प्रायद्वीपीय भारत की विभिन्न प्राकृतिक संरचनाओं का पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव है। यह क्षेत्र भौगोलिक विविधता से परिपूर्ण है, जिसमें पश्चिमी और पूर्वी घाट, नर्मदा और तापी घाटियाँ, पठारी क्षेत्र, और तटीय मैदान शामिल हैं।
इन संरचनाओं का पारिस्थितिकीय प्रभाव इस प्रकार है:
1. पश्चिमी घाट
- जैव विविधता: पश्चिमी घाट को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह क्षेत्र अनेक स्थानिक प्रजातियों (endemic species) का घर है, जिनमें सरीसृप, उभयचर, और पौधों की कई विशेष प्रजातियाँ शामिल हैं।
- पारिस्थितिक प्रभाव: पश्चिमी घाट की पर्वत शृंखला मानसून की बारिश को प्रभावित करती है और इसे रोककर महाराष्ट्र, कर्नाटक, और केरल के आर्द्र जलवायु क्षेत्र को बनाए रखती है। यह जल आपूर्ति और वनस्पति विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी संतुलित रहती है।
2. पूर्वी घाट
- जैव विविधता: पूर्वी घाट की संरचना अपेक्षाकृत कम ऊँची है, लेकिन यह वनस्पतियों और जीवों की कई विशेष प्रजातियों का घर है। यहाँ पर बाघ, हाथी और अन्य महत्त्वपूर्ण वन्यजीव मिलते हैं।
- पारिस्थितिक योगदान: पूर्वी घाट पारिस्थितिकी को संतुलित करने में मदद करते हैं और पूर्वी भारत की नदियों को जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत भी हैं।
3. नर्मदा और तापी घाटियाँ
- प्राकृतिक आवास: नर्मदा और तापी की घाटियाँ भ्रंश घाटियाँ (rift valleys) हैं, जो कई प्रकार के जंगलों और जैव विविधता को पोषित करती हैं। ये घाटियाँ मृदा और पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं, जिससे आसपास के क्षेत्रों में कृषि और पर्यावरण संतुलन बना रहता है।
- आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव: यह क्षेत्र सिंचाई और ऊर्जा उत्पादन का प्रमुख स्रोत है, जिससे आसपास के वन्यजीव और कृषि परिदृश्य में सुधार होता है। लेकिन अत्यधिक निर्माण और जलविद्युत परियोजनाओं का पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
4. दक्कन का पठार
- मृदा और वनस्पति: दक्कन का पठार उपजाऊ काली मिट्टी और विभिन्न प्रकार के वनस्पति आवरण का स्रोत है। यह क्षेत्र कई कृषि गतिविधियों जैसे कपास और सोयाबीन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
- पारिस्थितिक प्रभाव: पठारी संरचना जल संरक्षण और सूक्ष्म जलवायु निर्माण में सहायक होती है। इससे स्थानीय जलवायु में विविधता बनी रहती है, जो विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों के लिए लाभकारी है।
5. तटीय क्षेत्र
- जलीय पारिस्थितिकी: भारत के तटीय क्षेत्रों, जैसे कोंकण तट और कोरोमंडल तट, का समुद्री पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव है। यहाँ मैंग्रोव जंगल, मूंगा चट्टानें, और कई प्रकार के जलीय जीवन पनपते हैं।
- पारिस्थितिकी संतुलन: तटीय क्षेत्र मछलियों और समुद्री जीवन का संरक्षण करने के साथ-साथ तूफानों और चक्रवातों से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन क्षेत्रों का अनियंत्रित शहरीकरण और प्रदूषण पारिस्थितिकी संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
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