषित करते हैं।
- पर्यावरणीय असंतुलन: कृषि प्रदूषण के कारण जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, नदियों और तालाबों में रासायनिक प्रदूषण से मछलियों और अन्य जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: इन रसायनों के संपर्क में आने से मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जैसे कैंसर, त्वचा रोग, और पेट की समस्याएं।
4. प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
- जैविक खेती को बढ़ावा देना: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खादों और जैविक कीटनाशकों का उपयोग मृदा और जल प्रदूषण को कम कर सकता है।
- समेकित कीट प्रबंधन (IPM): कीटों से निपटने के लिए जैविक विधियों का उपयोग कर रसायनों की खपत को कम किया जा सकता है।
- संरक्षित सिंचाई तकनीक: ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर जैसे विधियों का उपयोग पानी की खपत कम करने और मृदा अपरदन रोकने में सहायक हो सकता है।
- फसल चक्र और विविधीकरण: फसल चक्र अपनाने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है और एक ही प्रकार की फसल उगाने से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- पराली जलाने पर रोक: पराली जलाने के बजाय उसका पुनर्चक्रण कर खाद के रूप में उपयोग करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
Leave a Reply