खनिजों का खनन आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होने के बावजूद पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। यह प्राकृतिक संसाधनों के अति-दोहन, पारिस्थितिकी असंतुलन, और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने का कारण बन सकता है। इसलिए, स्थायी खनन प्रथाओं को अपनाना महत्वपूर्ण है ताकि खनिजों का संरक्षण करते हुए पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखा जा सके। नीचे पर्यावरणीय प्रभाव और स्थायी खनन प्रथाओं का विवरण दिया गया है:
पर्यावरणीय प्रभाव
1.वायु प्रदूषण खनन गतिविधियों के दौरान धूल, गैसें, और रसायन वायुमंडल में मिलते हैं, जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। इससे आसपास के लोगों को सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है और प्राकृतिक वनस्पतियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
2. जल प्रदूषण खनन के दौरान हानिकारक रसायन और भारी धातुएँ, जैसे आर्सेनिक, सीसा, और पारा जल स्रोतों में मिल सकते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है। इससे आसपास के नदी, झील, और भूजल स्रोत प्रभावित होते हैं और इस जल का उपयोग करने वाले जीव-जंतु तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
3. जैव विविधता का नुकसान खनन के लिए जंगलों का कटाव, भूमि क्षरण और भूगर्भीय अस्थिरता जैसे प्रभाव जैव विविधता को नुकसान पहुँचाते हैं। इससे प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं और वन्यजीवों की कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
4. भूमि क्षरण और कटाव खनन के दौरान भूमि को लगातार खोदा जाता है, जिससे भूमि क्षरण और कटाव की समस्या उत्पन्न होती है। खनन के बाद बंजर भूमि का उपयोग कठिन हो जाता है और कृषि योग्य भूमि घटती है।
5. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन खनन प्रक्रियाओं के दौरान जीवाश्म ईंधनों का उपयोग और वनों की कटाई से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है, जो दीर्घकालिक दृष्टि से खतरनाक है।
स्थायी खनन प्रथाएँ
1.पुनर्वास और पुनर्स्थापना (Rehabilitation and Restoration) खनन के बाद भूमि को पुनर्वासित और पुनर्स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। खनन की गई जगहों पर पौधारोपण, मिट्टी का पुनर्विकास, और प्राकृतिक वनस्पतियों को फिर से उगाना भूमि की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है।
2. जल संरक्षण और उपचार (Water Conservation and Treatment) खनन के दौरान उपयोग किए गए जल को पुनः शुद्ध करना चाहिए ताकि वह जल स्रोतों को प्रदूषित न करे। जल का पुनर्चक्रण और उपचार करना जल प्रदूषण को कम करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा, खनन क्षेत्रों में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग जैसी प्रथाओं को भी अपनाया जा सकता है।
3. शून्य अपशिष्ट प्रबंधन (Zero-Waste Management) खनन प्रक्रियाओं में अधिक से अधिक शून्य अपशिष्ट उत्पादन के लक्ष्य को अपनाना चाहिए। खनन के दौरान निकले अवशिष्ट को फिर से उपयोग में लाने का प्रयास करना चाहिए ताकि भूमि प्रदूषण कम हो सके।
4. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी खनन प्रक्रिया के दौरान जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है। इसके लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हाइड्रो ऊर्जा का उपयोग खनन कंपनियों द्वारा किया जाना चाहिए।
5. स्थानीय समुदायों के लिए लाभ खनन क्षेत्रों के आसपास के स्थानीय समुदायों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का ख्याल रखना भी महत्वपूर्ण है। खनन कंपनियों को रोजगार के अवसर प्रदान करने और स्वास्थ्य, शिक्षा, तथा सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में योगदान देना चाहिए।
6. तकनीकी सुधार और स्वचालन (Automation and Technological Advancements) आधुनिक तकनीकों का उपयोग खनन के दौरान पर्यावरणीय नुकसान को कम कर सकता है। स्वचालित खनन प्रक्रियाएँ और उन्नत उपकरणों का प्रयोग कम प्रदूषण और कम भूमि क्षरण के साथ खनन को अधिक सुरक्षित बनाता है।
7. जैव विविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation) खनन के दौरान जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए विशेष कदम उठाए जाने चाहिए, जैसे कि खनन क्षेत्रों के पास संरक्षित वन्यजीव क्षेत्र बनाना, वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों की रक्षा करना, और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment – EIA) करना।
Leave a Reply