- भारतीय संघवाद और क्षेत्रीय संतुलन का आधार भारत का भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर होना है। इस परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित मुद्दों का विश्लेषण प्रस्तुत है:
1. भारतीय संघवाद का भौगोलिक आधार (Geographical Basis of Indian Federalism)
- भौगोलिक विविधता: भारत में विभिन्न प्रकार की भौगोलिक इकाइयाँ हैं, जैसे पर्वतीय, मैदानी, तटीय, और मरुस्थलीय क्षेत्र, जो अपने-अपने विशिष्ट विकास आवश्यकताओं और प्रशासनिक जरूरतों के कारण संघवाद को समर्थन देते हैं।
- संस्कृतिक विविधता: भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता भी भारतीय संघवाद का आधार है। यह संघवाद राज्यों को उनकी सांस्कृतिक पहचान के साथ विकास की स्वतंत्रता देता है।
2. राज्य पुनर्गठन (Reorganization of States)
- पृष्ठभूमि: स्वतंत्रता के बाद राज्यों का पुनर्गठन भाषाई और सांस्कृतिक समानताओं के आधार पर किया गया, जो राज्यों की प्रशासनिक कार्यक्षमता और क्षेत्रीय एकता को बढ़ाने में सहायक था।
- 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम: राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर, 1956 में राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें भाषाई आधार को प्रमुखता दी गई।
3. नए राज्यों का आविर्भाव (Emergence of New States)
- विभाजन के कारण: क्षेत्रीय असंतोष, प्रशासनिक सुविधा, और विकास के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए नए राज्यों का निर्माण हुआ है। उदाहरणस्वरूप, 2000 में उत्तराखंड, झारखंड, और छत्तीसगढ़ का गठन।
- हालिया घटनाएँ: 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन से तेलंगाना का गठन हुआ, जो राज्य पुनर्गठन में एक नई मिसाल स्थापित करता है।
4. क्षेत्रीय चेतना एवं अंतरराज्यीय मुद्दे (Regional Consciousness and Inter-state Issues)
- क्षेत्रीय चेतना: विभिन्न क्षेत्रों में भाषा, संस्कृति और आर्थिक स्थिति में अंतर के कारण क्षेत्रीय चेतना और मांगें उभरती रहती हैं।
- अंतरराज्यीय विवाद: जल वितरण, सीमांकन, और संसाधनों की मांग के कारण राज्यों के बीच विवाद होते हैं। जैसे कि कावेरी जल विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच।
5. भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा और संबंधित मुद्दे (India’s International Border and Related Issues)
- सीमा विवाद: भारत के चीन, पाकिस्तान, नेपाल, और बांग्लादेश के साथ विभिन्न सीमा विवाद हैं, जैसे कि अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा।
- सीमावर्ती समस्याएँ: घुसपैठ, सीमा सुरक्षा, और तस्करी जैसी समस्याएँ भी भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर प्रमुख मुद्दे हैं।
6. सीमापार आतंकवाद (Cross-border Terrorism)
- प्रभाव: पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों से आतंकवादी गतिविधियाँ भारत की सुरक्षा और विकास के लिए एक बड़ी चुनौती हैं, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में।
- संघर्ष निवारण: भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद विरोधी अभियान और कड़े सुरक्षा उपायों के माध्यम से इस मुद्दे पर नियंत्रण पाने का प्रयास किया है।
7. वैश्विक मामलों में भारत की भूमिका (India’s Role in Global Affairs)
- अर्थव्यवस्था और विकास: भारत वैश्विक मंच पर एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में कार्य करता है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) और G20 में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- राजनीतिक पहल: संयुक्त राष्ट्र और BRICS जैसे संगठनों में भारत की सक्रिय भूमिका है, जहाँ भारत ने विकासशील देशों के हितों की आवाज उठाई है।
8. दक्षिण एशिया एवं हिन्द महासागर परिक्षेत्र की भू-राजनीति (Geopolitics of South Asia and the Indian Ocean Region)
- दक्षिण एशियाई क्षेत्र: भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, और मालदीव इस क्षेत्र में शामिल हैं, जहाँ भारत क्षेत्रीय स्थिरता और विकास के लिए मुख्य भूमिका निभाता है।
- हिन्द महासागर परिक्षेत्र: यह क्षेत्र समुद्री व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण है और भारत अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा और इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखता है।
- क्षेत्रीय संगठनों में भारत: SAARC और BIMSTEC जैसे संगठनों के माध्यम से भारत ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है, ताकि व्यापार, सुरक्षा, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाया जा सके।
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