बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, जिसमें जलस्तर बढ़ने के कारण नदी, झील, तालाब या समुद्र का पानी अपने तटों को पार कर आसपास के निचले क्षेत्रों में फैल जाता है। बाढ़ भारत और अन्य देशों में विशेष रूप से मानसून के दौरान एक आम घटना है और यह कई प्रकार की समस्याएँ और चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना और अन्य नदियाँ प्रमुख बाढ़-प्रभावित क्षेत्र हैं, जहाँ हर साल बाढ़ का खतरा बना रहता है।
बाढ़ के कारण
बाढ़ के कई प्राकृतिक और मानव-निर्मित कारण हो सकते हैं:
- अत्यधिक वर्षा: मानसून के दौरान लगातार और अत्यधिक बारिश के कारण नदियों, झीलों और नालों में पानी का स्तर बढ़ जाता है, जिससे वे अपने तटों को पार कर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं।
- नदियों का जल स्तर बढ़ना: नदियों में पानी का स्तर बढ़ने से उनका प्रवाह तटों को पार कर आसपास के क्षेत्रों में फैल सकता है, विशेष रूप से गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों में।
- पिघलते ग्लेशियर: पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है, जो बाढ़ का कारण बन सकता है।
- बाँधों का टूटना: पुराने या कमज़ोर बाँधों के टूटने से अचानक बड़ी मात्रा में पानी निचले इलाकों में फैल सकता है, जिससे बाढ़ आती है।
- वनों की कटाई: वनों की कटाई से पानी का अवशोषण घट जाता है और नदियों में पानी की अधिकता होती है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
- अनियंत्रित शहरीकरण: शहरों में अनियंत्रित निर्माण और खराब जल निकासी प्रणाली के कारण पानी का बहाव प्रभावित होता है, जिससे शहरी बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
बाढ़ के प्रकार
बाढ़ कई प्रकार की हो सकती है, जो कारणों और क्षेत्रों के आधार पर विभाजित की जाती है:
- फ्लैश फ्लड (अचानक बाढ़): यह तीव्र और अचानक उत्पन्न होने वाली बाढ़ होती है जो तेज बारिश या बाँध टूटने से आती है। यह बहुत कम समय में बड़ी तबाही मचा सकती है।
- रिवरिन बाढ़ (नदी बाढ़): यह बाढ़ नदियों में पानी के स्तर बढ़ने से होती है। भारी बारिश, पिघलते ग्लेशियर और जलमार्गों का बाधित होना इसके कारण हो सकते हैं।
- तटीय बाढ़: समुद्री तूफान या चक्रवात के कारण समुद्री जलस्तर बढ़ता है, जिससे समुद्र के तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
- शहरी बाढ़: शहरी क्षेत्रों में खराब जल निकासी और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण पानी का बहाव प्रभावित होता है, जिससे शहरी बाढ़ उत्पन्न होती है।
- फ्लड बाय ओवरफ्लो: नदियों या जलाशयों में अत्यधिक पानी भरने के कारण बाढ़ का विस्तार तटों को पार कर आसपास के क्षेत्रों में फैल जाता है।
बाढ़ का प्रभाव
बाढ़ के कारण व्यापक रूप से जान-माल की हानि होती है और विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रभाव पड़ता है:
- मानव जीवन का नुकसान: बाढ़ के दौरान लोगों के डूबने, घायल होने और घरों के नष्ट होने के कारण जान-माल का नुकसान होता है।
- फसलें और पशुधन: बाढ़ का पानी फसलों और पशुधन को नुकसान पहुँचाता है, जिससे कृषि पर भारी प्रभाव पड़ता है और खाद्य सुरक्षा पर संकट आ जाता है।
- संपत्ति और बुनियादी ढांचा: बाढ़ के कारण घर, पुल, सड़कें, बिजली के खंभे और अन्य बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसके पुनर्निर्माण पर बड़ी मात्रा में धन खर्च होता है।
- स्वास्थ्य समस्याएँ: बाढ़ के पानी में गंदगी, मलबा और जलजनित बीमारियाँ होती हैं। इससे डायरिया, हैजा और मलेरिया जैसी बीमारियाँ फैल सकती हैं।
- प्रवास और विस्थापन: बाढ़ के कारण लोगों को अपने घर छोड़कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ती है, जिससे मानव प्रवास और विस्थापन की स्थिति उत्पन्न होती है।
बाढ़ से बचाव और प्रबंधन
बाढ़ को रोकना संभव नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं:
- पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली: मौसम विभाग द्वारा बाढ़ पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली को विकसित किया गया है ताकि लोगों को समय से सूचित किया जा सके।
- बाढ़ नियंत्रण बाँध: नदियों के किनारे बाँध और तटबंध बनाए जाते हैं ताकि जल स्तर को नियंत्रित किया जा सके।
- जल निकासी प्रणाली: शहरी क्षेत्रों में अच्छी जल निकासी प्रणाली होना आवश्यक है ताकि बारिश का पानी जल्द ही बाहर निकल सके।
- वन संरक्षण: वनों का संरक्षण और वृक्षारोपण से जल का अवशोषण बेहतर होता है और बाढ़ की संभावना घटती है।
- सुरक्षित निर्माण: तटीय और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित और ऊँचे स्थानों पर निर्माण किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ का खतरा कम हो सके।
- आपदा प्रबंधन और राहत कार्य: बाढ़ के दौरान आपदा प्रबंधन दलों द्वारा राहत और बचाव कार्यों का संचालन किया जाता है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाता है और भोजन, दवाई और अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
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