धारवार प्रणाली (Dharwar System) में मानव गतिविधियों का पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रणाली विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता का स्रोत है, लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिककरण के कारण इस क्षेत्र में मानव गतिविधियाँ भी बढ़ी हैं।
यहाँ हम धारवार प्रणाली में मानव गतिविधियों के प्रभाव और पारिस्थितिकीय संतुलन के बीच के संबंध का अध्ययन करेंगे:
1. मानव गतिविधियों के प्रभाव
a. खनन
- खनिज संसाधनों का शोषण: धारवार प्रणाली में खनिजों, जैसे कि आयरन ऑक्साइड, मैंगनीज, और चूना पत्थर का खनन किया जाता है। यह प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकता है, जिससे जैव विविधता में कमी आती है।
- पर्यावरणीय क्षति: खनन गतिविधियों से भूमि का कटाव, जल प्रदूषण, और भू-स्थिरता में कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
b. कृषि
- भूमि उपयोग परिवर्तन: कृषि के लिए वन क्षेत्रों को काटने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ता है। अधिक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और जल स्रोतों में रासायनिक प्रदूषण का कारण बनता है।
- पारंपरिक खेती की कमी: औद्योगिक खेती की बढ़ती प्रवृत्ति पारंपरिक कृषि पद्धतियों को प्रभावित कर रही है, जिससे स्थानीय फसलों और खाद्य सुरक्षा पर खतरा है।
c. शहरीकरण और अवसंरचना विकास
- भूमि का परिवर्तन: शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास ने प्राकृतिक आवासों का नाश किया है, जिससे स्थानीय जीवों का निवास स्थान कम हो गया है।
- जल निकासी: शहरी क्षेत्रों में जल निकासी और प्रदूषण से नदियों और जलाशयों की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
d. औद्योगीकरण
- वायु और जल प्रदूषण: औद्योगिक गतिविधियाँ वायु और जल प्रदूषण का कारण बनती हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं।
- पारिस्थितिकीय परिवर्तन: प्रदूषण के कारण जीवों की विविधता और वितरण प्रभावित होता है, जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन में असंतुलन आता है।
2. पारिस्थितिकीय संतुलन
पारिस्थितिकीय संतुलन प्राकृतिक जीवों के बीच संबंधों और उनके पर्यावरण के साथ संतुलित स्थिति को दर्शाता है। मानव गतिविधियों के कारण इस संतुलन में निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:
a. जैव विविधता की कमी
- मानव गतिविधियों के कारण कई प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं, जिससे जैव विविधता में कमी आ रही है। इससे पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ता है, क्योंकि हर प्रजाति का पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है।
b. प्राकृतिक आपदाएँ
- पारिस्थितिकीय संतुलन में असंतुलन प्राकृतिक आपदाओं, जैसे कि बाढ़, सूखा, और मिट्टी का क्षय, को बढ़ा सकता है। ये घटनाएँ मानव जीवन और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती हैं।
c. पारिस्थितिकी तंत्र के सेवाएँ
- पारिस्थितिकीय संतुलन में परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाएँ, जैसे कि जल शुद्धिकरण, मिट्टी की उर्वरता, और जलवायु संतुलन, प्रभावित होती हैं। इससे कृषि उत्पादन और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
3. समाधान और उपाय
- संवर्धित नीतियाँ: सरकार और समुदायों को स्थायी विकास के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए, जो पर्यावरण संरक्षण और मानव गतिविधियों के बीच संतुलन बनाए।
- सामुदायिक जागरूकता: स्थानीय समुदायों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है ताकि वे पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व को समझ सकें।
- विज्ञान और तकनीक का उपयोग: टिकाऊ कृषि प्रथाएँ और आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में सहायक हो सकता है।
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