धारवार प्रणाली (Dharwar System) का भूवैज्ञानिक मानचित्रण और सर्वेक्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के प्राचीन चट्टानों और खनिजों का गढ़ है। धारवार प्रणाली मुख्यतः कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैली हुई है और इसमें कई प्रकार की चट्टानें, खनिज संसाधन, और भूवैज्ञानिक विशेषताएँ शामिल हैं।
यहाँ हम धारवार प्रणाली के भूवैज्ञानिक मानचित्रण और सर्वेक्षण की प्रक्रिया और इसके महत्व पर चर्चा करेंगे।
भूवैज्ञानिक मानचित्रण की प्रक्रिया
- भौगोलिक डेटा संग्रहण:
- भूवैज्ञानिक मानचित्रण में क्षेत्र के भौगोलिक डेटा को इकट्ठा करना आवश्यक है। यह डेटा उच्च-स्तरीय मानचित्रण तकनीकों, जैसे कि GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम), सैटेलाइट इमेजिंग, और ड्रोन सर्वेक्षण के माध्यम से एकत्र किया जाता है।
2. पैलोड विवरण:
- भूवैज्ञानिक मानचित्रों में विभिन्न पैलोड (lithology) का विवरण दिया जाता है, जिसमें चट्टानों के प्रकार, उनके संरचनात्मक तत्व, और उनकी आयु का विवरण शामिल होता है। धारवार प्रणाली में प्राचीन मैग्मैटिक और मेटामॉर्फिक चट्टानों का समावेश होता है।
3. खुदाई और नमूना संग्रह:
- भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान, शोधकर्ता विभिन्न स्थलों से चट्टानों और मिट्टी के नमूने एकत्र करते हैं। ये नमूने आगे की प्रयोगशाला जांच के लिए भेजे जाते हैं।
4. भूगर्भीय संरचना का अध्ययन:
- धारवार प्रणाली में भूगर्भीय संरचना का अध्ययन महत्वपूर्ण है। इसमें स्ट्रेटिग्राफी, फॉल्टिंग, और अन्य भूगर्भीय गतिविधियों का विश्लेषण शामिल होता है।
5. भूवैज्ञानिक मानचित्र तैयार करना:
- सभी एकत्रित डेटा और सर्वेक्षण के परिणामों के आधार पर भूवैज्ञानिक मानचित्र तैयार किए जाते हैं। ये मानचित्र चट्टानों के वितरण, खनिज संसाधनों, और भूगर्भीय संरचनाओं को दर्शाते हैं।
भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के महत्व
1.खनिज संसाधनों का अन्वेषण:
- धारवार प्रणाली में कई महत्वपूर्ण खनिज जैसे कि लोहा, चाँदी, सोना, और अन्य धातुएँ पाई जाती हैं। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण इन संसाधनों के अन्वेषण और उनके आर्थिक महत्व को समझने में मदद करता है।
2. भूगर्भीय अध्ययन:
- यह क्षेत्र भूगर्भीय प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। यहां की चट्टानें प्राचीन काल की भूगर्भीय गतिविधियों के प्रमाण प्रदान करती हैं, जो पृथ्वी के इतिहास को समझने में मदद करती हैं।
3. भूस्खलन और भूकंप का जोखिम:
- भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से भूस्खलन, भूकंप, और अन्य भूगर्भीय खतरों का मूल्यांकन किया जा सकता है। इससे स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
4. पर्यावरणीय अध्ययन:
- भूवैज्ञानिक मानचित्रण और सर्वेक्षण से पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन किया जा सकता है, जैसे कि खनन गतिविधियों से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना।
5. स्थानीय विकास योजनाएँ:
- भूवैज्ञानिक जानकारी स्थानीय विकास योजनाओं, जैसे कि बुनियादी ढाँचे, कृषि विकास, और जल प्रबंधन में मदद कर सकती है।
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