ज्वालामुखी विस्फोटों के बाद मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है, जिससे कृषि और वनस्पति विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनता है। ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकले हुए खनिज और तत्व मृदा में मिलकर उसकी पोषकता बढ़ाते हैं।
इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. खनिज तत्वों की वृद्धि
- ज्वालामुखीय राख में कई प्रकार के खनिज होते हैं, जैसे कि पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, और लोहे के यौगिक। ये सभी तत्व पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं।
- ज्वालामुखी विस्फोट से निकले पदार्थ लंबे समय तक मृदा में रहते हैं और धीरे-धीरे खनिज तत्व छोड़ते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
2. राख और लावा का प्रभाव
- जब लावा ठंडा होकर जमता है, तो यह समय के साथ टूटता और मृदा में मिलकर एक नई परत बनाता है जो बहुत उपजाऊ होती है।
- ज्वालामुखीय राख में सिलिका जैसे यौगिक होते हैं जो मृदा की बनावट को सुधारते हैं, जिससे जल धारण क्षमता बढ़ती है और पौधों की जड़ों को अधिक समय तक नमी मिलती है।
3. मृदा की संरचना में सुधार
- ज्वालामुखीय पदार्थ मृदा की भौतिक संरचना में सुधार करते हैं, जिससे मृदा में जल और वायु संचार में सुधार होता है।
- राख के महीन कण मृदा को भुरभुरी और हल्की बनाते हैं, जिससे पौधों की जड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है और पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ता है।
4. अम्लीयता को संतुलित करना
- ज्वालामुखीय राख में कुछ क्षारीय तत्व होते हैं जो मृदा की अम्लीयता को संतुलित करने में मदद करते हैं। इससे कई पौधों के लिए अनुकूल वातावरण बनता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मृदा स्वाभाविक रूप से अम्लीय होती है।
5. लंबे समय तक उर्वरता बनाए रखना
- ज्वालामुखीय खनिज पदार्थ धीरे-धीरे विघटित होते हैं, जिससे वे लंबे समय तक मृदा को पोषक तत्व प्रदान करते रहते हैं। इस प्रक्रिया के कारण ज्वालामुखीय मृदा को कई वर्षों तक उर्वर बनाए रखा जा सकता है।
6. प्राकृतिक उर्वरक का कार्य
- ज्वालामुखीय राख प्राकृतिक उर्वरक की तरह काम करती है, क्योंकि इसमें पौधों के विकास के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके कारण बिना कृत्रिम उर्वरकों के भी पौधे अच्छी तरह से बढ़ सकते हैं।
Leave a Reply